*ग़ज़ल*
2122 1212 22
बहते बहते ठहर गया पानी।
देख कर प्यास डर गया पानी।
जिससे ख़ुशियों की आस थी दिल को
वो ही आँखों में भर गया पानी।
जो अज़ीज़ों की आँखों से निकला
कर वो दिल पे असर गया पानी।
साथ बर्बादियों को ले आया
जब भी हद से गुज़र गया पानी।
देख पाया न प्यासी धरती को
बादलों से उतर गया पानी।
जानवर है, नहीं बशर *हीरा*
जिसकी आँखों का मर गया पानी।
हीरालाल
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