*बरवै-छंद*
(विषम पदों में 12,सम पदों में 7 मात्राएँ)
*(गोपी ऊधौ से)*
ज्ञान ध्यान आता नहिं,जानू प्रीत|
ऊधौ वापस जाओ, न सुनूँ गीत||
कैसे हिय प्यास बुझे,बिनु घन श्याम|
बिनती बार बार जा, ऊधौ धाम||
प्राण हमारे मोहन ,मैं हूँ देह|
जा संदेशों कहियो, उजड़ो गेह||
परसों अरसों की कहँ,बीते साल|
जीना अब तो दुश्वर ,कैसा हाल||
वा छलिया मोहन से,कहना बात|
तड़फ रहिं है विरहिणी,दिन अरु रात||
आये यदि अतिसीघ्र न,तज दूँ प्राण|
कान्हा यादें चुभती, जैसे बाण||
लज्जा छोड़ी हमने,पायो तोहिं|
क्यों बीच भँवर छोड़ा,कान्हा मोहि||
ऊधौ जाओ जाओ,मत विष घोल|
कैसों है साँवरिया,सच सच बोल||
ठहरी चंचल नारी ,मत दो ज्ञान|
बँधी डोर कान्हा सँग,सच लो जान||
दया भाव मोहन उर, भर दो जाय|
तब जानू ज्ञानी प्रिय, देउँ मिलाय||
देख प्रीत गोपिन की,ऊधौ सोच|
सगुण भक्ति है सच्ची,मैं तो पोच||
कैसी ये प्रीत हुए, भाव विभोर|
ज्ञान हुआ नीरस तब,जागी भोर||
~जितेन्द्र चौहान "दिव्य"
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