🌷मनहरण घनाक्षरी🌷
उत्तर को हिमपात, करत कठोर घात।
प्रकीर्णित हिम कण, शीतल समीर है।।
ठिठुरन अंग अंग, जीव जन हुए तंग।
शिशिर प्रकोप बढ़ो, कंपित शरीर है।।
यामिनी असीम ठंड, लगे जैसे देत दंड।
जम रहो रक्त देह, नदी नद नीर है।।
पड़ें पाला बढ़ें धुंध, कृषि गति होत कुंद।
फसल की चिंता लगी, कृषक अधीर है।।
🌹संजय "उमंग" 🌹
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