Wednesday, May 15, 2019

मत्ता छंद "सरस" जी

🍁 *मत्ता छन्द* 🍁
विधान- मगण भगण सगण +गुरू =10 वर्ण प्रति चरण चार चरण 4-6 वर्ण पर यति,  दो- दो चरण समतुकान्त
         222 2 11 112 2

नैना कारे, अति दुखियारे|
आँसू पीड़ा, कहकर हारे||
होठों हौली, फिर सिसकी है|
गूँगी पीड़ा, यह किसकी है||

काली रातें, डर अति भारी|
फैली होगी, कब उजियारी||
भारी बोझा, सिर पर लादे|
आगे आगे, हम सब प्यादे||

बातों की ही, धरम धुरी है |
खाली खाली, करमपुरी है||
गेहूँ पानी, चख बथुआ है|
मेरा तेरा, बहुत हुआ है ||

पन्ने खोले, जब इतिहासी|
नारी भोग्या, चरणन दासी||
देवी रूपा, कब कब माना|
हारा 'हूँ' से,तब तब जाना||

मैं तोड़ूँगा ,मन पथरी को|
मैं फेंकूँगा, मिथ कथरी को||
मैं पालूँगा, दरद तुम्हारा|
मैं लाऊँगा, सरस सुधारा||

आगे होगी, कठिन परीक्षा|
शिक्षा लेगी, तपकर दीक्षा||
खेलेंगे जी, कर अठखेली|
जानी मानी, जगत पहेली||

क्या क्या खोते, नयनन रोते|
रोते रोते, सब चुप होते||
आता जाता, पवन गया है |
पीड़ा सारी, हरत दया है||

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दिलीप कुमार पाठक "सरस"

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