Monday, March 4, 2019

ग़ज़ल आ० हीरालाल जी

*ग़ज़ल*
212 212 212 212

हाल  सबका यही  है, जुदा कौन है।
दर्दो-ग़म  से  जहां  में बचा कौन है।

ऊँगलियाँ दूसरों पर उठाते हैं सब
दुध  का   ये  बतायें  धुला कौन  है।

तन तो मिट्टी का सबका है संसार में
मोतियों  से  जहां  में  जड़ा कौन है।

टोकता   है   मुझे   हर  बुराई  पे जो
मेरे  अंदर  ये आख़िर छुपा कौन है।

दाग  किरदार  पर  हैं सभी के लगे
इस ज़माने में अब आइना कौन है।

जानता है ख़ुदा हाल सब का यहाँ
बेवफ़ा  कौन  है,  बावफ़ा कौन है।

हर किसी को शिकायत ज़माने से है
फिर भी तजना जहां चाहता  कौन है।

पाक  ख़ुद  को  सभी हैं बताते यहाँ
सब भले हैं त़ो आख़िर बुरा कौन है।

फिक्र में ख़ुद की *हीरा* लगे हैं सभी
दूसरों   की   यहाँ  सोचता  कौन  है।

                   हीरालाल

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