Wednesday, May 15, 2019

तारा सप्तक आ० "साहिल" जी

🎍  *तारा सप्तक*  🎍
       
         शिखरिणी छंद

विधान~
[यगण मगण नगण सगण भगण+लघु गुरु]
(122  222 111  112  211 12)
17 वर्ण,यति 6,11वर्णों पर,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत

सुनो  मेरी  तारा, हर - पल  वही चाहत भरों|
कहो प्यारी बातें, तन - मन सदा राहत करो||
तुझे ही तो चाहूँ, पग - पग तुही सीवन  बने|
लिखूँ सारी यादें, पल - पल वही जीवन बने||

   © डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

       इन्दवज्रा छंद
शिल्प~समवर्ण, चार चरण  प्रत्येक चरण में दो तगण एक जगण और अन्त में दो गुरु /११ वर्ण
उदाहरण: -
S S I  S S I  I S I  S S

तू चाह मेरी बन जा सहारा|
तेरे  बिना है  मन  बेसहारा||
आओ बनाएँ सुर गीत प्यारा|
गाएँ बजाएँ धुन 'प्रीत' 'तारा'||

कोई कहानी हम भी बनाएं|
पूरी जवानी तुम  पे लुटाएँ||
मेरी उदासी कुछ बोलती है|
सारे पुराने पट  खोलती है||

© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

       ∆ स्वागता छंद ∆

विधान ~ [रगण नगण भगण+गुरु गुरु]
( 212  111  211   22)
11 वर्ण, 4 चरण [दो-दो चरण समतुकांत]

भोर की लहर है सुखकारी|
प्रेम की बहर  है  मनुहारी||
गीत है तरुण सी सुर धारा|
नेह से सुखद हो जग सारा||

फूल की महक सा उजियारा|
प्रेम की लगन में सुख सारा||
रात तो  जब  कटे  बिन तेरे|
गीत की  धुन  बने सुर घेरे ||

रात की  अगन न  तड़पाए |
मीत से सजन को मिलवाए||
प्रीत में अब  भरो गुन सारा |
बोल दो वचन ही कुछ तारा||

©डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

    
     ¢ चंडरसा छंद ¢

विधान~
[ नगण यगण]
(111  122 )
6वर्ण, 4 चरण,
दो-दो चरण समतुकांत

मनसुख  धारा|
मधुरिम  तारा||
पनघट    बोले |
जब मुँह खोले|||

नटखट है  वो|
पनघट  है वो||
तरकश है  वो|
करकश है वो||

हरपल   पाऊं|
हरि गुन गाऊं||
कलरव  सोहे|
उपवन  मोहे||

प्रियतम प्यारी|
सुमधुर  नारी||
अब सुन लेती|
हिय सुर देती||

©डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

   
       ◆राधा छंद◆

विधान~
[रगण तगण मगण यगण गुरु]
(212  221 222  122   2)
13 वर्ण, यति{8-5},4 चरण,
दो-दो चरण समतुकांत]

दूरियाँ होती नही जो, पास  तू आती| 
चाहतें  पूरी  निभाते,  वासना जाती||
कामना  मेरी  पुरानी, बात  हो जारी|
तार लो  गंगा सुहानी, धार है प्यारी||

साधना हो प्रेम की तो, बोलती धारा|
बाँध लेती स्नेह में वो,  मोहनी तारा||
भावना की कामिनी से, भोर है जागे|
चाहतों की दामिनी में, शोर भी भागे||

राग की  रागिनी  सी, वो  बने   मेरी|
चाँद की  चाँदनी  सी, प्रीत  है  तेरी||
रूठना  बातें  बनाना, जीत  है जागे|
मीत का  सारा बहाना, गीत  है लागे||

© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

  गंग छन्द
मोहन  मुरारी|
नेह  मनुहारी||
बंशी   बजाते|
कान्हा सुहाते||

राधा  सुहानी|
प्रेम  दिवानी||
कान्हा पुकारे|
तेरे     सहारे||

होगा    सवेरा|
साथी   बसेरा||
चाहतें    सारी|
भाव मधुहारी||

© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

      लीला द्वादस छंद
[12,12 मात्राओं पर यति अंत में जगण"]

         तारा
स्नेह सरिता सहकार|
बाजै  संगीत   सार ||
फड़कत रदपुट लाल|
चमके  है बाल गाल||

नूतन  महके  पराग|
सोहत सूरत सुराग||
तारा  सोहत समान|
नैना   जैसे  कमान||

प्रेम सुख  पाऊँ ओज|
सब को कराऊँ भोज||
तारा मन-सुख पुकार|
जीवन अब दो सँवार||
     
© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

           निश्चल छंद
विधान~
[23 मात्राएँ 16,7 मात्राओं पर यति,
चरणान्त 21]

तारा  तन  मनमोहक हिय में,  बढ़त हिलोर|
नील मुकुट खग नाचत सुन्दर, लागत  मोर||
गरज गरज कर मेघा कहता, प्रीतम बोल|
किरण बिखेरे सूरज धरती, भी  है गोल||

बेदी गोल  सूरतिया करती, है मदहोश|
हृदय पटल में संचारित हो, सब गुण कोश||
छन - छन बाजत पायल जैसे, सुरमय गीत|
घड़ी मिलन  की आयी गाओ, सुख संगीत||

   ©डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

      
        [मरहटा छंद]

शिल्प~[10,8,11 ]मात्राएँ ,इसी प्रकार यति।चरणान्त में गुरु लघु(21),चार चरण तुकांत।

सुरसरि  के तीरे, धीरे - धीरे, हृदय जपत जयकार|
ये जीवन सारा, निज सुख हारा,नमन करूँ शतबार||
सुन्दर मनभावन, प्रियतम पावन, साहिल करे पुकार|
मनमीत 'प्रीत' की, मधुर रीत की, कोमल सी मनुहार||

© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

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