Thursday, February 28, 2019

जय जय हिन्दी पटल ग़ज़ल

🙏🌹जय माँ सरस्वती🌹🙏🌹

        🌹 *जय-जय हिन्दी* 🌹

🌹 *तृतीय चरण: मुक्तक/ग़ज़ल सृजन*🌹

*दिनांक- 1 मार्च  2019*
*दिन-  - शुक्रवार*
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
*वंदनाकाल- प्रातः ०६ बजे से १० बजे तक*

*विषयकाल/कक्षाकाल- प्रातः १० बजे से शाम ०६ बजे तक*

*समीक्षा काल- शाम ०६ बजे से रात्रि ०९ बजे तक*
*(विशेष परिस्थिति में गजलगुरु किसी भी समय समीक्षा के लिए स्वतंत्र हैं।)*

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

  *विषय - गजल/मुक्तक*
हम आपके लिए लेकर आये हैं  बेहद खूबसूरत .....

*नोट :- पुलवामा हमले में वीरगति को प्राप्त हुए जवानों के लिए ग़ज़ल/मुक्तक लेखन हो इस बह्र/मिसरे पर तो सबसे अच्छा*

*🌼 मिसरा- नही जानते वो जमीनी हकीकत......*

🌸 वज़्न -  122   122   122   122

🌸 क़ाफ़िया— अत् स्वर
🌼रदीफ- गैर मुरद्दफ..

🌼क्वाफी के उदाहरण:-
हकीकत मुहब्बत चाहत लानत इबारत तिजारत जियारत हरारत वकालत अदालत वगावत
आदि।

~~~~~~~~~~~~~.
गीत-

1-मुहब्बत की झूठी कहानी पे रोए..
2 -तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ..
3-मुहब्बत अब तिजारत बन गई है..
4-अकेले अकेले कहाँ जा रहे हो...
5-मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू..
6-जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा..
7-वो जब याद आए बहुत याद आए..

तो आइये आप सब का इंतज़ार कर रही है फ़िलबदीह की नये दिलनशीं शाम ....पढ़ें,कहें व एक दूसरे की हौसला अफ़्ज़ाई करें।
🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃

*नियमित मुक्तकाल~ शाम ६ से प्रात: ६ बजे तक*
(इस दौरान विषयेतर सर्जन मान्य है |)
*========================*

            *मंच संचालक*
*आ० दिलीप कुमार पाठक'सरस'*

           *सह मंच संचालक*
         *आ०...................*

    *विधि संचालक/विशेष समीक्षक*
     *आ० विकास भारद्वाज जी*

       *गजलगुरु/मुख्य समीक्षक*
   *आ० शैलेन्द्र खरे " सोम " जी*

            *अनुशासन प्रमुख*
     *आ० नीतेन्द्र सिंह भारत जी*

                  *प्रबंधन*
*आ० कौशल कुमार पाण्डेय 'आस' जी*

🔱🌻🌻 💧🌻🌻💧 🌻🌻🌻🔱
*द्वारा~ विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत रजि. कोड सं.3011*

           🙏 जय-जय 🙏

Wednesday, February 27, 2019

विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत का पटल

https://youtu.be/Dnqu-YTGpdk

*_विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत_*

*विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत* के तत्वावधान में आप सभी के लिए लेकर आये है। एक *सुनहरा अवसर* जो आपको साहित्य के क्षेत्र में एक नयी पहचान देगा।
               BHARAT  & BHARAT चैनल पर हम आपके द्वारा रचित सभी विधाओ को जैसे:- गीत,ग़ज़ल, मुक्तक,छंद,कविताऐ और कहानियों को  प्रसारित करेंगे। आप अपनी रचनाओं का आनंद ले सकते है। अपने You Tube चैनल BHARAT & BHARAT  पर।

BHARAT & BHARAT  चैनल को *सब्सक्राइब* करना न भूलें।

नोट:-
● संक्षेप परिचय।
● एक फोटो।
● रचना:- ऑडियो/विडियो।

धन्यवाद

निवेदक:-
नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
प्रदेश अध्यक्ष
विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत
छतरपुर मध्यप्रदेश इकाई
व्हाट्स ऐप नं.8109643725
Email:- neetendrasinghparmar15@gmail.com

Monday, February 25, 2019

राधेश्यामी छंद ( मत्त सवैया )

◆राधेश्यामी छंद(मत्त सवैया)◆

विधान-
32 मात्राएँ प्रति चरण,16,16 यति,
चरणान्त गुरु।दो-दो चरण समतुकांत।

किसने शिव सायक भंग किया,
           जड़ जनक अभी दे बता मुझे।
जो मुझसे तनिक छुपायेगा,
                 रिस मेरी है सब पता तुझे।।
हो वेग सभासद सावधान,
                मैं जो कहता हूँ सुनो सभी।
आये वो शिव द्रोही सम्मुख ,
                   मारा जायेगा यहीं अभी।।

सुन जनक राज्य की सीमा लगि,
                    पलटा दूँगा मैं धरनी को।
मैं नहीं किसी की बात सुनूँ,
               तुम भोगोगे निज करनी को।।
अब रोक सकेगा मुझे कौन,
                    इच्छा से आता जाता हूँ।
क्षत्रिय कुल नाशी अति क्रोधी,
                    मैं परशुराम कहलाता हूँ।।

नृप लगे काँपने सब थर-थर,
                  करजोर यथावत खड़े रहे।
आये लगि दंड प्रणाम करत,
             मिथिलेश विनय कर बैन कहे।।
हे भगवन दया दृष्टि होवे,
              शुभ औसर कृपा अपार करो।
मम धन्य भाग्य पदरज पाई,
              आकर आसन स्वीकार करो।।

                           ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

Saturday, February 23, 2019

Abbreviations

https://youtu.be/zagr9osRW9I

Abbreviations- A - Z

A:- https://youtu.be/aRNnNgVib-8

B:-https://youtu.be/cr-aeReOkrY

C:- https://youtu.be/lpaToVdpWts

D:- https://youtu.be/zM5gJC0ZAhw

E:- https://youtu.be/AdOCqkV5Y4A

F:-https://youtu.be/s0JjejGXKUs

G:- https://youtu.be/82XmEeQ4k8k

H:- https://youtu.be/09KrZIHhzPI

I:- https://youtu.be/sqvcqAx9WOw

K:- https://youtu.be/2sz-H3Rz3Cs

L:- https://youtu.be/IkvsXzXeyAw

M:- https://youtu.be/1G_oeMB4RP0

N:- https://youtu.be/kXar3D_ioX0

O:- https://youtu.be/prO_UlGaIzg

P:- https://youtu.be/Wsye4F85bNQ

R:- https://youtu.be/TIm34D8uN78

S:- https://youtu.be/spXQTp6r2OY

T:- https://youtu.be/chhCJfaK4iM

U:- https://youtu.be/I-ve06Mzcbo

V:- https://youtu.be/cWAsLgAmxJM

W:- https://youtu.be/jColwcGoQEk

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Neetendra Singh Parmar
From Chhatarpur M.P.
contact me:- 8109643725

Friday, February 22, 2019

आ० हीरालाल यादव जी

2122 1212 22

अपनी पलकों पे आब रखता हूँ।
ग़म, खुशी का हिसाब रखता हूँ।

पढ़  के  दो चार हर्फ टूट गये?
ग़म की पूरी किताब रखता हूँ।

पूछ  कर  देखिए  कभी मुझसे
याद  सारे   जवाब   रखता  हूँ।

रोज   दो  चार  घूँट  हूँ   पीता
मैं  वफ़ा  की शराब  रखता हूँ।

मानता  हूँ अज़ीज़  सब को ही
किस से रिश्ता खराब रखता हूँ।

जानता  हूँ  दगा   कहाँ   पाया
दिल में  सारे  सराब  रखता हूँ।

               हीरालाल

Thursday, February 21, 2019

भारत के गद्दार हो तुम :- नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "

विषय:- *देश के गद्दार*

खाते नमक हमारे घर का,
गीत पाक के गाते है।
इंकलाब के स्वर गूंजे जो,
उनको कभी न भाते है।।

झूठी कसमें दूषित वाणी,
झूठे सभी इरादे है।
सच्चाई को झूठा कहते,
झूठे उनके वादे है।।

एक  बार फटकार लगा दो,
भारत माँ के लाल हो तुम।
महाकाल को रटने वाले,
बैरी दल को काल हो तुम।।

छिपकर बैठे घर में  अपने,
उनको बाहर लाना है।
क्रूर कुकर्मी पाखंडी को,
नर्क लोक पहुंचाना है।।

जिसको दूध पिलाया हमने,
उसी नाग ने काटा है।
हिन्दु मुस्लिम सिक्ख ईसाई को,
आपस में बांटा है।।

मक्कारी दिखलाई  तुमने बहुत,
बड़े मक्कार हो तुम।
भारत देश में रहते हो पर,
भारत के गद्दार हो तुम।।

नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
छतरपुर  ( मध्यप्रदेश )
सम्पर्क सूत्र :- 8109643725

गज़ल़ वीर सैनिक ने रचा...

*ग़ज़ल*

बहर:- 2122 2122 212
रदीफ़- है।
काफ़िया:- आस।

वीर सैनिक ने रचा इतिहास है।
जिन्दगी से दूर दिल के पास है।।

जान भी कुर्बान कर दी शान से।
आम से तब बन गया वो खास है।।

बढ़ रही है पीर भारत देश की।
कम करें मिलकर यही विश्वास है।।

क्यों नहीं करते हिफाज़त मुल्क की
बढ़ रही हिंसा मुझे आभास है।।

वीरता के गीत *भारत* गा रहा।
भारती के भाव में ही वास है।।

नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
छतरपुर  ( मध्यप्रदेश )
सम्पर्क सूत्र :- 8109643725

Wednesday, February 20, 2019

साहित्य एक्सप्रेस :- नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "








*साहित्य एक्सप्रेस*

साहित्य एक्सप्रेस मासिक पत्रिका के संपादक *आ० भानू शर्मा जी* के स्नेह से मुझे *छतरपुर जिला* का प्रतिनिधि बनाया तथा हमारी  रचना *" हमारी शान है हिंदी"* को पत्रिका में स्थान  दिया।
                   हम प्रकाशक एवं संपादक मंडल का हृदय से आभार प्रकट करते हैं। इसी तरह स्नेह बनाये रखे।

  नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
  छतरपुर  ( मध्यप्रदेश )
  सम्पर्क:- 8109643725


Sunday, February 17, 2019

गीत पुलवामा हमले पर आ० शैलेन्द्र खरे "सोम" जी

पुलगामा में शहीद वीर सपूतों को नमन करते हुए हृदयोद्गार.........

◆गीत◆

बातों से कब तक समझाएं
                          इन लातों के भूतों को
आखिर कैसे सहन करें हम
                         इन काली करतूतों को.....

तोपों तलवारों की अब तो
                      लगी जंग हट जाने दो।
दुश्मन की लाशों से सारी
                     घाटी अब पट जाने दो।।
सहनशीलता बहुत हुई अब
                       केवल जंग जरूरी है।
शांति समर्थक के सम्मुख अब
                         रक्तपात मजबूरी है।।
क्या ऐसे ही सदा रहेंगे
                             गिनते हम ताबूतों को...

अक्षरधाम,उरी,पुलवामा,
                      संसद तक दहशतगर्दी।
शर्म नहीं आती है उनको
                          करते जो ये नामर्दी।।
कुछ तो नमक हराम मिले हैं
                    जाकर दुश्मन के दल से।
अपने बनकर ही अपनों को,
                       मरवाते हैं जो छल से।।
रहे भारती कबतक खोती
                                यूँ ही वीर सपूतों को....

उनका जीना कैसा जीना
                    जिन्हें वतन से प्यार नहीं।
इस पावन धरती उनको
                     मरने का अधिकार नहीं।।
गंदा रक्त गिरा तो ये
                        धरती गंदी हो जाएगी।
महक त्याग की जो इस रज में
                        शायद वो खो जाएगी।।
भारत माता निज गोदी में
                             रखती नहीं कपूतों को...

शस्य श्यामला भारत भू से
                   कुछ तो पापी कम कर दो।
सीमा से बाहर ले जाकर
                   उनके शीश कलम कर दो।।
बढ़ो साथियो सीमा लांघो
                       अपना फर्ज निभाना है।       
पाकिस्तान दुष्ट का अब तो
                       जग से नाम मिटाना है।।
शंखनाद कर देते न्यौता
                          "सोम" आज यमदूतों को...

                                  ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

Saturday, February 16, 2019

मरहम

मरहम बन जाऊं माँ तेरा हम शीश कटाने निकले हैं।
जिन्ना की औलाद नही हम भारत  माँ के बेटे हैं।।

नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
छतरपुर  ( मध्यप्रदेश )

नर्सिंग का जीवन


  नर्स का जीवन

जानते सभी हैं बात,रहते हैं संग साथ।
बीमारी कराते दूर,नर्स करे काम हैं।।

सुबह से शाम तक,छोड़ती हैं घर द्वार।
सेवा में लगाती मन,होता नही नाम हैं।।

नींद नही लेती कभी,दौड़ भाग करे सभी।
मरीजो के हित में तो,बात यही आम हैं।।

अस्पताल मंदिर समान मुझे लगता हैं।
नर्स इसे मानती हैं,देखो चारो धाम हैं।।

- नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
छतरपुर ( मध्यप्रदेश )
सम्पर्क :- 8109643725

भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की :- नीतेन्द्र सिंह परमार










*श्रध्दांजलि अर्पित*

पुलवामा हमले में शहीद हुये जवानों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए नर्सिंग छात्र छात्राओं ने शांति पूर्वक कैंडल मार्च निकाले जिसमें सौ से अधिक छात्र छात्राओं हिस्सा लिया। कैंडल मार्च स्वामी विवेकानंद नर्सिंग कॉलेज चौबे कॉलोनी से होते हुये, पन्ना नाका और फिर पुलिस लाइन पर स्थित अमर जवान शहीद स्मारक तक। वहा पर जाकर सभी छात्र छात्राओं ने साथी ही नर्सिंग स्टाॅफ भी व्यापक रूप से मौजूद था। सभी ने भावपूर्णक श्रद्धांजलि दी साथ ही पुष्प अर्पित किये साथ ही कैंडल जलाकर आँसू पूर्ण भाव व्यक्त किये।। जिसमें दो मिनट का सभी ने मौन धारण किया। वापिस महाराजा छत्रसाल यूनिवर्सिटी से होते हुये गर्ल्स कॉलेज के समीप भारत माता चौराहे पर भारत माता को माला पहनाकर भाव व्यक्त किये। कैंडल मार्च समाप्त किया।सभी ने शहीदों के प्रति आँसू पूर्ण भाव अर्पित किये।
शत् शत् नमन वंदन शहीदों के चरणों में।

नीतेन्द्र सिंह परमार
छतरपुर मध्यप्रदेश 

Wednesday, February 13, 2019

आ० शैलेन्द्र खरे सोम जी

सभी मित्रों को पावन पर्व राम नवमी की अनंत शुभकामनाएँ हार्दिक बधाईयाँ~ जय सियाराम💐🍀🌺🌸👏👏👏👏👏👏

*∆∆∆इक्कीस छंदीय श्री राम-स्तवन∆∆∆*

*1-◆शुभमाल छंद◆*
शिल्प:-
[जगण जगण(121 121),
दो-दो चरण तुकांत,
6वर्ण प्रति चरण]

सिया    भरतार।
करें  भव   पार।।
अनेक    प्रकार।
करो     मनुहार।।

==========

*2-◆कुसुम छंद◆*
विधान~
[ नगण  नगण लघु गुरु]
( 111   111  1    2)
8 वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

सिय  रघुपति भजो।
सकल कुमति तजो।।
जरत   जगत   सबै।
कछुक  समय  अबै।।

============

*3-◆बुद्बुद छंद◆*
विधान~
[ नगण जगण रगण]
(111  121  212)
9 वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

रघुपति  जू  निहारिये।
गति अब तो सुधारिये।।
नमन  करूँ  अधीन हूँ।
सकल  प्रकार  दीन हूँ।।

==============

*4-◆मानस छंद◆*
विधान~
[नगण यगण भगण सगण]
(111  122  211 112)
12 वर्ण,यति 6,6 वर्णों पर
4 चरण,दो-दो चरण समतुकांत।

चरण पखारूँ,श्री रघुपति के।
पटल उघारौ,मो जड़मति के।।
भव भय टारौ, संकट हर लो।
चरनन  मोहे, चाकर कर लो।।

===================

*5-◆मनोरम छंद◆*
विधान-प्रति चरण 14 मात्राएँ
2122 2122

राम  जू   अब   तो  निहारौ।
नाथ   गति   मोरी   सुधारौ।।
दास     शरणागत    बचाये।
प्रभु सुजस अस लोक गाये।।

==================

*6-◆द्रुतपद छंद◆*
विधान~
[ नगण भगण नगण यगण ]
(111   211  111  122)
12वर्ण,4 चरण,यति 4,8 वर्णों पर
दो-दो चरण समतुकांत]

अवधनाथ   दशरथ    दुलारे।
सब   प्रकार  समरथ  सहारे।।
पद पखार विनय नित कीजे।
प्रभु उदार  शरण  गह लीजे।।

===================

*7-◆ रुचिरा(२) छंद◆*
विधान~
[ भगण तगण नगण गुरु गुरु]
( 211   221  111  2  2)
11वर्ण,4 चरण,यति 5-6वर्णों
पर,दो-दो चरण समतुकांत]

कौशलराजा,रघुपति प्यारे।
साधक तारे, असुर  विदारे।।
नित्य मनाऊँ,नमन करूँ मैं।
सुंदर  झाँकी, हृदय धरूँ मैं।।

=================

*8-◆सुमति छंद◆*
विधान-
नगण रगण नगण यगण
(111 212 111 122)
2-2चरण समतुकांत,4चरण।

द्रवहुँ  राम  जू  नमन करूँ मैं।
छवि अनंत  ये  हृदय धरूँ मैं।।
सब प्रकार चाकर तव स्वामी।
चरण चापता  नित अनुगामी।।

==================

*9-◆पवन छंद◆*
विधान~
[भगण तगण नगण सगण]
(211   221  111  112)
12 वर्ण प्रति चरण,यति{5,7}
4 चरण,2-2 चरण समतुकांत।

सोचत काहे, रघुपति  भज ले।
जापत जा रे,भव भय तज ले।।
सुंदर   कैसे, कमल   नयन जू।
राघव  कीजे,  हृदय  सयन जू।।

====================

*10-◆चन्द्रिका छंद◆*
विधान-
नगण नगण तगण तगण गुरु
(111 111 221 221  2)
2-2चरण समतुकांत,7,6यति।

सुखमय लगता, नाम भी आपका।
हिय महुँ रुचता,काम भी आपका।।
उरपुर   बसिये, है  यही   कामना।
भव भय मुझको, रामजी  थामना।।

=====================

*11-◆इन्दिरा छंद◆*
विधान-
[नगण रगण रगण+ लघु गुरु]
111 212  212    12,
चार चरण,दो-दो चरण समतुकांत।

सुजन आज क्यों देर कीजिये।
चरण  राम  के  पूज  लीजिये।।
अधम  दीन   तारे  कृपालु  हैं।
जगत   के   सहारे   दयालु हैं।।

===================

*12-◆तोटक छंद◆*
विधान~
4 सगण/चरण, चार
चरण,दो-दो चरण स्मतुकांत।

भव  भेषज  श्री  रघुनाथ  लला।
सिय  सोहत  संग  अनूप कला।।
लख या छवि को मन होत मुदा।
रहिये  उर  राजत   नाथ   सदा।।

बरनै गुन  ते  कवि  कोबिद को।
उर  के  पुर  में  सिय संग बसो।।
जस तीनहुँ  लोकन  में जिनको।
पद चाकर "सोम" सदा तिनको।।

=====================

*13-◆चौपई/जयकारी/जयकरी छंद◆*
विधान~
चार चरण,प्रत्येक चरण में 15 मात्राएँ,
अंत में गुरु लघु।दो-दो चरण समतुकांत।

जय  हो   श्री  राघव सरकार।
त्रिभुवन   महिमा  अपरम्पार।।
मर्यादा      पुरुषोत्तम   आप।
करते   समन  सकल  संताप।।

पुनि पुनि नावहुँ चरणन शीश।
करिये    कृपा   कौसलाधीश।।
"सोम"झुकाये निश दिन माथ।
मोरे   हृदय   बसहुँ   रघुनाथ।।

====================

*14-◆चंचला छंद◆*
विधान~
[रगण जगण रगण जगण रगण + लघु]
(212  121  212 121   212    1)

राम जू  दयानिधान  मोहिं  दीजिये  उबार।
शारदा  जपें  अनंत  संत  भी  करें पुकार।।
प्रार्थना  यही करूँ  झुकाय शीश बार-बार।
"सोम" एक बार  दीन बंधु लीजिये निहार।।

==========================

*15-◆घनमयूर छंद◆*
विधान~
[ नगण नगण भगण सगण रगण लघु गुरु]
(111   111  211  112  212   1   2)
17वर्ण,4 चरण, {7,6,4 वर्णों पर यति}
दो-दो चरण समतुकांत।

दशरथ  सुत  जू,  अवध  दुलारे, मनै  भजो।
भरम  जगत  के, उलझत  जाते, सबै तजो।।
हर सुख  मिलता, पद रज पाके, विचार लो।
अनुपम लगती,छवि प्रभुजी की, निहार लो।।

===========================

*16-◆असंबधा छंद◆*
विधान~
[ मगण तगण नगण सगण+गुरु गुरु]
(222  221  111  112   22)
14 वर्ण,4 चरण,
दो-दो चरण समतुकांत]

कैसी ये  माया  सब जगत नचाती है।
देती है क्या साथ विलग रह जाती है।।
भूला  काहे  झंझट तज जग के सारे।
मानो मेरी  तो  गुण  रघुपति के गा रे।।

=======================

*17-◆चंडी छंद◆*
विधान-
नगण नगण सगण सगण गुरु
(111 111 112  112 2)
दो-दो चरण समतुकांत,4 चरण।

चित धर भज रघुनाथ लला को।
विष सम गिन हर झूठ कला को।।
नर तन धर शुभ कार्य किये जा।
अमिय सरस रस सोम पिये जा।।

भज रघुपति  हर  काम बिहाई।
सब विधि सुलभ  सबै सुखदाई।।
कुछ  परहित  कर  ले उर लाई।
सच  यह  जगत  बड़ा दुखदाई।।

======================

*18-◆चंचरी छंद◆*
विधान-
(12,12,12,10 मात्राओं पर यति,
4 चरण,दो-दो चरण समतुकांत,चरणान्त गुरु)

अजा गजा गिद्ध सिद्ध,
   राम  जू   उबार  दये,
       द्रवहुँ  सो  दीनानाथ,भव से उबारिये।
राखौ जू शरण मोहिं,
    आन आसरौ न कोय,
       चरणों में पड़ा दीन,अब तो निहारिये।।
जानौं दीन हीन गति,
   राम जू   सुधार  दई,
       सियानाथ  मोरी गति,तैसइ सुधारिये।
सुनिये  पुकारे "सोम",
   कौशलकिशोर  जू सो,
       नेह को  निमंत्रण है,हिय में पधारिये।।

============================

*19-◆चौपइया छंद [सम मात्रिक] ◆*
विधान~
{4 चरण समतुकांत,प्रति चरण 30 मात्राएँ,
प्रत्येक में 10,8,12मात्राओं पर यति 
प्रथम व द्वितीय यति समतुकांत, 
जगण वर्जित,प्रत्येक चरणान्त में गुरु(2),
चरणान्त में दो गुरु होने पर यह छंद 
मनोहारी हो जाता है।}
          
कलु कलुष निकंदन,दशरथनंदन,
                         कौशिल्या  के  लाला।
सन्तन हितकारी , अवधबिहारी,
                         मानस   मंजु मराला।।
वंदहुँ तव चरणा,भवभय हरणा,
                       सेवत सकल भुआला।
गावहुँ  गुन  ग्रामा ,पूरण-कामा,
                       सुंदर "सोम" कृपाला।।

==========================

*20-◆रसाल छंद◆*
विधान~
[भगण नगण जगण भगण जगण जगण+लघु]
(211  111  121  211  121 121  1)
19 वर्ण , 9 ,10 वर्णों पर यति ,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत।

राघव   रघुपति  राम,  आप  सबके  दुख टारन।
हे जगपति  सुखधाम, नाथ  सब काज सँवारन।।
जापत सियहि समेत, दास   पद  पंकज चाकर।
गावत गुन गन नित्य,"सोम"निज शीश नवाकर।।

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*21-◆मकरन्द छंद◆*
विधान~
[ नगण यगण नगण यगण नगण नगण नगण नगण गुरु गुरु]
(111122,111122,11111111,111122)
26 वर्ण,4 चरण,यति 6,6,8,6,वर्णों पर
दो-दो चरण समतुकांत]

अवध दुलारे, जगत  सहारे,
             पुनि पुनि  प्रनवउँ,तव गुण गाऊँ।
सब विधि सेवा,करहहुँ देवा,
             सकल जगत तज,पद रज पाऊँ।।
द्रवहुँ दयाला, परम कृपाला,
              सुमिरिहुँ मन महुँ ,अति हरषाऊँ।
रहहुँ  ससंकू,बड़  मति रंकू,
           कहहुँ विमल जस,अनुदिन ध्याऊँ।।

                                ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

छंद - शैलेन्द्र खरे "सोम" जी

1◆ रसाल छंद ◆
विधान~
[भगण नगण जगण भगण जगण जगण+लघु]
(211  111  121  211  121 121  1)
19 वर्ण , 9 ,10 वर्णों पर यति ,
4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत।
हे प्रभु  रघुपति  राम,  आप  सबके  दुख टारन।
हे जगपति  सुखधाम, नाथ  सब काज सँवारन।।
जापत सियहि समेत, दास   पद  पंकज चाकर।
गावत गुन गन नित्य,"सोम"निज शीश नवाकर।।
                                    ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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2◆ शोकहर/सुभंगी छंद ◆
विधान~[8,8,8,6 मात्राओं पर यति,पहली दूसरी
            यति अंत तुकान्त,चार चरण समतुकांत]
नंददुलारे, सबके  प्यारे , हे   मनमोहन,  बनवारी।
जग प्रतिपाला, हे गोपाला, हे गोविंदा, गिरिधारी।।
घट घट वासी,हेअविनाशी,हे सुखरासी,शुभकारी।
धेनु चरैया, वेणु बजैया,"सोम"सदा मैं, बलिहारी।।
                                      ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
____________________________________
3◆रूपमाला/मदन छंद [सम मात्रिक]◆

विधान–[24 मात्रा,/14,10 पर यति,
आदि-अंत में वाचिक भार 21,चरण 4,
क्रमागत दो-दो चरण तुकान्त]

रामदूत हे पवनतनय ,
                         मतिधीर बजरंग।
बास करत हैं हिरदे में,
                       प्रभु जानकी संग।।
अंजनेय जू बल सागर,
                          चतुर विद्यावान।
"सोम"मनावत सिर नावत,
                       कपीश्वर हनुमान।।
                    ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
___________________________________
4◆ चंचला छंद◆
विधान~
रगण जगण रगण जगण रगण + लघु
वार्णिक मापनी 212 121 212 121 212 1 कुल 16 वर्ण
या
वाचिक मापनी 2121  2121  2121 2121 कुल 16 वर्ण

राम जू  दयानिधान  मोहि  दीजिये  उबार।
शारदा  जपें  अनंत  संत  भी  करें पुकार।।
नाथ अर्ज आप से  झुकाय शीश बार बार।
"सोम" एक बार  दीन बंधु लीजिये निहार।।
                              ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
___________________________________
5◆ त्रिभंगी छंद [सम मात्रिक] ◆
विधान~ [32 मात्रा,10,8,8,6 यति,
            चरणान्त में गुरु,कुल चार चरण,
             क्रमागत दो-दो चरण तुकांत,
             पहली2 या3 यति पर तुकांत]

हे करुणासागर,सब विधि आगर,
                  नटवर नागर,सुखपुंजा।
हे जगत नियंता,अति सुखवंता,
                  नमत अनंता,पदकंजा।।
जिन चरितअनूपं,शक्तिस्वरूपं,
                   अनुपम रूपं,मनहारी।
सो नाथ गुनाकर, द्रवहुँ दयावर,
            "सोम"सुधाकर,सुखकारी।।
                      ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
___________________________________
6◆ कलाधर छंद ◆
विधान---गुरु लघु की पंद्रह आवृति और एक गुरु।
अर्थात 2 1×15 तत्पश्चात एक गुरु।
इस प्रकार 31 वर्ण प्रति चरण।

योग भूमि भारती पुकारती सुनो पुकार,
         जन्म ये सवाँरिये सुजोग राज योग से।
गेह गेह जाय जाय लोक में करो प्रचार,
      काम क्रोध लोभ मोह दूर हो कुजोग से।।
चित्त हो प्रसन्न आप स्वस्थ्य भी रहे सदैव,
       खूब रूप रंग ओज दुःख के वियोग से।
बात ये अमोघ होय,गाँव गाँव योग होय,
     विश्व हो निरोग"सोम"मुक्त आप रोग से।।
                                ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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7*बरवै छंद*
शिल्प~[सम पदों में12 मात्राएँ विषम
             पदों में 7 मात्राएँ]

हे   दामोदर    दुखहर  ,  दीनदयाल।
भव भेषज भयहारी,भजत भुआल।।
नैनन  नटखट  नटवर ,यशुदा  लाल।
द्रवहुँ दयानिधि मो पर, होहुँ कृपाल।।

मनभावन  मधुसूदन  , हे  जगपाल।
माधव  मोहन  मानस , मंजु मराल।।
केशव गिरिधर करदो,मोहिं निहाल।
"सोम"श्यामसुन्दर जू,लेहुँ सम्हाल।।
                   ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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8◆ कनक मंजरी छंद ◆
शिल्प~
[4 लघु+ 6भगण (211)+1गुरु] = 23 वर्ण
चार चरण समतुकांत]
                     या
{1111+211+211+211
                      211+211+211+2}

अनहक ही मनमोहन छेड़त
                   नीति भरे कछु ढंग नहीं।
चल हट मैं इकली सुन केशव
                 हैं सखियाँ सब संग नहीं।।
नटखट रे मधुसूदन माधव
                  मोहि करो अब तंग नहीं।
छलबल मैं नहि जान सकूँ कछु
                  भावत श्यामल रंग नहीं।।
                        ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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9◆अहीर छंद◆
विधान~प्रति चरण 11 मात्राएँ,
            चरणान्त जगण(121),
             [दो दो चरण तुकांत।]

करिये तनिक विचार।
अपनी मति अनुसार।।
            सभी   करें  सहयोग।
            तन मन होय निरोग।।
कितने  घातक  रोग।
समझेंगे  कब लोग।।
               बढ़ते जाय विकार।
               पर्यावरण   सुधार।।
              ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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10◆ कर्ण छंद ◆

शिल्प~[ 13,17 यति,
30 मात्राएँ चरणान्त में 2 गुरु,
सम तुकांत 4 चरण]

सुन लीजे रघुनाथ जू,
               भरा भरम मन का मार लूँगा।
जन्मों की बिगड़ी दशा,
                हे नाथ अब मैं सुधार लूँगा।।
झाँकी अनुज सिया सहित,
              आज मैं जी भर निहार लूँगा।
करिहौ गंगा पार फिर,
           "सोम" पहले पद पखार लूँगा।।
                          ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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11◆ वसन्ततिलका छंद ◆
शिल्प~[तगण भगण जगण जगण +2 गुरु]

श्री रामचन्द्र  सुन  लो सरकार  मेरी।
मैं  दीन दास अब  नाथ करो न देरी।।
हे सीय नाथ  कुछ और नही मगाऊँ।
मैं आपकी खबर सोम न भूल पाऊँ।।
                        ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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12◆सार छंद [सम मात्रिक]◆

विधान ~ 28 मात्रा, 16,12 पर यति,
अंत में वाचिक भार 22, कुल चार चरण,
[क्रमागत दो-दो चरण तुकांत ]

जबसे  तुमको  अपना मैंने,
                        मान लिया गिरिधारी।
केवल याद किया है तुमको,
                      सबकी सुरत बिसारी।।
मुझको सदा शरणमें रखना,
                          मोहन मदन मुरारी।
'सोम"श्यामकी श्यामल छबिपर,
                          मैं जाऊँ बलिहारी।।
                          ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
___________________________________
13◆सरसी/कबीर/सुमंदर छंद [सम मात्रिक]◆

विधान ~[ 27 मात्रा, 16,11 पर यति,
            चरणान्त में 21,कुल चार चरण,
                क्रमागत दो-दो चरण तुकांत]

सोमनाथ भोले शिवशंकर,
                           मस्तक सोहे सोम।
नीलकण्ठ भये कण्ठ में जब,
                         राखा सोम-विलोम।।
केशों से कल कल कर बहती,
                          निर्मल शीतल गंग।
"सोम"सुहावन निरखत लगते,
                         आप सती के संग।।
                         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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14◆ चौपई छंद ◆

इस छंद को जयकरी अथवा जयकारी छंद के नाम से भी जाना जाता है..
विधान~ चार चरण, सम मात्रिक,
प्रत्येक चरण में 15 मात्राएँ।
अंत में गुरु लघु वर्ण

जय  हो   श्री  राघव सरकार।
त्रिभुवन   महिमा  अपरम्पार।।
मर्यादा      पुरुषोत्तम   आप।
करते   समन  सकल  संताप।।

पुनि पुनि नावहुँ चरणन शीश।
करिये    कृपा   कौसलाधीश।।
"सोम"झुकाये निश दिन माथ।
मोरे   हृदय   बसहुँ   रघुनाथ।।

             ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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15◆नित छंद◆

शिल्प~ प्रति चरण बारह मात्राएँ। अंत में लघु गुरु(12) या नगण(111)।दो दो चरण तुकांत।

छबि लख मनमोहन की।
बिसर गई सुध तन  की।।
अति  सुंदर स्यामल तन।
मतवाले    बड़े    नयन।।

       ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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16* चामर छंद *
शिल्प~[रगण जगण रगण जगण रगण]

राम  राज  में  समाज  यूं  प्रसन्न  हो  गया।
आज ये सभी कहें कि जन्म धन्य हो गया।।
नैन  धन्य  होय  रूप  राम  का  निहार लो।
सीय  संग  राम "सोम" आरती  उतार  लो।।

                         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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17◆उड़ियाना छंद [सम मात्रिक]◆

विधान–[प्रति चरण  22 मात्रायें,
12,10 पर यति।अंत में एक ही गुरु।
चार चरण,क्रमागत दो-दो चरण तुकांत।]

श्याम छली रोक लेत,
                  रोज क्यों डगरिया।
पटक देत धरन धूरि,
                   दही की गगरिया।।
होत है अबेर मोहिं,
                    दूर   है  नगरिया।
"सोम" आज रोक नही,
                   छोड़ दे चुनरिया।।

                 ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
___________________________________
18◆ शंखनादी/सोमराजी छंद ◆
शिल्प~[यगण यगण(122 122),
           दो-दो चरण तुकांत,6वर्ण]

          सभी   के   सहारे।
          यशोदा      दुलारे।।
          सदा   शीश  नाऊँ।
          तुम्हीं को रिझाऊँ।।

          कृपा  कोर  कीजे।
          बना  दास  लीजे।।
          भला चाहता  जी।
          हुआ   सोमराजी।।

                  ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
___________________________________
19◆विद्धुल्लेखा/शेषराज छंद◆
शिल्प:- [मगण मगण(222 222),
दो-दो चरण तुकांत,6वर्ण]

छोड़ो  सारी माया।
माटी की ये काया।।
बोलो  राधेश्यामा।
पाओगे  विश्रामा।।

बोलो  मीठे  बैना।
नीचे  राखौ  नैना।।
शाकाहारी खाना।
गाओ मीठे गाना।।

    ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
___________________________________
20◆तिलका छंद◆
शिल्प:- सगण सगण (112 112),
[दो-दो चरण तुकांत, 6वर्ण]

            वन   राम  चले।
            तज  धाम भले।।
            सुकुमारि कली।
            सिय संग चली।।

अपना      अपना।
सब    है   सपना।।
इसका      उसका।
जिसका  किसका?

अब    गौर   करो।
पर    पीर     हरो।।
तज   झूठ   कला।
कर  "सोम" भला।।

         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
___________________________________
21◆विद्धुल्लेखा/शेषराज छंद◆
शिल्प:- [मगण मगण(222 222),
दो-दो चरण तुकांत,6वर्ण]

छोड़ो  सारी माया।
माटी की ये काया।।
बोलो  राधेश्यामा।
पाओगे  विश्रामा।।

बोलो  मीठे  बैना।
नीचे  राखौ  नैना।।
शाकाहारी खाना।
गाओ मीठे गाना।।

    ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
___________________________________
22◆विमोहा छंद◆
शिल्प:- [रगण रगण(212 212),
दो-दो चरण तुकांत, 6 वर्ण]

जो हुआ हो गया।
दौर   आगे  नया।।
भूल  से  सीखना।
हारना   है   मना।।

हार  है  जीत  है।
राग  है  गीत  है।।
बैर   है  प्रीत  है।
राह  की रीत  है।।

आप  ये  जानिये।
काज जो ठानिये।।
कल्पनायें    गढ़ो।
"सोम"आगे बढ़ो।।
          ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
___________________________________
23◆शुभमाल छंद◆
शिल्प:- जगण जगण (121 121),
दो-दो चरण तुकांत,
[6 वर्ण प्रति चरण]

जपो  हरि नाम।
सदा सुख धाम।।
मिले सुख  चैन।
कटे  तम   रैन।।

सिया    भरतार।
करें  भव   पार।।
यही  जग  सार।
न "सोम"विचार।।
       ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
___________________________________
24◆ एकावली छंद ◆
शिल्प~ प्रति चरण 10 मात्राएँ
            [5-5 पर यति]

राम का,नाम ले।
              अक्ल से,काम ले।।
मान जा, तू कही।
              बात  है , ये  सही।।
छलकपट, यूं न कर।
               तू जरा ,सोच नर।।
रख रहा, जोड़कर।
              पर नही ,ये खबर।।
तेरा न ,कुछ यहाँ।
               जा रहा, तू कहाँ।।
तुझे कुछ, भी नहीं।
             सब यहीं ,का यहीं।।
इसलिए"सोम"रे।
             जपो हरि ,ओम रे।।
           ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

___________________________________
25◆मत्ता छंद◆
शिल्प~ [(मगण भगण सगण)+गुरु]
प्रतिचरण 10 वर्ण, चार चरण,
दो-दो चरण समतुकांत।
यति प्रायः 4, 6 वर्ण पर।

222  211  112  2

चापौं  भोले,चरण तिहारे।
दीजे  मोहे , शरण सहारे।।
गंगा धारी, सुमिरत जाऊँ।
दाता संभू,निशदिन गाऊँ।।
         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
___________________________________
26◆वामा छंद◆
शिल्प~ [(तगण यगण भगण)+गुरु]
प्रतिचरण 10 वर्ण चार चरण,
दो-दो चरण समतुकांत।

221  122   211   2

             (१)
ये मानुष  तेरा  ठौर  नही।
तू तो  करता ये गौर नही।।
काहे  करता  है पाप यहाँ।
भोगे सब तू ही आप यहाँ।।

            (२)
होते जब भारी पाप जहाँ।
हे  नाथ सहारे आप वहाँ।।
रक्षा  कर  लेते  दीन  गहे।
ये"सोम"सदा आधीन रहे।।

         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
____________________________________
27◆मरहटा छंद ◆
शिल्प~[10,8,11 ] मात्राएँ, इसी प्रकार यति।चरणान्त में गुरु लघु(21),चार चरण तुकांत।

कलु कलुष निकंदन,दशरथनंदन,
                         कौशिल्या  के  लाल।
सन्तन हितकारी , अवधबिहारी,
                         मानस   मंजु मराल।।
वंदहुँ तव चरणा,भवभय हरणा,
                        सेवत सकल भुआल।
गावहुँ  गुन  ग्रामा ,पूरण-कामा,
                        सुंदर "सोम" कृपाल।।
                         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
____________________________________
28◆ इन्दिरा छंद ◆

शिल्प- [नगण रगण रगण+ लघु गुरु]या 111 212 212 12,प्रति चरण ग्यारह वर्ण,चार चरण,दो दो चरण समतुकांत।

सुजन आज क्यों देर कीजिये।
चरण  राम  के  पूज  लीजिये।।
अधम  दीन   तारे  कृपालु  हैं।
जगत   के   सहारे   दयालु है।।
               ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
____________________________________
29◆ मंदाक्रान्ता छंद ◆
विधान~ [{मगण भगण नगण तगण तगण+22}
( 222  211  111  221  221 22)
17 वर्ण, यति 4, 6,7 वर्णों पर, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]

वाणी ही  है, सरस  सबसे,तौलके  आप  बोलो।
सो वाणी से,अमिय मनमें,आप भी नित्य घोलो।।
जो  होते  हैं, सरल  हिरदे , मोहनी  होय  बोली।
हो जाती है ,अमर जग में,"सोम" वाचा अमोली।।
                                     ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
____________________________________
30◆ पृथ्वी छंद ◆
विधान~ [जगण सगण जगण सगण यगण+लघु गुरु]
(121 112 12, 1 112 122  12)
17 वर्ण,यति 8, 9 वर्णों पर, 4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत।

सदा  नमन  कीजिये, जगतमात  श्री  राधिका।
मनावत जिन्हें सभी, परम कृष्ण की साधिका।।
पलोटत  रहौ   सदा , चरण  ये  पखारा  करूँ।
दया करन मातु  जो, मम सहाय तो क्यों डरूँ।।

                                  ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
____________________________________
31◆ दीप छंद ◆

शिल्प~ प्रति चरण 10 मात्राएँ ,परन्तु अंतिम पाँच मात्राएँ क्रमशः नगण गुरु लघु(11121),चार चरण समतुकांत।

राम  विनय  हमार।
सुनलो मम पुकार।।
लीजे  अब  उबार।
सोम शरण तिहार।।

~शैलेन्द्र खरे"सोम"
____________________________________
32◆ नील छंद ◆

विधान~[(भगण×5)+गुरु ]
211 211 211 211 211 2
16वर्ण,यति ,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत।

हे प्रभु  साधक  साधन  साधत हार गये।
केवट  से  चरणोदक  पाकर  पार  भये।।
गौतम  नार सुहावन  हो पिय पास चली।
नित्य निहारत सो शबरी उर आस पली।।

                           ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
____________________________________
33◆ शिखरिणी छंद ◆

विधान~
[यगण मगण नगण सगण भगण+लघु गुरु]
(122  222 111  112  211 12)
17 वर्ण,यति 6,11वर्णों पर,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत।

चला लेके सीता,सठ रुक अभी युद्ध कर रे।
अनाचारी  पापी, ठहर  मन  में  दुष्ट  डर रे।।
अरे लोभी कामी,अधम छल से सीय हरके।
अभी तेरा होगा, मरण खल ये काम करके।।

                               ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
____________________________________
34◆ कुसुमविचित्रा छंद ◆

विधान~
[नगण यगण नगण यगण]
(111  122  111 122 )
12 वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत।

जगपति कीन्ही सब पर दाया।
कर कर-छाया हरि अपनाया।।
चरनन   चेरे   सुजन   मनाते।
हरि  तब  दौड़े  तुरतहि आते।।

             ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
____________________________________
35◆ भालचंद्र छंद ◆

विधान~
[जगण रगण जगण रगण जगण+गुरु लघु]
(121  212 121  212  121 21)
17 वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत।

चलो  सुजान  राह  में   सदैव   कष्ट  हैं अपार।
थको  नही  करो  प्रयत्न  राह खोज बार बार।।
बढ़ो   सदा  उमंग   से  नवीन  साधना प्रयास।
छिपा समीप लक्ष्य है,निहार"सोम"आस पास।।

                                  ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
____________________________________
36◆ मणिमाल छंद ◆

विधान~
[सगण जगण जगण भगण रगण सगण+लघु]
(112   121  121   211  212 112  1)
19 वर्ण ,10,9 वर्णों पर यति ,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत।

गुरुदेव आज अनाथ  को ,मिल जाय जो पदधूल।
सब दूर दोष  विकार हौं, प्रभु आप जो अनुकूल।।
कुछ और मागत मैं नही,लख लीजिये बस आप।
उर"सोम"है यह कामना, मिट  जाय ये भव ताप।।

                                     ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
____________________________________
37◆ मणिमाला छंद ◆

[तीव्र, उज्ज्वल, मलिकोत्तरमालिका, विवुधप्रिया,
  हरनर्तन,चर्चरी,अश्वगति छंद]

विधान~
[भगण भगण भगण भगण भगण सगण]
(211  211   211   211  211  112 )
18 वर्ण ,11,7 या 8-10 वर्णों पर यति,
4 चरण,दो-दो चरण समतुकांत।

रे मन  छोड़  असार  अनीति, गहौ प्रभु चरणा।
काम करो निज चित्त लगाय,भजौ दुख-हरणा।।
लालच  दंभ  कुभोग  समेत, नशा  सब दहिये।
श्री गुरु मात पिता पद"सोम",सदा चल गहिये।।

                                     ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
____________________________________
38◆ चंचरी छंद ◆

विधान~
[रगण सगण जगण जगण भगण रगण]
(212  112  121  121  211 212)
18 वर्ण , 8-10 या 10-8 वर्णों पर यति
4 चरण,दो-दो चरण समतुकांत।

त्रास  मोचन  राम  जू,पद नाथ  आज पखार लौं।
जो जगे मम भाग्य तो,गति नाव साथ सुधार लौं।।
पुण्य का करिहौं प्रभो, नित पाप के बल मैं पलो।
पा  गयो  पद  धूल जो, सियनाथ  केवट मैं भलो।।

                                      ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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39◆ गीतिका छंद ◆
विधान~
[सगण जगण जगण भगण रगण सगण+लघु गुरु]
(112  121  121  211  212  112  12)
20वर्ण, 10-10 वर्णों पर यति,
4 चरण,दो-दो चरण समतुकांत।

नित भोरसे जब जागिये,गुरु नामको सुमिरौ भले।
सबसिद्धकारज जानिये,सब आपकी विपदा टले।।
सबसे बड़ी  महिमा कहें,सब वेद श्री गुरु नामकी।
सुरलोकसे बड़ मानिये,रज"सोम"श्रीगुरु धामकी।।

                                        ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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40◆ शार्दूलविक्रीडित छंद ◆
विधान~ [मगण सगण जगण सगण तगण तगण+2]
(222  112   121  112   221 211 2)
19वर्ण, 12-7 वर्णों पर यति,
4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत।

ऐसा कोय न आज है जगत में,
                          बाधा न कोई जिसे।
आके जो धरनी गिरा समझिये,
                        चाकी चले सो पिसे।।
माया में सबकी दशा यह भई,
                           रोवे  न  कोई हँसे।
जाला है मकड़ी समान जिसमें,
                         विश्वास  में तू फँसे।।

                         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
____________________________________
41◆ भृंग छंद ◆
विधान~[{नगण(111)×6}+पताका],
111 111 111 111 111 111 21,
20 वर्ण,यति 12, 8 वर्ण पर, 4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत।

चहल पहल चहुँदिशि अति,गगन मगन आज।
लखन सियहि सहित अवध,पहुँचत  रघुराज।।
पुरजन   परिजन   हरषत, बरसत  मग फूल।
सजल नयन पुलकित मन, त्रिभुवन सुखमूल।।

                                 ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
____________________________________
42◆ मनविश्राम  छंद ◆
विधान~
[भगण भगण भगण भगण भगण नगण यगण]
(211 211 211  211  211 111 122)
21 वर्ण,4 चरण,10,11वर्णों पर यति,
दो-दो चरण समतुकांत।

देत हवा फल फूल सबै,
                       वन लाभ मिलत बहुतेरे।
जीव कई रुच वास करें,
                        सगरे खग करत बसेरे।।
औषध पात अनेक मिलें,
                     अरु छाल बहुत उपयोगी।
कंद व मूल अहार  हवै,
                  यह"सोम"कहत सच जोगी।।

                             ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
____________________________________
43◆ स्रग्धरा  छंद ◆
विधान~
[मगण रगण भगण नगण यगण यगण यगण]
(222  212 211  111  122 122 122)
21 वर्ण, 4 चरण,7-7-7 वर्णों पर यति,
दो-दो चरण समतुकांत।

आना जाना लगा है,यह जग सबको,
                                      रैन जैसा बसेरा।
रास्ता है कंटकों का ,भटक न पगले,
                                   कोय संगी न तेरा।।
ओ राही दूर जाना,अब समझ सके,
                                    तो इशारा यही है।
सच्चाई के सहारे, चल सुपथ सदा,
                                "सोम"वाचा सही है।।

                                 ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
____________________________________
44◆ नील छंद ◆
विधान~[(भगण×5)+गुरु ]
211 211 211 211 211 2
16वर्ण,यति ,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत।

माखन  भावत  है  मनमोहन  को  कितना।
और लखा नहि कोय सखी छलिया इतना।।
मानत  वो   हटके  नहि    रोज  चुरावत है।
कुंजन  में   नित  छेड़त "सोम" सतावत है।।

                              ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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45◆भुजंगी छंद◆
विधान~ [यगण यगण यगण+लघु गुरु]
( 122  122 122 12
11 वर्ण, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]

भला काम कीजे भला पाइये।
सदा गीत  गोविन्द  के गाइये।।
तजो दोष सारे गुणों को चुनो।
मुदा चित्त धारौ  भले जू सुनो।।

             ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
____________________________________
46◆चम्पकमाला छंद◆
विधान~ [भगण मगण सगण+गुरु]
( 211  222 112  2)
10 वर्ण, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]

प्रेम  बिना  ये  जीवन सूना।
जो  तुम चाहौ अंतस छूना।।
तो घुल जाओ हीय मिलाई।
लोन  घुले  ज्यों नीर समाई।।

भाव  नहीं  तो  कौन गुनेगा।
बात  तुम्हारी  कौन  सुनेगा।।
सो  पहले तो भाव जगाओ।
"सोम"सुरीली तान सुनाओ।।

            ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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47◆स्वागता छंद◆
विधान~ [रगण नगण भगण+गुरु गुरु]
( 212 111 211  22)
11वर्ण, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]

धर्म कर्म जप जोग न जानौ।
रंग राग प्रभु  का पहिचानौ।।
नीत नेम  कछु ज्ञान न सेवा।
"सोम" प्रेम वश पूजत देवा।।
            ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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48◆अमृतगति छंद◆
विधान~  [नगण जगण नगण+गुरु]
( 111  121 111  2)
10वर्ण, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]

ठुमक चलें जब मग ते।
नटखट   सुंदर   लगते।।
छुनछुन पैजनि बजती।
धुन सबके उर सजती।।

चितवन  चंचल  लखते।
घर घर  माखन  चखते।।
गलियन श्याम कुदकते।
निरखत"सोम"न थकते।।
         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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49◆अनुकूला छंद◆
विधान~ [भगण तगण नगण+गुरु गुरु]
( 211 221 111  22
11 वर्ण, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]

हे  अविनाशी  भव-भय हारी।
आन  पड़ा हूँ शरण  तिहारी।।
मस्तक देवा  पुनि-पुनि नाऊँ।
"सोम"सदा मैं पद रज पाऊँ।।

             ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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50◆ त्रिभंगी छंद [सम मात्रिक] ◆

विधान~ [32 मात्रा,10,8,8,6 यति,
            चरणान्त में गुरु,कुल चार चरण,
             क्रमागत दो-दो चरण तुकांत,
             पहली2 या3 यति पर तुकांत]

हे करुणासागर,सब विधि आगर,
                  नटवर नागर,सुखपुंजा।
हे जगत नियंता,अति सुखवंता,
                  नमत अनंता,पदकंजा।।
श्रीकृष्ण कलाधर,हे मन मधुकर,
               नटखट मनहर,गिरिधारी।
सो नाथ गुनाकर, द्रवहुँ दयावर,
              "सोम"सुधाकर,सुखकारी।।

                       ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
1◆ रसाल छंद ◆
विधान~
[भगण नगण जगण भगण जगण जगण+लघु]
(211  111  121  211  121 121  1)
19 वर्ण , 9 ,10 वर्णों पर यति ,
4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत।
हे प्रभु  रघुपति  राम,  आप  सबके  दुख टारन।
हे जगपति  सुखधाम, नाथ  सब काज सँवारन।।
जापत सियहि समेत, दास   पद  पंकज चाकर।
गावत गुन गन नित्य,"सोम"निज शीश नवाकर।।
                                    ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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2◆ शोकहर/सुभंगी छंद ◆
विधान~[8,8,8,6 मात्राओं पर यति,पहली दूसरी
            यति अंत तुकान्त,चार चरण समतुकांत]
नंददुलारे, सबके  प्यारे , हे   मनमोहन,  बनवारी।
जग प्रतिपाला, हे गोपाला, हे गोविंदा, गिरिधारी।।
घट घट वासी,हेअविनाशी,हे सुखरासी,शुभकारी।
धेनु चरैया, वेणु बजैया,"सोम"सदा मैं, बलिहारी।।
                                      ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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3◆रूपमाला/मदन छंद [सम मात्रिक]◆

विधान–[24 मात्रा,/14,10 पर यति,
आदि-अंत में वाचिक भार 21,चरण 4,
क्रमागत दो-दो चरण तुकान्त]

रामदूत हे पवनतनय ,
                         मतिधीर बजरंग।
बास करत हैं हिरदे में,
                       प्रभु जानकी संग।।
अंजनेय जू बल सागर,
                          चतुर विद्यावान।
"सोम"मनावत सिर नावत,
                       कपीश्वर हनुमान।।
                    ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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4◆ चंचला छंद◆
विधान~
रगण जगण रगण जगण रगण + लघु
वार्णिक मापनी 212 121 212 121 212 1 कुल 16 वर्ण
या
वाचिक मापनी 2121  2121  2121 2121 कुल 16 वर्ण

राम जू  दयानिधान  मोहि  दीजिये  उबार।
शारदा  जपें  अनंत  संत  भी  करें पुकार।।
नाथ अर्ज आप से  झुकाय शीश बार बार।
"सोम" एक बार  दीन बंधु लीजिये निहार।।
                              ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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5◆ त्रिभंगी छंद [सम मात्रिक] ◆
विधान~ [32 मात्रा,10,8,8,6 यति,
            चरणान्त में गुरु,कुल चार चरण,
             क्रमागत दो-दो चरण तुकांत,
             पहली2 या3 यति पर तुकांत]

हे करुणासागर,सब विधि आगर,
                  नटवर नागर,सुखपुंजा।
हे जगत नियंता,अति सुखवंता,
                  नमत अनंता,पदकंजा।।
जिन चरितअनूपं,शक्तिस्वरूपं,
                   अनुपम रूपं,मनहारी।
सो नाथ गुनाकर, द्रवहुँ दयावर,
            "सोम"सुधाकर,सुखकारी।।
                      ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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6◆ कलाधर छंद ◆
विधान---गुरु लघु की पंद्रह आवृति और एक गुरु।
अर्थात 2 1×15 तत्पश्चात एक गुरु।
इस प्रकार 31 वर्ण प्रति चरण।

योग भूमि भारती पुकारती सुनो पुकार,
         जन्म ये सवाँरिये सुजोग राज योग से।
गेह गेह जाय जाय लोक में करो प्रचार,
      काम क्रोध लोभ मोह दूर हो कुजोग से।।
चित्त हो प्रसन्न आप स्वस्थ्य भी रहे सदैव,
       खूब रूप रंग ओज दुःख के वियोग से।
बात ये अमोघ होय,गाँव गाँव योग होय,
     विश्व हो निरोग"सोम"मुक्त आप रोग से।।
                                ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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7*बरवै छंद*
शिल्प~[सम पदों में12 मात्राएँ विषम
             पदों में 7 मात्राएँ]

हे   दामोदर    दुखहर  ,  दीनदयाल।
भव भेषज भयहारी,भजत भुआल।।
नैनन  नटखट  नटवर ,यशुदा  लाल।
द्रवहुँ दयानिधि मो पर, होहुँ कृपाल।।

मनभावन  मधुसूदन  , हे  जगपाल।
माधव  मोहन  मानस , मंजु मराल।।
केशव गिरिधर करदो,मोहिं निहाल।
"सोम"श्यामसुन्दर जू,लेहुँ सम्हाल।।
                   ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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8◆ कनक मंजरी छंद ◆
शिल्प~
[4 लघु+ 6भगण (211)+1गुरु] = 23 वर्ण
चार चरण समतुकांत]
                     या
{1111+211+211+211
                      211+211+211+2}

अनहक ही मनमोहन छेड़त
                   नीति भरे कछु ढंग नहीं।
चल हट मैं इकली सुन केशव
                 हैं सखियाँ सब संग नहीं।।
नटखट रे मधुसूदन माधव
                  मोहि करो अब तंग नहीं।
छलबल मैं नहि जान सकूँ कछु
                  भावत श्यामल रंग नहीं।।
                        ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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9◆अहीर छंद◆
विधान~प्रति चरण 11 मात्राएँ,
            चरणान्त जगण(121),
             [दो दो चरण तुकांत।]

करिये तनिक विचार।
अपनी मति अनुसार।।
            सभी   करें  सहयोग।
            तन मन होय निरोग।।
कितने  घातक  रोग।
समझेंगे  कब लोग।।
               बढ़ते जाय विकार।
               पर्यावरण   सुधार।।
              ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
___________________________________
10◆ कर्ण छंद ◆

शिल्प~[ 13,17 यति,
30 मात्राएँ चरणान्त में 2 गुरु,
सम तुकांत 4 चरण]

सुन लीजे रघुनाथ जू,
               भरा भरम मन का मार लूँगा।
जन्मों की बिगड़ी दशा,
                हे नाथ अब मैं सुधार लूँगा।।
झाँकी अनुज सिया सहित,
              आज मैं जी भर निहार लूँगा।
करिहौ गंगा पार फिर,
           "सोम" पहले पद पखार लूँगा।।
                          ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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11◆ वसन्ततिलका छंद ◆
शिल्प~[तगण भगण जगण जगण +2 गुरु]

श्री रामचन्द्र  सुन  लो सरकार  मेरी।
मैं  दीन दास अब  नाथ करो न देरी।।
हे सीय नाथ  कुछ और नही मगाऊँ।
मैं आपकी खबर सोम न भूल पाऊँ।।
                        ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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12◆सार छंद [सम मात्रिक]◆

विधान ~ 28 मात्रा, 16,12 पर यति,
अंत में वाचिक भार 22, कुल चार चरण,
[क्रमागत दो-दो चरण तुकांत ]

जबसे  तुमको  अपना मैंने,
                        मान लिया गिरिधारी।
केवल याद किया है तुमको,
                      सबकी सुरत बिसारी।।
मुझको सदा शरणमें रखना,
                          मोहन मदन मुरारी।
'सोम"श्यामकी श्यामल छबिपर,
                          मैं जाऊँ बलिहारी।।
                          ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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13◆सरसी/कबीर/सुमंदर छंद [सम मात्रिक]◆

विधान ~[ 27 मात्रा, 16,11 पर यति,
            चरणान्त में 21,कुल चार चरण,
                क्रमागत दो-दो चरण तुकांत]

सोमनाथ भोले शिवशंकर,
                           मस्तक सोहे सोम।
नीलकण्ठ भये कण्ठ में जब,
                         राखा सोम-विलोम।।
केशों से कल कल कर बहती,
                          निर्मल शीतल गंग।
"सोम"सुहावन निरखत लगते,
                         आप सती के संग।।
                         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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14◆ चौपई छंद ◆

इस छंद को जयकरी अथवा जयकारी छंद के नाम से भी जाना जाता है..
विधान~ चार चरण, सम मात्रिक,
प्रत्येक चरण में 15 मात्राएँ।
अंत में गुरु लघु वर्ण

जय  हो   श्री  राघव सरकार।
त्रिभुवन   महिमा  अपरम्पार।।
मर्यादा      पुरुषोत्तम   आप।
करते   समन  सकल  संताप।।

पुनि पुनि नावहुँ चरणन शीश।
करिये    कृपा   कौसलाधीश।।
"सोम"झुकाये निश दिन माथ।
मोरे   हृदय   बसहुँ   रघुनाथ।।

             ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
___________________________________
15◆नित छंद◆

शिल्प~ प्रति चरण बारह मात्राएँ। अंत में लघु गुरु(12) या नगण(111)।दो दो चरण तुकांत।

छबि लख मनमोहन की।
बिसर गई सुध तन  की।।
अति  सुंदर स्यामल तन।
मतवाले    बड़े    नयन।।

       ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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16* चामर छंद *
शिल्प~[रगण जगण रगण जगण रगण]

राम  राज  में  समाज  यूं  प्रसन्न  हो  गया।
आज ये सभी कहें कि जन्म धन्य हो गया।।
नैन  धन्य  होय  रूप  राम  का  निहार लो।
सीय  संग  राम "सोम" आरती  उतार  लो।।

                         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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17◆उड़ियाना छंद [सम मात्रिक]◆

विधान–[प्रति चरण  22 मात्रायें,
12,10 पर यति।अंत में एक ही गुरु।
चार चरण,क्रमागत दो-दो चरण तुकांत।]

श्याम छली रोक लेत,
                  रोज क्यों डगरिया।
पटक देत धरन धूरि,
                   दही की गगरिया।।
होत है अबेर मोहिं,
                    दूर   है  नगरिया।
"सोम" आज रोक नही,
                   छोड़ दे चुनरिया।।

                 ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
___________________________________
18◆ शंखनादी/सोमराजी छंद ◆
शिल्प~[यगण यगण(122 122),
           दो-दो चरण तुकांत,6वर्ण]

          सभी   के   सहारे।
          यशोदा      दुलारे।।
          सदा   शीश  नाऊँ।
          तुम्हीं को रिझाऊँ।।

          कृपा  कोर  कीजे।
          बना  दास  लीजे।।
          भला चाहता  जी।
          हुआ   सोमराजी।।

                  ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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19◆विद्धुल्लेखा/शेषराज छंद◆
शिल्प:- [मगण मगण(222 222),
दो-दो चरण तुकांत,6वर्ण]

छोड़ो  सारी माया।
माटी की ये काया।।
बोलो  राधेश्यामा।
पाओगे  विश्रामा।।

बोलो  मीठे  बैना।
नीचे  राखौ  नैना।।
शाकाहारी खाना।
गाओ मीठे गाना।।

    ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
___________________________________
20◆तिलका छंद◆
शिल्प:- सगण सगण (112 112),
[दो-दो चरण तुकांत, 6वर्ण]

            वन   राम  चले।
            तज  धाम भले।।
            सुकुमारि कली।
            सिय संग चली।।

अपना      अपना।
सब    है   सपना।।
इसका      उसका।
जिसका  किसका?

अब    गौर   करो।
पर    पीर     हरो।।
तज   झूठ   कला।
कर  "सोम" भला।।

         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
___________________________________
21◆विद्धुल्लेखा/शेषराज छंद◆
शिल्प:- [मगण मगण(222 222),
दो-दो चरण तुकांत,6वर्ण]

छोड़ो  सारी माया।
माटी की ये काया।।
बोलो  राधेश्यामा।
पाओगे  विश्रामा।।

बोलो  मीठे  बैना।
नीचे  राखौ  नैना।।
शाकाहारी खाना।
गाओ मीठे गाना।।

    ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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22◆विमोहा छंद◆
शिल्प:- [रगण रगण(212 212),
दो-दो चरण तुकांत, 6 वर्ण]

जो हुआ हो गया।
दौर   आगे  नया।।
भूल  से  सीखना।
हारना   है   मना।।

हार  है  जीत  है।
राग  है  गीत  है।।
बैर   है  प्रीत  है।
राह  की रीत  है।।

आप  ये  जानिये।
काज जो ठानिये।।
कल्पनायें    गढ़ो।
"सोम"आगे बढ़ो।।
          ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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23◆शुभमाल छंद◆
शिल्प:- जगण जगण (121 121),
दो-दो चरण तुकांत,
[6 वर्ण प्रति चरण]

जपो  हरि नाम।
सदा सुख धाम।।
मिले सुख  चैन।
कटे  तम   रैन।।

सिया    भरतार।
करें  भव   पार।।
यही  जग  सार।
न "सोम"विचार।।
       ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
___________________________________
24◆ एकावली छंद ◆
शिल्प~ प्रति चरण 10 मात्राएँ
            [5-5 पर यति]

राम का,नाम ले।
              अक्ल से,काम ले।।
मान जा, तू कही।
              बात  है , ये  सही।।
छलकपट, यूं न कर।
               तू जरा ,सोच नर।।
रख रहा, जोड़कर।
              पर नही ,ये खबर।।
तेरा न ,कुछ यहाँ।
               जा रहा, तू कहाँ।।
तुझे कुछ, भी नहीं।
             सब यहीं ,का यहीं।।
इसलिए"सोम"रे।
             जपो हरि ,ओम रे।।
           ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

___________________________________
25◆मत्ता छंद◆
शिल्प~ [(मगण भगण सगण)+गुरु]
प्रतिचरण 10 वर्ण, चार चरण,
दो-दो चरण समतुकांत।
यति प्रायः 4, 6 वर्ण पर।

222  211  112  2

चापौं  भोले,चरण तिहारे।
दीजे  मोहे , शरण सहारे।।
गंगा धारी, सुमिरत जाऊँ।
दाता संभू,निशदिन गाऊँ।।
         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
___________________________________
26◆वामा छंद◆
शिल्प~ [(तगण यगण भगण)+गुरु]
प्रतिचरण 10 वर्ण चार चरण,
दो-दो चरण समतुकांत।

221  122   211   2

             (१)
ये मानुष  तेरा  ठौर  नही।
तू तो  करता ये गौर नही।।
काहे  करता  है पाप यहाँ।
भोगे सब तू ही आप यहाँ।।

            (२)
होते जब भारी पाप जहाँ।
हे  नाथ सहारे आप वहाँ।।
रक्षा  कर  लेते  दीन  गहे।
ये"सोम"सदा आधीन रहे।।

         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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27◆मरहटा छंद ◆
शिल्प~[10,8,11 ] मात्राएँ, इसी प्रकार यति।चरणान्त में गुरु लघु(21),चार चरण तुकांत।

कलु कलुष निकंदन,दशरथनंदन,
                         कौशिल्या  के  लाल।
सन्तन हितकारी , अवधबिहारी,
                         मानस   मंजु मराल।।
वंदहुँ तव चरणा,भवभय हरणा,
                        सेवत सकल भुआल।
गावहुँ  गुन  ग्रामा ,पूरण-कामा,
                        सुंदर "सोम" कृपाल।।
                         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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28◆ इन्दिरा छंद ◆

शिल्प- [नगण रगण रगण+ लघु गुरु]या 111 212 212 12,प्रति चरण ग्यारह वर्ण,चार चरण,दो दो चरण समतुकांत।

सुजन आज क्यों देर कीजिये।
चरण  राम  के  पूज  लीजिये।।
अधम  दीन   तारे  कृपालु  हैं।
जगत   के   सहारे   दयालु है।।
               ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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29◆ मंदाक्रान्ता छंद ◆
विधान~ [{मगण भगण नगण तगण तगण+22}
( 222  211  111  221  221 22)
17 वर्ण, यति 4, 6,7 वर्णों पर, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]

वाणी ही  है, सरस  सबसे,तौलके  आप  बोलो।
सो वाणी से,अमिय मनमें,आप भी नित्य घोलो।।
जो  होते  हैं, सरल  हिरदे , मोहनी  होय  बोली।
हो जाती है ,अमर जग में,"सोम" वाचा अमोली।।
                                     ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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30◆ पृथ्वी छंद ◆
विधान~ [जगण सगण जगण सगण यगण+लघु गुरु]
(121 112 12, 1 112 122  12)
17 वर्ण,यति 8, 9 वर्णों पर, 4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत।

सदा  नमन  कीजिये, जगतमात  श्री  राधिका।
मनावत जिन्हें सभी, परम कृष्ण की साधिका।।
पलोटत  रहौ   सदा , चरण  ये  पखारा  करूँ।
दया करन मातु  जो, मम सहाय तो क्यों डरूँ।।

                                  ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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31◆ दीप छंद ◆

शिल्प~ प्रति चरण 10 मात्राएँ ,परन्तु अंतिम पाँच मात्राएँ क्रमशः नगण गुरु लघु(11121),चार चरण समतुकांत।

राम  विनय  हमार।
सुनलो मम पुकार।।
लीजे  अब  उबार।
सोम शरण तिहार।।

~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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32◆ नील छंद ◆

विधान~[(भगण×5)+गुरु ]
211 211 211 211 211 2
16वर्ण,यति ,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत।

हे प्रभु  साधक  साधन  साधत हार गये।
केवट  से  चरणोदक  पाकर  पार  भये।।
गौतम  नार सुहावन  हो पिय पास चली।
नित्य निहारत सो शबरी उर आस पली।।

                           ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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33◆ शिखरिणी छंद ◆

विधान~
[यगण मगण नगण सगण भगण+लघु गुरु]
(122  222 111  112  211 12)
17 वर्ण,यति 6,11वर्णों पर,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत।

चला लेके सीता,सठ रुक अभी युद्ध कर रे।
अनाचारी  पापी, ठहर  मन  में  दुष्ट  डर रे।।
अरे लोभी कामी,अधम छल से सीय हरके।
अभी तेरा होगा, मरण खल ये काम करके।।

                               ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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34◆ कुसुमविचित्रा छंद ◆

विधान~
[नगण यगण नगण यगण]
(111  122  111 122 )
12 वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत।

जगपति कीन्ही सब पर दाया।
कर कर-छाया हरि अपनाया।।
चरनन   चेरे   सुजन   मनाते।
हरि  तब  दौड़े  तुरतहि आते।।

             ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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35◆ भालचंद्र छंद ◆

विधान~
[जगण रगण जगण रगण जगण+गुरु लघु]
(121  212 121  212  121 21)
17 वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत।

चलो  सुजान  राह  में   सदैव   कष्ट  हैं अपार।
थको  नही  करो  प्रयत्न  राह खोज बार बार।।
बढ़ो   सदा  उमंग   से  नवीन  साधना प्रयास।
छिपा समीप लक्ष्य है,निहार"सोम"आस पास।।

                                  ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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36◆ मणिमाल छंद ◆

विधान~
[सगण जगण जगण भगण रगण सगण+लघु]
(112   121  121   211  212 112  1)
19 वर्ण ,10,9 वर्णों पर यति ,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत।

गुरुदेव आज अनाथ  को ,मिल जाय जो पदधूल।
सब दूर दोष  विकार हौं, प्रभु आप जो अनुकूल।।
कुछ और मागत मैं नही,लख लीजिये बस आप।
उर"सोम"है यह कामना, मिट  जाय ये भव ताप।।

                                     ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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37◆ मणिमाला छंद ◆

[तीव्र, उज्ज्वल, मलिकोत्तरमालिका, विवुधप्रिया,
  हरनर्तन,चर्चरी,अश्वगति छंद]

विधान~
[भगण भगण भगण भगण भगण सगण]
(211  211   211   211  211  112 )
18 वर्ण ,11,7 या 8-10 वर्णों पर यति,
4 चरण,दो-दो चरण समतुकांत।

रे मन  छोड़  असार  अनीति, गहौ प्रभु चरणा।
काम करो निज चित्त लगाय,भजौ दुख-हरणा।।
लालच  दंभ  कुभोग  समेत, नशा  सब दहिये।
श्री गुरु मात पिता पद"सोम",सदा चल गहिये।।

                                     ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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38◆ चंचरी छंद ◆

विधान~
[रगण सगण जगण जगण भगण रगण]
(212  112  121  121  211 212)
18 वर्ण , 8-10 या 10-8 वर्णों पर यति
4 चरण,दो-दो चरण समतुकांत।

त्रास  मोचन  राम  जू,पद नाथ  आज पखार लौं।
जो जगे मम भाग्य तो,गति नाव साथ सुधार लौं।।
पुण्य का करिहौं प्रभो, नित पाप के बल मैं पलो।
पा  गयो  पद  धूल जो, सियनाथ  केवट मैं भलो।।

                                      ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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39◆ गीतिका छंद ◆
विधान~
[सगण जगण जगण भगण रगण सगण+लघु गुरु]
(112  121  121  211  212  112  12)
20वर्ण, 10-10 वर्णों पर यति,
4 चरण,दो-दो चरण समतुकांत।

नित भोरसे जब जागिये,गुरु नामको सुमिरौ भले।
सबसिद्धकारज जानिये,सब आपकी विपदा टले।।
सबसे बड़ी  महिमा कहें,सब वेद श्री गुरु नामकी।
सुरलोकसे बड़ मानिये,रज"सोम"श्रीगुरु धामकी।।

                                        ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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40◆ शार्दूलविक्रीडित छंद ◆
विधान~ [मगण सगण जगण सगण तगण तगण+2]
(222  112   121  112   221 211 2)
19वर्ण, 12-7 वर्णों पर यति,
4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत।

ऐसा कोय न आज है जगत में,
                          बाधा न कोई जिसे।
आके जो धरनी गिरा समझिये,
                        चाकी चले सो पिसे।।
माया में सबकी दशा यह भई,
                           रोवे  न  कोई हँसे।
जाला है मकड़ी समान जिसमें,
                         विश्वास  में तू फँसे।।

                         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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41◆ भृंग छंद ◆
विधान~[{नगण(111)×6}+पताका],
111 111 111 111 111 111 21,
20 वर्ण,यति 12, 8 वर्ण पर, 4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत।

चहल पहल चहुँदिशि अति,गगन मगन आज।
लखन सियहि सहित अवध,पहुँचत  रघुराज।।
पुरजन   परिजन   हरषत, बरसत  मग फूल।
सजल नयन पुलकित मन, त्रिभुवन सुखमूल।।

                                 ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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42◆ मनविश्राम  छंद ◆
विधान~
[भगण भगण भगण भगण भगण नगण यगण]
(211 211 211  211  211 111 122)
21 वर्ण,4 चरण,10,11वर्णों पर यति,
दो-दो चरण समतुकांत।

देत हवा फल फूल सबै,
                       वन लाभ मिलत बहुतेरे।
जीव कई रुच वास करें,
                        सगरे खग करत बसेरे।।
औषध पात अनेक मिलें,
                     अरु छाल बहुत उपयोगी।
कंद व मूल अहार  हवै,
                  यह"सोम"कहत सच जोगी।।

                             ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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43◆ स्रग्धरा  छंद ◆
विधान~
[मगण रगण भगण नगण यगण यगण यगण]
(222  212 211  111  122 122 122)
21 वर्ण, 4 चरण,7-7-7 वर्णों पर यति,
दो-दो चरण समतुकांत।

आना जाना लगा है,यह जग सबको,
                                      रैन जैसा बसेरा।
रास्ता है कंटकों का ,भटक न पगले,
                                   कोय संगी न तेरा।।
ओ राही दूर जाना,अब समझ सके,
                                    तो इशारा यही है।
सच्चाई के सहारे, चल सुपथ सदा,
                                "सोम"वाचा सही है।।

                                 ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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44◆ नील छंद ◆
विधान~[(भगण×5)+गुरु ]
211 211 211 211 211 2
16वर्ण,यति ,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत।

माखन  भावत  है  मनमोहन  को  कितना।
और लखा नहि कोय सखी छलिया इतना।।
मानत  वो   हटके  नहि    रोज  चुरावत है।
कुंजन  में   नित  छेड़त "सोम" सतावत है।।

                              ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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45◆भुजंगी छंद◆
विधान~ [यगण यगण यगण+लघु गुरु]
( 122  122 122 12
11 वर्ण, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]

भला काम कीजे भला पाइये।
सदा गीत  गोविन्द  के गाइये।।
तजो दोष सारे गुणों को चुनो।
मुदा चित्त धारौ  भले जू सुनो।।

             ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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46◆चम्पकमाला छंद◆
विधान~ [भगण मगण सगण+गुरु]
( 211  222 112  2)
10 वर्ण, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]

प्रेम  बिना  ये  जीवन सूना।
जो  तुम चाहौ अंतस छूना।।
तो घुल जाओ हीय मिलाई।
लोन  घुले  ज्यों नीर समाई।।

भाव  नहीं  तो  कौन गुनेगा।
बात  तुम्हारी  कौन  सुनेगा।।
सो  पहले तो भाव जगाओ।
"सोम"सुरीली तान सुनाओ।।

            ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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47◆स्वागता छंद◆
विधान~ [रगण नगण भगण+गुरु गुरु]
( 212 111 211  22)
11वर्ण, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]

धर्म कर्म जप जोग न जानौ।
रंग राग प्रभु  का पहिचानौ।।
नीत नेम  कछु ज्ञान न सेवा।
"सोम" प्रेम वश पूजत देवा।।
            ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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48◆अमृतगति छंद◆
विधान~  [नगण जगण नगण+गुरु]
( 111  121 111  2)
10वर्ण, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]

ठुमक चलें जब मग ते।
नटखट   सुंदर   लगते।।
छुनछुन पैजनि बजती।
धुन सबके उर सजती।।

चितवन  चंचल  लखते।
घर घर  माखन  चखते।।
गलियन श्याम कुदकते।
निरखत"सोम"न थकते।।
         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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49◆अनुकूला छंद◆
विधान~ [भगण तगण नगण+गुरु गुरु]
( 211 221 111  22
11 वर्ण, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]

हे  अविनाशी  भव-भय हारी।
आन  पड़ा हूँ शरण  तिहारी।।
मस्तक देवा  पुनि-पुनि नाऊँ।
"सोम"सदा मैं पद रज पाऊँ।।

             ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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50◆ त्रिभंगी छंद [सम मात्रिक] ◆

विधान~ [32 मात्रा,10,8,8,6 यति,
            चरणान्त में गुरु,कुल चार चरण,
             क्रमागत दो-दो चरण तुकांत,
             पहली2 या3 यति पर तुकांत]

हे करुणासागर,सब विधि आगर,
                  नटवर नागर,सुखपुंजा।
हे जगत नियंता,अति सुखवंता,
                  नमत अनंता,पदकंजा।।
श्रीकृष्ण कलाधर,हे मन मधुकर,
               नटखट मनहर,गिरिधारी।
सो नाथ गुनाकर, द्रवहुँ दयावर,
              "सोम"सुधाकर,सुखकारी।।

                       ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

प्रयागराज संगम की पावन नगरी में साहित्यिक क्षेत्र में सुप्रसिद्ध संगठन "विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत" का छठवाॅं वार्षिकोत्सव मनाया गया।

दिनांक 30/11/2024 को प्रयागराज संगम की पावन नगरी में साहित्यिक क्षेत्र में सुप्रसिद्ध संगठन "विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत" का छठवाॅं ...