Wednesday, May 15, 2019

कनक मंजरी छंद "ओम" जी

*◆ कनक मंजरी छंद ◆*
शिल्प~ 4 लघु+ 6भगण (211)+1गुरु] = 23 वर्ण
[चार चरण समतुकांत]               या
{1111+211+211+211,
                      211+211+211+2}

वह क्षण जो दुख से भरते सब,
                         ओम वही फिर फूल लगें।
सुखमय हैं सब  पावन-से क्षण, 
                         ज्ञान बिना  यह भूल लगें।।
अमृत अभी तुझको लगता विष,
                         मंथन  के  बिन  शूल लगें।
अमिय - हलाहल पूरक हैं सब,
                          आपस में  यह  मूल लगें।।

                          *©मुकेश शर्मा  "ओम"*

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