*ग़ज़ल*
122 122 122 122
भला जानते हैं, बुरा जानते हैं।
ज़माने तेरी हर अदा जानते हैं।
यकीं कैसे कर लें ज़माने पे हम यूँ
ज़माना करेगा दगा जानते है।
गले मिल रहा है बड़े प्यार से पर
तू काटेगा इक दिन गला जानते हैं।
लगा ले भले लाख चेहरे पे चेहरा
तुझे खूब हम बेवफ़ा जानते हैं।
सुखों की तमन्ना करें भी तो कैसे
है जीवन दुखों से भरा जानते हैं।
करें चाँद तारों की क्योंकर तमन्ना
मुकद्दर का जब हम लिखा जानते हैं।
किसे दोष दें हम तबाही की अपनी
हमारी ही है सब ख़ता जानते हैं।
उन्हीं की है बजती ज़माने में तूती
जो दिल जीतने की कला जानते हैं।
इबादत ख़ुदा की भला कैसे छोड़ें
दुखों की यही इक दवा जानते हैं।
नहीं छोड़ते आस जीने की *हीरा*
उबारेगा दुख से ख़ुदा जानते हैं।
हीरालाल
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