*ग़ज़ल*
1222 1222 122
नशे में मूँद कर आँखें पड़े हैं।
सियासत में जो ये चिकने घड़े हैं।
जुगत कर के जो कुर्सी पर हैं बैठे
उन्हें लगता है वो मोती जड़े हैं।
नज़र आती नहीं है राह कोई
ये कैसे मोड़ पर हम आ खड़े हैं।
नहीं बदलेंगे यूँ हालात यारो
हमीं को फैसले लेने कड़े हैं।
सुलह का रास्ता निकलेगा कैसे
जो जिद पर आप हम दोनो अड़े हैं।
सदाकत की चुनी है राह *हीरा*
तभी दुनिया की नज़रों में गड़े हैं।
हीरालाल
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