Saturday, May 18, 2019

अनंग पाल सिंह भदौरिया "अनंग" - 3

जो  है  हम  वा  आपसे , उत्तम , श्रेष्ठ  जहान ।
वही  कल्पना , भावना , आत्मरूप  है  जान ।।
आत्मरूप है जान,  उसे  ही अब  थिर करिए ।
अकथनीय,सुविचित्र,परस्थिति यह अनुसरिए।।
कह"अनंग"करजोरि, बिना अपने जग को  है ।
यही  शुद्ध   वेदांत  ,  भावना   ऐसी  जो   है ।।
                अनंग पाल सिंह भदौरिया"अनंग"

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