Thursday, November 29, 2018

मतदान केंद्र बरेठी






बिजावर विधानसभा क्षेत्र के क्र.52

🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

मेरा मत मतदान में।
भारत के गुणगान में।।


आज बड़े हर्ष के साथ बताने जा रहा हूँ।

मैं मतदाता हूँ।
भारत के भाग्य का विधाता हूँ।।
सबके काम आता हूँ।
अपना कर्तव्य निभाता हूँ।।1।।


श्रृष्टि की पहचान हूँ मैं।
भारत बर्ष की जान हूँ मैं।।
मतदानों की शान हूँ मैं।
मतदाता हूँ मतदान हूँ मैं।।2।।

- नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
   छतरपुर  ( मध्यप्रदेश )

🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁



तारक छंद

🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

● तारक छंद ●
विधान~ जाति-अति जगती,
प्रस्तार भेद~८१९२
[सगण सगण सगण सगण गुरु]
११२  ११२    ११२ ११२  २
चार चरण,दो-दो चरण समतुकांत।

अब  बात  सुनो  मनमोहन  मोरी।
विनती करुँ नाथ खड़ा कर-जोरी।।
सबकी  बिगड़ी नित आप बनाते।
भव - सागर  से  प्रभु पार लगाते।।

- नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
   छतरपुर  ( मध्यप्रदेश )

🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

हमारी गज़ल़े







      ग़ज़ल संग्रह

नीतेन्द्र सिंह परमार भारत जी 

गज़ल  1 
वज्न     - 212 212 212 212
क़ाफ़िया - आ 
रद़ीफ  - चाहिए।

शब्द बोलो मगर तौलना चाहिए ।
तौल करके सदा बोलना चाहिए ।।

होश आता नहीं शाम होते  यहाँ ।
जाम पीकर नहीं झूमना चाहिए ।।

नैन उनके मुझे देखते हैं अभी ।
आस करके जिया खोलना चाहिए ।।

पाक मिट्टी मिली आज हमको यहाँ ।
हाथ लेकर इसे चूमना चाहिए ।।

दोस्ती के इस सफ़र में मिली जो दुआ ।
साथ उसको लिये पूजना चाहिए ।।

रोज जिनके यहां खेलते थे कभी।
पास जाकर वहां घूमना चाहिए।।

दर्द होगा उसे दूर जाये कही ।
राज की बात हैं सोचना चाहिए।।

भौह तिरछी किये पास थी वो खङी ।
नैन भी तो नही मोङना चाहिए।।

प्रीत करता रहा रात दिन में उसे ।
इस क़दर से नही छोड़ना चाहिए ।।

वो किताबी मजे याद आते हमें ।
लेख लिखकर सदा जाँचना चाहिए ।।

राह कांटो भरी जो मिलेगी कभी।
अश्क आँखो लगे पोछना चाहिए ।।

नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत " 
  
गजल  2
वज्न  - 122 122 122 122
काफिया - आ
रदीफ - नही है

हमारे  हृदय  का  किनारा  नही  है ।
किसी की नज़र का इशारा नही है ।।

दिखी जो जहाँ में पड़ा आज पीछे ।
जमाना  दिखाये  नजारा  नही  है ।।

करूं बात सारी नदी की लहर सें ।
बहाये  सभी  को  गवारा  नही है ।।

भले  रूठ  जाये  हमारी  मुहब्बत ।
जमीं पर मिले वो सितारा नही है ।।

चले चाल सीधी मिले अजनबी भी ।
खुमारी  चढ़ी  पर  पुकारा  नही  है ।।

कहो  आज मन से जहाँ में जहाँ पर ।
किया  काम  ऐसा  सुधारा  नही  हैं ।।

नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "

ग़ज़ल 3
बह्र      - 122 122 122 122 
काफ़िया  -  अन
रद़ीफ      -  की

सुनाओ उसी को सुने बात मन की ।
दिखाओ जहाँ में रहे आस धन की ।।

खिलौना बना हैं मुसाफिर यहां का।
न ठहरो वहां पर हिफाजत न तन की।।

हरी डाल तोङे उसी को सजा दो ।
मिले नेक छाया जहाँ छाँव वन की ।।

निकालो न पाती लिखी थी जुवां से।
सिखाओ पढ़ा कर गुने सोच जन की।।

किनारे किनारे चला आज उससे ।
कहू आज भारत तमन्ना गगन की ।।

तपन  में  जलेगें मुहब्बत  करेगें  ।
करूं आज बाते सुहाने चमन की

उठूगा गिरूगा चलूगा  जहाँ में।
करूंगा हिफाजत यहां पर वतन की।।

लडाई   करो   दूर   मेरा   शहर  हैं ।
दुआ अब करो आज न्यारे अमन की ।।

- नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "

ग़ज़ल 4
बह्र- 1222 1222 1222 1222
रद़ीफ     -  को
काफ़िया -  ये 

कही कोई नही होता सफर में साथ चलने को ।
मिले दुश्मन यहाँ हैं अब हमारे संग चलने को ।।

उसी ने जान दी अपनी मगर सोचा नही हैं कुछ ।
हथेली पर रखा हैं दिल चला मैंखाने पलने को।।

भरोसा कर लिया मैंने उसे अपना समझ कर ही।
यहाँ सीधे चलाये तीर मेरी जान खलने को।।

करूं सेवा उसी की रात दिन राही मिले हैं जो।
लगी जो चोट सीने में वही पर तेज मलने को।।

सिफारिश हो गई हैं तो जमाना प्यार करता हैं।
करूं फरियाद में रब से जरा सा और फलने को।।

सिखाया पाठ जो हमको वही में आज बतलाता।
सड़क की मोड़ पर बैठे सभी अब आज पलने को।।

- नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "

गज़ल 5 
वज्न  - 1222 1222 122
रदीफ - हरदम।
काफ़िया - आ।

जमाने ने दिखाये रंग हरदम ।
रहा में भी उसी के संग हरदम।।

बताई थी बहुत बाते सफर में ।
मगर में था परेशां तंग हरदम ।।

नयी तकनीक खोजी हैं जहाँ में ।
बहुत  ढूँढ़े  हुआ वो दंग हरदम ।।

डराते   हैं  मुझे  अंगार  से  वो  ।
लडे हैं हम सदा ही जंग हरदम ।।

नमक डाले कभी वो रोज यारो ।
जले  थे  जो हमारे अंग हरदम ।।

- नीतेन्द्र सिंह परमार "भारत"

ग़ज़ल 6
वज्न - 122 122 122 122 
क़ाफ़िया - आ
रद़ीफ - हुआ हैं

दिले  इश्क को  तो कमाया हुआ है ।
नयन रात दिन भर जलाया हुआ है ।।

मुझे   क्या   पता  था हुई  पीर  भारी ।
नरम हाथ से खिल खिलाया हुआ हैं ।।

जमाना  सुने  आज  मेरी  कहानी ।
दिवाना वही फिर सुलाया हुआ हैं ।।

मुझे   आज   तो   वो  बुराई  सताये ।
उसी दिल लगी को भुलाया हुआ हैं ।।

उसी से कहूँ राज दिल खोल करके ।
बिना  पैर  के  भी  चलाया हुआ  हैं ।।

हमारा  कहां  आप  गर  मान  लेते ।
यहा आँख से गम पिलाता हुआ हैं ।।

खड़ी दूर मुझसे जरा पास आओ ।
हमे  रात  मे  भी बुलाया हुआ हैं ।।

- नीतेन्द्र सिंह परमार "भारत"


 ग़ज़ल 7
बह्र - 1222 1222 122
रद़ीफ - आया
काफ़िया - आम।

यहाँ पर आज कैसा नाम आया ।
कही कोई नही अब काम आया ।।

सभी  बैठे  यहा पर मुह फुलाये ।
नही जब हाथ में तो दाम आया ।।

नशे  से  हो  गये मशहूर जो भी ।
पिये वो भी यहा पर जाम आया।।

कही  जोगी  कही  भोगी मिले हैं ।
बहुत भटके यहा पर धाम आया ।।

हुकूमत छोड़ दी हमने जहाँ की।
वही सब मोड़ करके थाम आया।।

नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "

ग़ज़ल 8
बह्र       :- 1222 1222 1222
काफ़िया:- ए
रद़ीफ:-    को 

मिले हमको यहाँ सब साथ चलने को ।
यही  बाते  सुनी  हैं  रोज  खलने को ।।

हमारा तो मुकद्दर बोलता हैं जो ।
किसी के रास्ते में नेक मिलने को ।।

सुमन मन से मिले वो बाग बन कर भी ।
गुलाबी   रंग   की  बौछार  फलने  को ।।

कभी उससे किया वादा निभाया हैं ।
नई सी पंख की डाली न खिलने को ।।

गनीमत हैं जहाँ वालो अभी तो में ।
कहो मत हाथ में भी हाथ मलने को ।।

यहा रोका नही तुमको शराफत हैं ।
चले आओ समय के साथ ढलने को ।।

-नीतेन्द्र सिंह परमार "भारत"
 छतरपुर  ( मध्यप्रदेश )






Tuesday, November 27, 2018

भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित







भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित

गीत संगीत की दुनिया का चमकता हुआ सितारा आज तारे के साथ मिल गया।

मुहम्मद अज़ीज़ हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गायक थे।

मुहम्मद अज़ीज़ को रफी साहब का वारिस कहा जाता था। 27 नवंबर 2018 में हार्ट अटैक से 64 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गयी।

ओम शांति ओम शांति ओम शांति


नीतेन्द्र सिंह परमार भारत
छतरपुर मध्यप्रदेश 

Saturday, November 24, 2018

हारिणी छंद आ0:- शैलेन्द्र खरे "सोम" जी

◆हारिणी छंद◆

विधान~
[जगण जगण जगण+लघु गुरु]
(121  121  121  12
11वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

अनेक   प्रकार    विधान   घने।
सुछंद    भले    मधुगान   बने।।
कला-कविता मन साध सिखौ।
गुनौ  पहिले  सब  बाद लिखौ।।

                ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

Friday, November 23, 2018

चन्द्रिका छंद

◆चन्द्रिका छंद◆

विधान-
नगण नगण तगण तगण गुरु
(111 111 221 221  2)
2-2चरण समतुकांत,7,6यति।

सुखमय लगता, नाम भी आपका।
हिय महुँ रुचता,काम भी आपका।।
उरपुर   बसिये, है  यही   कामना।
भव भय मुझको, रामजी  थामना।।

                 ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

Thursday, November 22, 2018

मधुमलती छंद वंदना

मधुमलती छंद
विधान:- प्रत्येक चरण में १४ मात्राए होती हैं, अंत में २१२ वाचिक भार होता है, ५~१२ वीं मात्रा पर लघु अनिवार्य होता है।

मापनी
२२१२ २२१२

मेरी विनय माता सुनो।
करदो कृपा सच माँ गुनो।।
कर धारिणी पुस्तक नमन।
महके यहा सारा चमन।।
संकट सभी के दूर हो।
कोई नही मजबूर हो।।
बस कामना है मात से।
जीवन खिले शुरुआत से।।
वीणा मधुर संगीत माँ।
रग रग बसे अब गीत माँ।।
माँ प्यार दो माँ सार दो।
जीवन यहा पर तार दो।।
शत् शत् नमन शत् शत् नमन।
में लाल हूँ माँ हो चमन।।
नित नित करूं में आरती।
जय मातु वीणा भारती।।

--- नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
    छतरपुर  ( मध्यप्रदेश )
    सम्पर्क सूत्र:- 8109643725

मृगेंद्रमुख छंद आ0:- शैलेन्द्र खरे"सोम" जी

◆मृगेंद्रमुख छंद◆

विधान-
नगण जगण जगण रगण गुरु
(111 121 121 212  2)
2-2चरण समतुकांत,4चरण।

नमन उमापति आपको करूँ मैं।
चरण  सुपावन  हीय  ते धरूँ मैं।।
विनय यही  भव  से उबार दीजै।
करहुँ कृपा प्रभु जी निहार लीजै।।

                  ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

Wednesday, November 21, 2018

चंडी छंद :- नीतेन्द्र सिंह " भारत "






■□ चंडी छंद □■

विधान-
नगण नगण सगण सगण गुरु
(111 111 112  112 2)
दो-दो चरण समतुकांत,4 चरण।


धरम करम करते सब जाना।
अपयश अवगुण दूर भगाना।।
सकल जगत नित निर्भय होई।
परहित करहु सदा सब कोई।।1।


सकल चरित नित आज बताना।
अजर अमर सुख रूप दिखाना।।
चरण कमल रज चाह हमारी।
विनय करहि कर जोर सुधारी।।2।।


नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
छतरपुर  ( मध्यप्रदेश )
सम्पर्क सूत्र :- 8109643725


चंडी छंद :- श्री भगत जी





◆ *चंडी छंद* ◆

विधान-नगण नगण सगण सगण गुरु
         (111  111  112  112  2)
दो-दो चरण समतुकांत, 4 चरण।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

अवध   नयन    रघुवीर   महाये |
सुमति सुपथि चित आप सुहाये ||
इहहि भगत सुधि  जानत नीका |
सतत भजन  रत  रामहुँ जी का ||

पटल सहज  पुनि  होवनि लागा |
सरस  सुरस  मन  सोवत  जागा ||
अबहुँ  पुनिअ  सबु कारज  सोई |
विरल  सरल   अबु  आपहुँ  होई ||

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
©भगत


संग्रहितकर्ता:-
नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
( छतरपुर मध्यप्रदेश )

चंडी छंद :- श्री शैलेन्द्र खरे सोम जी




◆चंडी छंद◆

विधान-
नगण नगण सगण सगण गुरु
(111 111 112  112 2)
दो-दो चरण समतुकांत,4 चरण।

चित धर भज रघुनाथ लला को।
विष सम गिन हर झूठ कला को।।
नर तन धर शुभ कार्य किये जा।
अमिय सरस रस सोम पिये जा।।

भज रघुपति  हर  काम बिहाई।
सब विधि सुलभ  सबै सुखदाई।।
कुछ  परहित  कर  ले उर लाई।
सच  यह  जगत  बड़ो दुखदाई।।

                 ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

Tuesday, November 20, 2018

ईद मिलादुन्नबी की तहेदिल से मुबारकबाद।





ईद मिलादुन्नबी की तहेदिल से मुबारकबाद।

नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
छतरपुर  ( मध्यप्रदेश )

ऑनलाइन कवि सम्मेलन काव्य फलक मंच















*काव्य फलक मंच पर भव्य ऑनलाइन कवि सम्मेलन 20 नम्बर 2018*

   _सायंकाल 8: 00 बजे से समाप्ति तक_
*कार्यक्रम संचालक~*
आ0:- नीतेन्द्र सिंह परमार "भारत" जी

कार्यक्रम संरक्षक ~आ० सुयश मणि दीक्षित " मणि " जी
कार्यक्रम अध्यक्ष ~आ० विनय जैन " कंचन " जी
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ~आ० आशिक गौरी जी
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि ~ आ0 विजय तिवारी जी
☘☘
*7:50 पर ~ संचालक एवं अन्य प्रतिभागियों की उपस्थिति*
*8:00 बजे से 8:10 तक ~* सरस्वती चित्र पटलार्पित प्रेषण ~
सरस्वती वन्दना ~ आ0:- नीतेन्द्र " भारत " जी

*_एक शाम काव्य फलक मंच के नाम_*
_प्रतिभागियों का समयानुसार कार्यक्रम~_
8:12 पर~
*(1) आ० हेमन्त हर्षिला जी*
    माँचलपुर मध्यप्रदेश
8:20 पर~
*(2) आ० आशिक गौरी जी*
     डग, झालावाड़ राजस्थान
8:30 पर~
*(3) आ० सुयश मणि दीक्षित " मणि" जी*
दिल्ली
8:40 पर~
*(4) आ० नीतेन्द्र सिंह परमार 'भारत' जी*
छतरपुर, मध्यप्रदेश
8:50 पर~
*(5) आ० शुभाशीष पाल " शुभ " जी*
फर्रुखाबाद उत्तर प्रदेश
9:00 बजे ~
*(6) आ० जयकांत पाठक  जी*
छतरपुर मध्यप्रदेश
9:10 पर~
*(7) आ० रामेश्वर रौचक जी*
जीरापुर मध्यप्रदेश
9:20 पर~
*(8) आ० अनंतराम बुनकर जी*
पहरा जिला छतरपुर मध्यप्रदेश
9:30 पर~
*(9) आ० विजय तिवारी जी*
बिलासपुर छत्तीसगढ़
9:40 पर~
*(10) आ० कुमार महेश  जी*
जोधपुर राजस्थान
9:50 पर~
*(11) आ० विनय जैन कंचन जी*
डग,झालावाड़ राजस्थान
10:00 बजे~
*(12) आ० बालेन्द्र शर्मा जी*
  लवकुशनगर जिला छतरपुर  ( म.प्र. )
10:10 बजे
*(13) आ० सुमित सिँह जी*    कासिद देहलवी
*10:20 बजे ~ कार्यक्रम समीक्षा~*
आ० कुमार महेश जी
आ० विनय जैन कंचन जी
_आयोजक काव्य फलक मंच आर्यावर्त हिन्दुस्तान भारत_

Monday, November 19, 2018

कुण्डलिया छंद

● कुण्डलिया छंद विधान ●

कुंडलिया एक मात्रिक छंद है। यह एक दोहा और एक रोला के मेल से बनता है। इसके प्रथम दो चरण दोहा के होते हैं और बाद के चार चरण रोला छंद के होते हैं। इस प्रकार कुंडलिया छह चरणों में लिखा जाता है और इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं, किन्तु इनका क्रम सभी चरणों में समान नहीं होता। दोहा के प्रथम एवं तृतीय चरण में जहाँ 13-13 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं, वहीं रोला में यह क्रम दोहे से उलट हो जाता है, अर्थात प्रथम व तृतीय चरण में 11-11 तथा दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। दोहे में यति पदांत के अलावा 13वीं मात्रा पर होती है और रोला में 11वीं मात्रा पर।

कुंडलिया रचते समय दोहा और रोला के नियमों का यथावत पालन किया जाता है। कुंडलिया छंद के दूसरे चरण का उत्तरार्ध (दोहे का चौथा चरण) तीसरे चरण का पूर्वाध (प्रथम अर्धरोला का प्रथम चरण) होता है। इस छंद की विशेष बात यह है कि इसका प्रारम्भ जिस शब्द या शब्द समूह से किया जाता है, अंत भी उसी शब्द या शब्द समूह से होता है। कुंडलिया के रोला वाले चरणों का अंत दो गुरु(22) या एक गुरु दो लघु(211) या दो लघु एक गुरु(112) अथवा चार लघु(1111) मात्राओं से होना अनिवार्य है। 

*रोला में यति पूर्व 21 (गुरु लघु) तथा यति पश्चात त्रिकल आना चाहिए*

उदाहरण-

◆कुण्डलिया◆

ईश्वर  की  आराधना, योग  क्रिया  नित जाप।
नियत समय अरु चित्त से,सदा कीजिये आप।।
सदा कीजिए आप,शक्ति मिलती तन मन को।
अंतस  देय  सुधार, संयमित  कर  जीवन को।।
कहें "सोम"समझाय,  बढ़ाई  हो उस  घर की।
जिस घर मन  से होय, साधना नित ईश्वर की।।
  
                                  ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

राम हमारे प्राण हैं,राम हमारी शान।
राम हमारा मान हैं,राम हमारी आन।
राम हमारी आन, बनें अब मंदिर प्यारा।
चलो अयोध्या धाम, यही अभियान हमारा।
कहे राज कविराय न हो तब तक युद्ध विराम।
जब तक तम्बू में रहें राम लला अभिराम।

राजकुमार सोनी

खुशी राम बाजपेई: कुण्डलिया का प्रयास

जागेंगे श्री हरि प्रभू, कार्तिक ग्यारह आज।
कारज शुभ होंगे शुरू,शंख उठेंगे बाज।
शंख उठेंगे बाज,बधाई होय बधाई।
कहे खुशी हरषाय,तिथि एकादशी आई।
पूरी औ पकवान,ईख मंडप साजेंगे।
होंगे मंगल गान,प्रभू श्री हरि जागेंगे।

खुशीराम बाजपेई

कवि कैलाश सोनी सार्थक जी: एक कुंडलिया छंद
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻

छाले सूखे कब कहो,
             कब बीती वो रात
दुख ने जिस दर पे किया,
           मातम का आघात

मातम का आघात,
       कहाँ जल्दी है भरता
जिसे चाहते आप,
      वही जिस दिन है मरता

कहते कवि कैलाश,
         पड़े सुख के घर ताले
भरे न मन के घाव,
           जवाँ रहते हैं छ़ाले
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
कैलाश सोनी सार्थक

बासुदेव अग्रवाल जिज्ञासा: बसन्त और पलाश

दहके झूम पलाश सब, रतनारे हों आज।
मानो खेलन फाग को, आया है ऋतुराज।
आया है ऋतुराज, चाव में मोद मनाता।
संग खेलने फाग, वधू सी प्रकृति सजाता।
लता वृक्ष सब आज, नये पल्लव पा महके।
लख बसन्त का साज, हृदय रसिकों के दहके।।

शाखा सब कचनार की, लगती कंटक जाल।
फागुन की मनुहार में, हुई फूल के लाल।
हुई फूल के लाल, बैंगनी और गुलाबी।
आया देख बसंत, छटा भी हुई शराबी।
'बासुदेव' है मग्न, रूप जिसने यह चाखा।
आमों की हर एक, लदी बौरों से शाखा।।

हर पतझड़ के बाद में, आती सदा बहार।
परिवर्तन पर जग टिका, हँस के कर स्वीकार।
हँस के कर स्वीकार, शुष्क पतझड़ की ज्वाला।
चाहो सुख-रस-धार, पियो दुख का विष-प्याला।
कहे 'बासु' समझाय, देत शिक्षा हर तरुवर।
सेवा कर निष्काम, जगत में सब के दुख हर।।

कागज की सी पंखुड़ी, संख्या बहुल पलास।
शोभा सभी दिखावटी, थोड़ी भी न सुवास।
थोड़ी भी न सुवास, वृक्ष पे पूरे छाते।
झड़ के यूँ ही व्यर्थ, पैर से कुचले जाते।
झूठी शोभा ओढ़, बने बैठे हो दिग्गज।
करना चाहो नाम, भरो सार्थक लिख कागज।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

के आर कुशवाह: *विधा* - *कुंडलियां*

     विषय - *दीपावली*

आया पर्व प्रकाश का,अंधकार ये दूर।
है जगमग सारा जहां,खुशियों से भरपूर।।
खुशियों से भरपूर, हो घर-घर में आरती।
बने विविध पकवान, मनाते मातु भारती।।
कहे हंस कविराय, हर्ष उर आज समाया।
पूजा धन की होय,अनोखा सा दिन आया।।

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

जाली चीनी माल है, इस पर देना ध्यान।
वहिष्कार करना सदा,बढ़े देश का मान।।
बढ़े देश का मान,स्वदेशी रखो पटाखा।
पोषित हो अब हिन्द,बलवती हो हर शाखा।।
कहे हंस कविराय, बजे खुशियों की ताली।
करो यही प्रण आज,न लेंगे चीजें जाली ।।

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

माला दीपों की बना ,रोशन करो जहान।
बिजली की करलो बचत,बढ़े वतन की शान।।
बढ़े वतन की शान,सभी मिलजुल कर रहना।
कपट द्वेष अरु दंभ,मार इनकी नहि सहना।।
करे हंस अनुरोध, मिटे ये क्रोधी ज्वाला।
खुशियों का त्यौहार, एकता की हो माला।।

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

जगमग है सारा जहां, उर में आज उमंग।
दीप जलाओ प्रेम का,खुशहाली के संग।।
खुशहाली के संग,खिलाते लोग मिठाई।
बैर-भाव तज आज,दिवाली देखो आई।।
कहे हंस कविराय, बहकने लागे हैं पग।
रमा रही अब आय,तभी है दुनिया जगमग।।

       के०आर०कुशवाह *हंस*

डॉक्टर रंजना वर्मा कवि: कुण्डलिया

झाँसी पर संकट पड़ा , करे फिरंगी वार ,
लक्ष्मीबाई कह उठी , उठा हाथ तलवार ।
उठा हाथ तलवार , राम सब संकट हर ले
नहीं हार स्वीकार, फिरंगी कुछ भी कर ले ।
कंटक मय हो पन्थ , चढ़ा  दे  चाहे  फाँसी
कभी न दूँगी किन्तु , शत्रु को अपनी झाँसी ।।
-----------------------------------डॉ. रंजना वर्मा

कुंडलियां-

अंतस  मन  से  बोलिए , तोल  मोल के बोल
वाचन मोती  सा  करें , जो  है  जग अनमोल
जो है जग अनमोल,  शुद्ध  कर रसना वाणी
शब्द -  शब्द  हो  रम्य , बनाये  मधुर  सुहानी
दूषण त्याग" विराट",सत्य फैलाओ जन जन
मृदुल भाव से नित्य ,साध लो रे! अंतस मन ।।

           श्रीमन्नारायणाचार्य" विराट "

विषय : लक्ष्मीबाई जयंती
विधा : कुण्डलिया छन्द

मर्दानी   कहते     सभी, लक्ष्मी   बाई    नाम।
जन्म दिवस है आज ही,करता 'ओम' प्रणाम।।
करता 'ओम'  प्रणाम, कौन   है  योद्धा   ऐसी।
अंग्रेजो     को    मार, खूब   की  ऐसी -  तैसी।।
झाँसी   से   थी  प्रीत, थी  बड़ी वो अभिमानी।
आए  वो    ही   याद, सुनें  जब  भी "मर्दानी"।।
                             *©मुकेश शर्मा "ओम"*

माया मालवेन्द्र बदेका जी: 🙏आज का विषय

जय जय प्रभु उठो देव जगत पुकारे।
हम दीनन के आप ही हो  हरि सहारे।
हरि सहारे चलती मेरी जीवन नैय्या।
आप ही हो  सुखदाता मेरे खिवैय्या।
कभी न हो संकट, कभी  न कोई भय।
मुख से निकले तेरा सिमरन प्रभु जय जय।

🌸🍀कुण्डलिया छन्द 🍀🌸

मंगल वेला आ गई, मन में जागी चाह।।
देव प्रबोधिनि आज है ,तुलसी होय विवाह।
तुलसी होय विवाह , मनोरथ पूर्ण सदा हो।
मिले सभी को काज, नहीं अब भाग्य बदा हो।।
करो यही अरदास,जीत हो अब हर दंगल ।
भजो सोम अनमोल,आ गई  वेला मंगल ।।

🍀🌸कन्हैया शर्मा 'अनमोल'🌸🍀

कवि संजय खरे:
🌹कुण्डलिया 🌹

नेता अपने आप को, ज्यादा व्यस्त बताँय।
चमचा पूरे रंग में, संगें रँगे दिखाँय।।
संगें रँगे दिखाँय, पुड़ी पैकिट बटआवे।
गाड़ीं चार लगाँय, तेल दम सें भरवावें।।
शुरू चुनावी दौर, श्वेत पट पहन प्रणेता।
पाँच साल के बाद, गाँव फिर आये नेता।।

🌹💐संजय "उमंग" 💐🌹

*कुण्डलिया*

~~~~~~~~~~~~~~~~
जागे सारे देवता,आया देवोत्थान।
घर घर में होने लगा, तुलसी का सम्मान।
तुलसी का सम्मान, कार्य आरम्भ हुए हैं।
माँ तुलसी ने नारायण के पाँव छुए हैं।
तुलसी जी की जो कि, नित्य आरती उतारे।
उसके सोये भाग्य सदा ही  जागे सारे।
~~~~~~~~~~~~~~~~
*अजय जादौन अर्पण*

संग्रह कर्ता:-

नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
छतरपुर  ( मध्यप्रदेश )
सम्पर्क सूत्र:- 8109643725

'कात्यायनी' काव्य संग्रह का हुआ विमोचन। - छतरपुर, मध्यप्रदेश

'कात्यायनी' काव्य संग्रह का हुआ विमोचन।  छतरपुर, मध्यप्रदेश, दिनांक 14-4-2024 को दिन रविवार  कान्हा रेस्टोरेंट में श्रीम...