*◆ शिखरिणी छंद ◆*
विधान~
[यगण मगण नगण सगण भगण+लघु गुरु]
(122 222 111 112 211 12)
17 वर्ण, यति 6,11वर्णों पर, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत।]
चला लेके सीता, सठ रुक अभी युद्ध कर रे।
अनाचारी पापी, ठहर मन में दुष्ट डर रे।।
अरे लोभी कामी, अधम छल से सीय हरके।
अभी तेरा होगा, मरण खल ये काम करके।।
*~शैलेन्द्र खरे"सोम"*
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