*ग़ज़ल*
2122 1122 22
ख़ुद वो अपने से खफ़ा था शायद।
दर्द ही दर्द मिला था शायद।
इसलिए लौट गया घर को वो
राहे ईमां पे चला था शायद।
राह तकते ही रहे जिसकी हम
वक्त वो बीत गया था शायद।
लाल आँखों ने कहानी कह दी
अश्क आँखों से बहा था शायद।
कह नहीं पाये किसी से लब जो
खास अपने ने छला था शायद।
तुझको अपना सा लगा जो *हीरा*
आदमी दिल का भला था शायद।
हीरालाल
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