*◆कनक मंजरी छंद◆*
शिल्प~
[4लघु+6भगण(211)+1गुरु]=23 वर्ण
चार चरण समतुकांत]
या
{1111+211+211+211
211+211+211+2}
मनुज करे तप योग सदा यदि,
जीवन सुंदर चाल सही।
गुरु पितु मातु सदा पग वंदन,
नित्य निशंक सुकाल सही।।
मत रख बैर सभी अपने सुन,
साथ रहें नित हाल सही।
जन जन के हिय मानवता कस,
दुर्ग छुए तब भाल सही।।
~जितेन्द्र चौहान "दिव्य"
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