🎍 *तारा सप्तक* 🎍
शिखरिणी छंद
विधान~
[यगण मगण नगण सगण भगण+लघु गुरु]
(122 222 111 112 211 12)
17 वर्ण,यति 6,11वर्णों पर,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत
सुनो मेरी तारा, हर - पल वही चाहत भरों|
कहो प्यारी बातें, तन - मन सदा राहत करो||
तुझे ही तो चाहूँ, पग - पग तुही सीवन बने|
लिखूँ सारी यादें, पल - पल वही जीवन बने||
© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल
इन्दवज्रा छंद
शिल्प~समवर्ण, चार चरण प्रत्येक चरण में दो तगण एक जगण और अन्त में दो गुरु /११ वर्ण
उदाहरण: -
S S I S S I I S I S S
तू चाह मेरी बन जा सहारा|
तेरे बिना है मन बेसहारा||
आओ बनाएँ सुर गीत प्यारा|
गाएँ बजाएँ धुन 'प्रीत' 'तारा'||
कोई कहानी हम भी बनाएं|
पूरी जवानी तुम पे लुटाएँ||
मेरी उदासी कुछ बोलती है|
सारे पुराने पट खोलती है||
© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल
∆ स्वागता छंद ∆
विधान ~ [रगण नगण भगण+गुरु गुरु]
( 212 111 211 22)
11 वर्ण, 4 चरण [दो-दो चरण समतुकांत]
भोर की लहर है सुखकारी|
प्रेम की बहर है मनुहारी||
गीत है तरुण सी सुर धारा|
नेह से सुखद हो जग सारा||
फूल की महक सा उजियारा|
प्रेम की लगन में सुख सारा||
रात तो जब कटे बिन तेरे|
गीत की धुन बने सुर घेरे ||
रात की अगन न तड़पाए |
मीत से सजन को मिलवाए||
प्रीत में अब भरो गुन सारा |
बोल दो वचन ही कुछ तारा||
©डॉ० राहुल शुक्ल साहिल
¢ चंडरसा छंद ¢
विधान~
[ नगण यगण]
(111 122 )
6वर्ण, 4 चरण,
दो-दो चरण समतुकांत
मनसुख धारा|
मधुरिम तारा||
पनघट बोले |
जब मुँह खोले|||
नटखट है वो|
पनघट है वो||
तरकश है वो|
करकश है वो||
हरपल पाऊं|
हरि गुन गाऊं||
कलरव सोहे|
उपवन मोहे||
प्रियतम प्यारी|
सुमधुर नारी||
अब सुन लेती|
हिय सुर देती||
©डॉ० राहुल शुक्ल साहिल
◆राधा छंद◆
विधान~
[रगण तगण मगण यगण गुरु]
(212 221 222 122 2)
13 वर्ण, यति{8-5},4 चरण,
दो-दो चरण समतुकांत]
दूरियाँ होती नही जो, पास तू आती|
चाहतें पूरी निभाते, वासना जाती||
कामना मेरी पुरानी, बात हो जारी|
तार लो गंगा सुहानी, धार है प्यारी||
साधना हो प्रेम की तो, बोलती धारा|
बाँध लेती स्नेह में वो, मोहनी तारा||
भावना की कामिनी से, भोर है जागे|
चाहतों की दामिनी में, शोर भी भागे||
राग की रागिनी सी, वो बने मेरी|
चाँद की चाँदनी सी, प्रीत है तेरी||
रूठना बातें बनाना, जीत है जागे|
मीत का सारा बहाना, गीत है लागे||
© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल
गंग छन्द
मोहन मुरारी|
नेह मनुहारी||
बंशी बजाते|
कान्हा सुहाते||
राधा सुहानी|
प्रेम दिवानी||
कान्हा पुकारे|
तेरे सहारे||
होगा सवेरा|
साथी बसेरा||
चाहतें सारी|
भाव मधुहारी||
© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल
लीला द्वादस छंद
[12,12 मात्राओं पर यति अंत में जगण"]
तारा
स्नेह सरिता सहकार|
बाजै संगीत सार ||
फड़कत रदपुट लाल|
चमके है बाल गाल||
नूतन महके पराग|
सोहत सूरत सुराग||
तारा सोहत समान|
नैना जैसे कमान||
प्रेम सुख पाऊँ ओज|
सब को कराऊँ भोज||
तारा मन-सुख पुकार|
जीवन अब दो सँवार||
© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल
निश्चल छंद
विधान~
[23 मात्राएँ 16,7 मात्राओं पर यति,
चरणान्त 21]
तारा तन मनमोहक हिय में, बढ़त हिलोर|
नील मुकुट खग नाचत सुन्दर, लागत मोर||
गरज गरज कर मेघा कहता, प्रीतम बोल|
किरण बिखेरे सूरज धरती, भी है गोल||
बेदी गोल सूरतिया करती, है मदहोश|
हृदय पटल में संचारित हो, सब गुण कोश||
छन - छन बाजत पायल जैसे, सुरमय गीत|
घड़ी मिलन की आयी गाओ, सुख संगीत||
©डॉ० राहुल शुक्ल साहिल
[मरहटा छंद]
शिल्प~[10,8,11 ]मात्राएँ ,इसी प्रकार यति।चरणान्त में गुरु लघु(21),चार चरण तुकांत।
सुरसरि के तीरे, धीरे - धीरे, हृदय जपत जयकार|
ये जीवन सारा, निज सुख हारा,नमन करूँ शतबार||
सुन्दर मनभावन, प्रियतम पावन, साहिल करे पुकार|
मनमीत 'प्रीत' की, मधुर रीत की, कोमल सी मनुहार||
© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल
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