Wednesday, September 26, 2018

आ 0:- एस.के. कपूर " श्रीहंस " जी








नमस्कार मित्रो
        आइये फिर जुड़ते हैं अपने पूर्व निर्धारित  " विषय वर्तमान साहित्य एवम साहित्यकार " से  और मिलते हैं फिर एक साहित्यकार से | मित्रो आपने निरन्तर इस विषय पर मेरा भरपूर साथ दिया है उसके लिए मैं आपका आभार व्यक्त करता हूं और आशा करता हूं कि आप भविष्य में भी मुझे इसी प्रकार साहस और प्यार देंगे |
मित्रो आइये आज एक वरिष्ठ साहित्यकार से भेंट करते हैं |

             ( कवि परिचय )

नाम- एस के कपूर हंस
पिता का नाम- स्व० वृजलाल कपूर
जन्म तिथि- 07/06/1950
कार्य- सेवानिवृत प्रबन्धक भारतीय स्टेट बैंक बरेली
वर्तमान निवास- पुष्कर एन्कलेव स्टेडियम रोड बरेली उ०प्र०
विधा- मुक्तक
दूरभाष- 9897071046

 मित्रो भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत श्री कपूर जी एक बहुत ही सरल स्वभाव के कवि हैं | कपूर जी के सफल साहित्यकार के साथ-साथ एक बहुत ही श्रेष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं |
मित्रो कपूर जी ने अपना साहित्यिक जीवन सन 1980 से आंग्ल भाषा में प्रारम्भ किया और वे सन 2000 तक लगातार आंग्ल भाषा में अपना गद्य एवम पद्य साहित्य विभिन्न मंचो के माध्यम से प्रस्तुत करते रहे | सन 2000 के उपरान्त उन्होंने हिन्दी भाषा पर कार्य करना प्रारम्भ किया और सन 2007 आते आते वे हिन्दी में भी अपनी रचनाओं का लोहा मनबाने लगे | मुख्य रूप से उन्होंने मुक्तक विधा को चुना परन्तु मुक्तकों के साथ-साथ गीत, नवगीत एवम कुण्डलियों पर भी उन्होंने अपनी कलम चलाई | आज वे अनेकों अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों के मंचों व सामाजिक एवम सॉस्कृतिक मंचो पर अपनी रचनायें प्रस्तुत कर रहे हैं तथा एक सफल साहित्यकार के रूप में जाने जाते हैं | कपूर जी ने 142 लेख लिखे हैं जो दैनिक जागरण के आइनेस्ट में छप चुके हैं ये सभी लेख युवाओं के मानसिक ,शारीरिक एवम बौद्धिक विकास में सहायक सिद्ध हुए हैं | कपूर जी आकाशवाणी रामपुर व बरेली से अनेकों बार काव्य पाठ व वार्ता प्रस्तुत कर चुके हैं | अनेकों साहित्यिक व सामाजिक पत्र पत्रिकाओं में उनकी रचनायें व लेख प्रकाशित हुए हैं | कपूर जी को अनेकों संस्थाओं के द्वारा विभिन्न सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है जिनमें जन चेतना साहित्यिक व सामाजिक समिति वीसलपुर, आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काब्य धारा रामपुर, साहित्य संगम संस्थान दिल्ली  प्रमुख हैं |
कपूर जी एक सफल साहित्यकार के साथ-साथ एक बहुत श्रेष्ठ समाज सुधारक भी हैं तथा सभ्य नागरिक हैं |
कपूर जी की उपरोक्त विशेषताओं को मैं प्रणाम करता हूं तथा उनके सफल साहित्यिक जीवन व सुखमय एवम स्वस्थ जीवन की कामना करता हूं |
कपूर जी की कुछ पंक्तियॉ----------
मान लो तो हार है ठान लो तो जीत है ,
यही है एक मंत्र सफलता का गीत है |
जितनी करोगे कोशिश उतना पार जाओगे,
सदा से चली आ रही यही तो एक रीत है  ||

हम आप और सब एक प्राण एक जान हैं ,
एक जैसी प्राणवायु बसते इसी जहान हैं |
क्यों हो गयीं दूरियॉ बढ़ी है कलुश भावना ,
धरती की सब सन्तानें एक जैसे इन्सान हैं ||

                     ( प्रस्तुति )
प्रो० आनन्द मिश्र अधीर
  दातागंज बदायूं उ०प्र०
दूरभाष- 9927590320
                8077530905

आ0:- अनिल सारस्वत जी









नमस्कार मित्रो
      आइये एकबार पुन: अपने पूर्व निर्धारित विषय "वर्तमान साहित्य एवम साहित्यकार" से जुड़ते हैं और जुड़ते हैं एक और साहित्यकार से | मित्रो आज मैं आपको ओज से परिपूर्ण देशभक्ति की रचनायें लिखने बाले एक बहुत ही लाड़ले कवि से  मिलाता  हूं जिसे हम अनिल सारस्वत के नाम से जानते   हैं |

       (   कवि परिचय  )

नाम- अनिल सारस्वत
पिता का नाम- श्री मदनलाल सारस्वत
जन्म स्थान- दिल्ली
जन्म तिथि-01/04/1965
वर्तमान निवास- उदयराज सिंह इण्टर कालेज के सामने काशीपुर   (उत्तराखण्ड)
कार्य- असि० मैनेजर फ्लैक्सी टफ इण्टर नेशनल लिमिटेड काशीपुर उत्तराखण्ड
दूरभाष-9412982615

         मित्रो ओज की कविता में महारत  हासिल करने बाले देशभक्ति और सम सामायिक विषयों पर मजबूती से कलम चलाने बाले श्री अनिल सारस्वत जी वर्तमान युवा साहित्यकारों में अपनी अलग पहिचान रखते हैं | देश की राजधानी दिल्ली में जन्में श्री सारस्वत जी ने काशीपुर उत्तराखण्ड को अपनी कर्मभूमि के रूप में चुना है और वर्तमान में काशीपुर में अपनी लेखनी को अविराम गति प्रदान कर रहे हैं | वे सन,1990 से निरन्तर साहित्य साधना में निमग्न हैं और साहित्य परोस रहे हैं |
श्री सारस्वत जी एक दैदीप्यमान सितारे हैं जो निरन्तर अपनी आभा से सबको प्रकाशित कर रहे हैं |
सारस्वत जी सैकड़ों अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में अपनी कविताओं का पाठ कर चुके है तथा जनता की तालिओं का बहुत बड़ा खजाना एकत्र कर चुके हैं|  वे आकाशवाणी रामपुर, दूरदर्शन दिल्ली व सुदर्शन चैनल से भी काब्य पाठ कर चुके हैं |
अनिल जी को अनेकों सम्मान प्राप्त हो चुके हैं जिनमें वीर भाषा हिन्दी साहित्य पीठ मुरादाबाद द्वारा साहित्य प्रतिभा सम्मान , हाथरस में अमर शहीद अमर चन्द्र वाठिया स्मृति सम्मान, नाज- ए-ओज सम्मान हल्द्वानी, समर्पण संस्था विलासपुर द्वारा समर्पण सम्मान , संस्कार भारती संस्था द्वारा सम्मान तथा शोशल वेलफेयर कल्चर एंड एसोशिएशन सोसाइटी द्वारा प्रतिभा सम्मान प्रमुख हैं |
     उनकी ओज की रचनायें अत्यन्त प्रभावी व सराहनीय है जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने में पूर्णतया परिपक्व हैं |
भाषा की सरलता व परिस्थितियों  का सजीव चित्रण उनकी रचनाओं की विशेषता है |
एक सफल साहित्यकार होने के साथ-साथ श्री सारस्वत जी एक बहुत अच्छे खिलाड़ी भी हैं | एथलेटिक्स में कुमाऊं विश्व विद्यालय के गोल्ड मैडलिस्ट भी रहे हैं सारस्वत जी ,वे जिला एथलेटिक्स संघ उधमसिंह नगर के अध्यक्ष हैं तथा प्रदेश एथलेटिक्स एशोसिएशन देहरादून के सदस्य हैं  |
कुल मिलाकर सारस्वत जी अलौकिक प्रतिभाओं के धनी हैं |
मुझे गर्व है कि वो मेरे अतिशय सन्निकट मित्र है मैं उन्हें उनकी उपलब्धियों पर बहुत बहुत शुभकामनायें प्रेषित करता हूं तथा उनके सफल साहित्यिक जीवन व सुखमय भविष्य की कामना करता हूं |

                         (   प्रस्तुति  )
  प्रो० आनन्द मिश्र अधीर
  दातागंज बदायूं  (उ०प्र०)
दूरभाष- 9927590320
             8077530905

आ0:- हृदयेश शर्मा जी









नमस्कार मित्रो
     आइये फिर जुड़ते हैं अपने पूर्व निर्धारित  " विषय वर्तमान साहित्य एवम साहित्यकार " से और मिलें फिर एक कवि / साहित्यकार से | मित्रो आइये इस विषय में मिलते हैं एक युवा कवि से जिसका नाम है हृदयेश शर्मा |

         (  कवि परिचय )

नाम-  हृदयेश शर्मा
पिता का नाम- श्री शिव औतार शर्मा
जन्म स्थान-ग्राम - वारा चिर्रा, कादरचौक, बदायूं , (उ०प्र०)
वर्तमान निवास- मो० किला खेड़ा , उझानी, उ०प्र०)
जन्म तिथि- 10/02/1988
कार्य- अं० का० प्रवक्ता रसायन विज्ञान ( आर पी एस एस डिग्री कालेज दातागंज )
दूरभाष-9410003222

 मित्रो जनपद बदायूं केन्द्र से १२ किमी दूर उझानी नगर के हृदयेश शर्मा जी एक ऐसे  युवा कवि हैं जो पिछले १० वर्षों से साहित्य की सेवा कर रहे हैं | हृदयेश जी बचपन से  साहित्यिक व सॉस्कृतिक परिवेश में पले बढ़े | हृदयेश जी अपने विद्यालयी जीवन से  साहित्यिक एवम सॉस्कृतिक कार्यक्रमों से जुड़े रहे तथा समस समय पर उनमें भाग लेते रहे समय के साथ - साथ  उनकी साहित्यिक अभिरुचि पुष्पित व पल्लवित होती रही | उन्होंने प्रारम्भ में छोटी छोटी अतुकान्त रचनायें लिखीं जो सारगर्भित थी फिर उन्होंने मुक्तक व गीत लिखना प्रारम्भ किया | परन्तु स्वच्छन्द कविता से उनका विशेष लगाव रहा और वे निरन्तर उसे आगे बढ़ाते रहे | हृदयेश जी कवि मंचो पर बहुत कम रहे हैं या यूं कहें उन्हें कवि मंचों पर जाने के  बहुत कम अवसर प्राप्त हुए हैं परन्तु छोटी छोटी गोष्ठियों व सॉस्कृतिक मंचो आदि पर उनकी प्रस्तुतियॉ रही हैं  |
हृदयेश जी की रचनायें वस्तुत: सम सामायिक विषयों पर हैं वे जीवन्त व ज्वलन्त समस्याओं पर अपनी लेखनी चलाते हैं |
हृदयेश जी की भाषा सरल व मधुर है दैनिक जीवन में बोले जाने वाले शब्दों का प्रयोग अपनी कविता में करके उन्होंने उसे और प्रभावशाली बना दिया है |
हृदयेश जी नृत्य कला में भी निपुण हैं उन्होंने नृत्य में अनेकों पुरुस्कार जीते हैं |

हृदयेश जी निरन्तर काब्य साधना करते रहें तथा मॉ वीणापाणी उन्हें एक बड़ा साहित्यकार बनाये | मैं कामना करता हूं कि वे  साहित्यिक वट का एक अमूल्य हिस्सा बनें तथा सुखी एवम स्वस्थ जीवन गुजारें |

                    (  प्रस्तुति )
प्रो० आनन्द मिश्र अधीर
 कवि, संयोजक, संचालक एवम समीक्षक
दातागंज बदायूं उ०प्र०
दूरभाष-9927590320
             8077530905

आ0:- रामबहादुर व्यथित जी






नमस्कार मित्रो

      मित्रो कवि सम्मेलनों के कार्यक्रमों की अधिकता की बजह से हमारा पूर्व निर्धारित विषय "वर्तमान साहित्य एवम साहित्यकार"  कई दिन वाधित रहा | मित्रो आइये पुन: जुड़ते हैं अपने विषय से और मिलते हैं एक और  साहित्यकार से |
 मित्रो आज मैंने इस विषय के लिए जिस साहित्यकार का चयन किया है वह अपने में साहित्य का एक सागर है | आइये मिलते हैं उस साहित्यकार से |

          (   कवि परिचय  )
नाम- डॉ रामबहादुर व्यथित
पिता का नाम- श्री बाबूराम माथुर
वर्तमान निवास- विजय वाटिका , कोठी नं० ३ सिविल लाइन्स बदायूं उ०प्र०
कार्य- सेवानिवृत उप प्रधानाचार्य (इस्लामियॉ इण्टर कालेज बदायूं)
दूरभाष-   9837618715

         मित्रो बदायूं के साहित्य को हिन्दुस्तान के कोने कोने में पहुंचाने बाले गीत ,नवगीत लघुकथा ,कहानी,आलेख, रेडियो वार्ता एवम समीक्षा के सफल रचनाकार डॉ रामबहादुर व्यथित को कौन नहीं जानता | विगत ४० वर्षों से साहित्य के क्षेत्र में नित नये आयाम गढने बाले  डॉ साहब बदायूं के साहित्यिक बटवृक्ष की प्रमुख टहनी हैं |
बुलन्द आवाज के धनी व्यथित जी अविरल साहित्य परोसते रहे हैं यह सर्वथा सत्य है | उनकी शैली एवम चिन्तन अन्य कवियों से बहुत ही भिन्न है | व्यथित जी ने साहित्य को जिया है तथा अनेकों अग्नि परीक्षाओं को पार करके स्वयं को स्थापित करने में सफलता अर्जित की है |
देश के सात प्रदेशों के विभिन्न स्थानों पर आयोजित सैकड़ों कवि सम्मेलनों में उन्होंने अपनी कलम को प्रस्तुत किया है और बदायूं का नाम रोशन किया है |
उन्होने देश के विभिन्न मंचों से अनेकों सम्मान प्राप्त किये हैं |
जिनमें वंदे भारती संस्थान अम्वेडकर नगर द्वारा केशव सम्मान, भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा महात्मा ज्योतिवा फूले फैलोशिप अवार्ड, पुष्पमेघा प्रकाशन छत्तीसगढ़ द्वारा स्व० श्री हरिठाकुर सम्मान, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा भारती ज्योति सम्मान, अवधेश नरायन स्मृति सम्मान दिल्ली, वृज गौरव सम्मान मथुरा, तथा वेदामऊ वैदिक विद्यापीठ बदायूं द्वारा साहित्य वाचस्पति सम्मान प्रमुख हैं  |
व्यथित जी एक कवि के साथ-साथ एक बहुत श्रेष्ठ आलोचक, एवम समीक्षक भी हैं उन्होंने हिन्दी गद्य व पद्य दोनों में समान कार्य किया है |
उनकी भाषा सरल एवम शोधपरख है |
व्याकरण की दृष्टि से उनकी रचनायें प्रभावशाली हैं  |
व्यथित जी की ६ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जो निम्न हैं |
छाप छोड़ती कवितायें, देवदासी ( लघु कथा संग्रह) , विषदन्त मसलने ही होंगे,  प्रखर शब्द शिल्पी ( समीक्षात्मक आलेख), दर्पन झूठ न बोले, तथा ऑखें बोलती हैं |
दर्पन झूठ न बोले पुस्तक 55 ग्रन्थों की समीक्षा है |
सम्पूर्ण व्यक्तित्व एवम कृतित्व पर नज़र डालने के बाद निष्कर्ष निकलता है कि श्री व्यथित जी एक श्रेष्ठ साहित्यकार हैं |
 व्यथित जी की कुछ पंक्तियॉ-----
 भजन मीरा के हैं गूंजे, वंशी मधुर घनश्याम की |
अलख हम फिर से जगायें , राम औ रहमान की |
कबीर ,नानक और चिस्ती आज मिलकर गा रहे,
यह वही धरती है प्यारी रहीम औ रसखान की |
   मैं श्री रामबहादुर व्यथित जी के साहित्य की हृदय से प्रशंसा करता हूं तथा उनके अविरल साहित्य व सुखी ,स्वस्थ एवम लम्बी आयु की कामना करता हूं |
     
                  प्रस्तुति

  प्रो० आनन्द मिश्र अधीर
दातागंज ,बदायूं, उ०प्र०
दूरभाष- 9927590320
            8077530905

Thursday, September 13, 2018

श्री गणेश चतुर्थी






गणेश चतुर्थी


गणराज,गणेश,गजानन हो।
तुम गणपति कष्ट निवारक हो।।
हो विश्वमुखी ब्रह्मांड गुरु।
प्रभु तुम महेश के बालक हो।।
तुम पार्वती के पुत्र महा।
है जग जाहिर महिमा तेरी।।
जिसपर कृपा कर देते हो।
फिर ना रहता सहमा सहमा।।
तुम वरदविनायक हो स्वामी।
घट घट वासी अंतर्यामी।।
तुम भाग्य विधाता विश्वराज।
करते हो तुम तो सफल काज।।
हृदय तेरी सुन्दर छवि है।
ब्रम्हाण्ड चमकता वो रवि है।।
विद्यावारिधि बुद्धि के देव।
स्कन्दपूर्व कार्तिकेय देव।।
मृत्युंजय मौत को हरते हो।
कृपा सब पर ही करते हो।।
करता तेरी हरदम पूजा।
न जगत में तुमसा है दूजा।।
तुम सब कवियों के स्वामी हो।
भारत के हिय सुखधामी हो।।


नीतेन्द्र " भारत "
छतरपुर  ( म.प्र.)

Monday, September 10, 2018

आ0:- के.पी.सक्सेना जी









नमस्कार मित्रो
     आज आपका फिर स्वागत है हमारे पूर्व निर्धारित विषय "वर्तमान साहित्य एवम साहित्यकार" में आइये आज फिर मिलते हैं एक और कवि से | मित्रो आज मैंने उस साहित्यकार को चुना है जिसके गीतों में भीनी-भीनी खुशबू है ,एक अनोखा एहसास है अर्थात वरिष्ठ कवि कमल सक्सेना बरेली |

         ( कवि परिचय )

नाम-  के० पी० सक्सेना
साहित्यिक नाम- कमल सक्सेना
जन्म तिथि- 01/01/1956
जन्म स्थान- ग्राम- ककौड़ी, जिला हापुड़  (उ०प्र०)
वर्तमान निवास- 255,  पवन विहार पीलीभीत वाईपास बरेली  (उ०प्र०)
कार्य- लेखा परीक्षक (रक्षा लेखा विभाग)
दूरभाष- 9411915646

    मित्रो जब गीतकारों का चर्चा होता है तो अनायास ही कमल सक्सेना का नाम जुवां पर आ ही जाता है | हापुड़ जिले  के ककौड़ी गॉव में जन्में श्री कमल सक्सेना जी हिन्दी गीतों के सुकुमार कवि हैं | पिछले लगभग तीस वर्षों से हिन्दी साहित्य के उत्थान में अपना योगदान देने बाले  कवि श्री कमल सक्सेना जी एक कोमल रचनाकार हैं |
गीतों के साथ-साथ उनके मुक्तक व घनाक्षरी छन्द भी उत्कृष्ट कोटि के हैं | देश ,समाज और पारिवारिक विषयों पर उनका लेखन बहुत ही सराहनीय है | कमल जी की हिन्दी शब्दकोष पर बहुत ही अच्छी पकड़ है उन्होंने विशुद्ध हिन्दी के शब्दों का प्रयोग अपनी रचनाओं में किया है जो उनकी रचनाओं को और अधिक प्रभावशाली  बनाते हैं |
उनकी भाषा सरल व शोधयुक्त है रस ,छन्द व अलंकारों का प्रयोग  बहुत ही श्रेष्ठ तथा आकर्षक है |
आजकल मंचों पर परोसे जा रहे फूहड़पन से दूर हटकर श्री कमल जी ने साहित्य रचना की जो युवा पीढ़ी के लिए एक महत्वपूर्ण सन्देश व शिक्षा है |
देश के अनेकों मंचों पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनबाने बाले श्री कमल सक्सेना जी हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं | कवि  मंचो के साथ-साथ उन्होंने अनेकों  बार आकाशवाणी रामपुर व बरेली से सफल काव्य पाठ किया है| श्री कमल सक्सेना जी अनेकों साहित्यिक सम्मानों से सम्मानित हो चुके हैं | अपने सरल व सौम्य व्यवहार से कमल सक्सेना जी सभी साहित्यकारों के प्रिय हैं |
      श्री कमल सक्सेना जी के गीतों की पुस्तक " कब तक मन का दर्द छुपाते " प्रकाशित हो चुकी है प्रस्तुत है उनकी पुस्तक का एक गीत ---------

 राजपथों पर भटक न जाना  ये पूजा का थाल लिये |
क़दम-क़दम पर खड़े शिकारी दोनों हाथों जाल लिये ||

नैनो की भाषा पढ़ लेंगे हमको थी इतनी आशा |
पागल मन क्यों समझ न पाया पागल मन की अभिलाषा |
माना कुछ धुंधली - धुंधली थी  मेरे पत्रों की भाषा |
लेकिन इतनी कठिन नहीं थी अमर प्रेम की परिभाषा |
मैंने सारे पत्र लिखे थे नैना सिन्धु विशाल लिए |
राजपथों पर--------------

क्या तुम जानों हमको कितनी पीर मिली अभिनन्दन से|
हमनें रो - रो रात बितायीं संत्रासों  के वन्दन से |
टूट गये तटबंध नैन के अभिलाषा के क्रन्दन से |
हमने पग- पग गरल पिया पर खड़े रहे हम चन्दन से |
जब - जब  हमने रचा स्वयंवर पीर मिली जयमाल लिये राजपथों पर-------------

कल के सुख की आशा में जो रखते याद अतीत नहीं|
जीवन के सूने पंथों पर होती उनकी जीत नहीं |
मीत बिना कहीं प्रीति नहीं है प्रीति बिना कोई मीत नहीं |
टूटे दिल के टुकड़े करना प्रेमगन्थ की रीति नहीं |
मानसरोवर छोड़े तुमने मृगतृष्णा के ताल लिये |
राजपथों पर भटक न जाना ये पूजा का थाल लिये ||
 
अन्त में मैं श्री कमल सक्सेना जी की  रचना धर्मिता को प्रणाम करते हुए उनके अविरल साहित्य व सुखी एवं निरोगी जीवन की मॉ शारदे से कामना करता हूं ||

                        ( प्रस्तुति )
 प्रो० आनन्द मिश्र अधीर
  दातागंज ,बदायूं (उ०प्र०)
 कवि ,संयोजक, संचालक एवम समीक्षक
दूरभाष- 9927590320
             8077530905

Saturday, September 8, 2018

मुलाकात







ये पल कैसे भूलू!



आज दिनांक 08/09/2018 को आ0:- शैलेन्द्र खरे "सोम" ( छंद गुरू ) जी का फोन आया और अचानक से मुझे बताया। कि नीतेन्द्र हम छतरपुर आये हैं। आप कहा पर हो।मेरा मन इतना ही सुनते गद् गद् हो गया। मैनें कहा गुरूवर आप कहा हैं। में वही आता हूँ। गुरूवर जी ने पता बताया।तो मैं इतना खुश था की पता ही सही से याद नही रहा थोड़ा आगे बढ़कर मैंने फिर से फोन किया तो आदरणीय ने बताया कि हम अपनी बहिन जी के यहा पर हैं जो सटई रोड पर मकान पड़ता हैं। मैं बहुत हर्षित था। कि ना जाने कितने दिनो बाद गुरुवर से मुलाकात का द्वितीय अवसर प्राप्त हो रहा हैं। जैसे ही मैं उस जगह पर पहुंचा तो चारो ओर देखने लगा पर दिखे नही पर थोड़ी देर वहा खड़ा होने के बाद सामने के रास्ते से आते हुये दिखे मैं दौड़कर गया और गुरुवर के चरण स्पर्श किया और गुरूदेव ने मुझे अपने हृदय से लगा लिया। आज मानो ऐसा लग रहा हैं कि मुझे ईश्वर ने कितना सुंदर अवसर दिया हैं। जिसे पाकर हम धन्य हो गये।
                 फिर गुरुदेव ने कहा कि प्रिये नीतेन्द्र मुझे आ0:- सुरेन्द्र शर्मा सुमन जी से मिलना हैं। जो कि बहुत अच्छे साहित्यकार हैं। हमने तुरंत हां की और साथ आ0:-जयकांत पाठक जी भी मिलना चाहते थे । गुरुदेव से तो उनका भी फोन मेरे पास आ रहा हैं। तो गुरुदेव के आदेश को पाते हुए। चले तो गुरुदेव ने बिना मोटरसाइकिल के चलने को कहा। बोलो चलो घूमते हुए पैदल चलते हैं तकरीबन डेढ़ किलोमीटर दूर घर था फिर भी वो पैदल चलने को तैयार थे। थोड़े ही दूर चले तो आ0:- जयकांत पाठक जी मिले रास्ते जो इंतजार कर रहे थे। गुरुवर को प्रणाम किये और साथ में आ0:- सुमन जी के घर की ओर हम पाठक जी गुरुदेव चलने लगे तथा चारो तरफ का नज़ारा देखते हुए। आ0:- सुमन दादा जी के घर पहुंचे । आ0:- सुमन दादा भी गुरुदेव से मिलना चाहते थे। ज्यों ही गुरुदेव को देखा छत से तुरंत नीचे आये। और दोनो आ0:- को भेंट हुई। और चाय नाश्ता के साथ मुह भी मीठा कराया तथा फलाहार भी हुआ। फिर लगभग सभी आ0:- का साहित्यिक परिचय हुआ तथा आ0:-सुमन दादा जी की रचनात्मक लेखन सुना देखा और पढ़ा और गुरूदेव से भी हमें और आ0:- पाठक जी को बहुत कुछ सुनने को मिला । आज मानो ऐसा लग रहा था। जैसे हम सुमन दादा के घर में जबकि स्वर्ग लोक में बैठे हुये हैं।साहित्यिक चर्चा होती रही लगभग चार- पाँच घंटों तक इसके बाद फिर सभी को प्रणाम करते हुये। आ0:-सुमन दादा के यहा से हम,पाठक जी और गुरूदेव आने लगे। फिर रास्ते में ही पाठक जी ने प्रणाम किया और वो अपने घर के लिए गये। तथा फिर गुरुदेव के साथ गुरुवर जी की बहिन जी के घर पहुंचे और गुरूदेव ने आज्ञा लेकर अपने नौगाँव के लिए जाने को कहा बहुत रोकने बाद भी गुरुदेव ने बताया। जरूरी काम होने के कारण मुझे घर जाना हैं। तो बहिन जी के मैं चरण स्पर्श करते हुये । आ0:- गुरुवर को गाड़ी में बिठाकर कर गुरुदेव के चरण स्पर्श करते हुए। आज्ञा लेते हुए। वापिस अपने घर आया।
         यदि कही पर लेखन में कोई त्रुटिपूर्ण हो तो कृपया क्षमा करें। मन के भाव सहित आज रहा नही गया मुझे कि हम सभी को वो पल बताये।
     
धन्यवाद!


स्थान:- सटई रोड छतरपुर  ( मध्यप्रदेश )


   - नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
      छतरपुर ( मध्यप्रदेश )
      सम्पर्क :- 8310237314 



Thursday, September 6, 2018

आ0:- शमशेर बहादुर सक्सेना







नमस्कार मित्रो

         आइये आज फिर जुड़ते हैं अपने पूर्व निर्धारित विषय " वर्तमान साहित्य एवम साहित्यकार " से और मिलते हैं एक और कवि से |
मित्रो आज जिस साहित्यकार को मैंने इस विषय के लिए चुना है वह जनपद बदायूं का बहुत बड़ा नाम है तथा बदायूं की युवा पीढ़ी का बहुत बड़ा मार्गदर्शक है वो नाम जिसे हम सब वरिष्ठतम कवि श्री शमशेर बहादुर ऑचल कहते हैं |
 
           ( कवि परिचय )

नाम- शमशेर बहादुर सक्सेना
साहित्यक नाम- शमशेर बहादुर ऑचल
पिता का नाम- श्री सिया सरन लाल सक्सेना
जन्म तिथि- 09/02/1946
जन्म स्थान - बदायूं  (उ०प्र०)
वर्तमान निवास- मो० गड़ैय्या शाहबाजपुर, बदायूं ( उ०प्र०)
मुख्य विधा- हास्य-व्यंग
दूरभाष- 7037133835

             मित्रो शमशेर बहादुर ऑचल बदायूं का वो नाम है जिसने साहित्य में बदायूं को बहुत ऊंचाइयॉ प्रदान कीं |
ऑचल जी स्व० बृजेन्द्र अवस्थी की पीढ़ी के कवि हैं तथा बदायूं जनपद के साहित्य के सिरमौर हैं |
ऑचल जी अपनी खुद्दारी के लिए सर्व विदित हैं उन्होंने कभी भी असत्य के समक्ष अपना सिर नहीं झुकाया |
 ऑचल जी पिछले 50 वर्षों से साहित्य की सेवा में रत हैं |
तथा निरन्तर हिन्दी साहित्य को नये आयाम दे रहे हैं | ऑचल जी ने सदा मौलिक साहित्य पर बल दिया तथा युवा साहित्यकारों को मौलिक साहित्य लिखने की प्रेरणा दी |
बैसे तो ऑचल जी ने प्रत्येक रस पर सफल रचनायें लिखीं हैं लेकिन उन्हें हास्य और व्यंग का बहुत ही श्रेष्ठ रचनाकार माना जाता है |  ऑचल जी ने गीत, गज़ल, घनाक्षरी, मुक्तक, दोहा, सवैया, और रुवाई आदि सभी पर अपनी लेखनी चलाई और सफलता अर्जित की |
देश के सैकड़ों मंचों से उन्होंने अपनी रचनाओं का पाठ किया है तथा अनेकों सम्मान प्राप्त किये हैं वे आकाशवाणी रामपुर से सन 1979 से लगातार काव्य पाठ कर रहे हैं इससे पहले वे आकाशवाणी लखनऊ से भी अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं |
उनका शब्द विन्यास अदभुत है उनकी भाषा सरल एवम समीक्षात्मक है , उनके प्रतीक और अलंकरण बहुत ही श्रेष्ठ हैं | उनकी रचनाओं में  शिक्षा तथा सन्देश हैं | उनके अन्दर अपनी बात को बड़े ही सहज भाव से कहने का अन्दाज है |
 सन 1972 में ऑचल जी की मेला ककोड़ा दर्शन नाम की पुस्तक प्रकाशित हुई जो बहुत प्रसिद्ध हुई वे प्रति वर्ष उस पुस्तक की सैकड़ों प्रतियॉ मेले में निशुल्क वितरित करते हैं | उनकी दूसरी पुस्तक श्री मद भगवत विनय माला  दर्पण है जिसमें उन्होंने सभी देवताओं का वर्णन एवम आराधना की है |
ऑचल जी की रचनायें हिन्दी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं तथा वे अमिट हस्ताक्षर हैं जो काल भी मिटाने का दुस्साहस नहीं करेगा |

उनकी रचनाओं के कुछ अंश------

ज़िन्दगी चाहे न बीती धन कुबेरों की तरह |
किन्तु जो बीती वो बीती वन के शेरों की तरह ||

                ( मुक्तक )

गर नेताजी आप न होते |
तो दुनिया में पाप न होते |
स्वर्ग सरीखी दुनिया होती ,
ये रावण के वाप न होते |

ख्याली महल चुन लेने से आला कौन होता है ?
बने गर ठाल खुद ईश्वर तो भाला कौन होता है ?
बड़ा वो है जिसे दुनिया बड़ा बोले, बडा समझे ,
निराला नाम रखने से निराला कौन होता है ?

सुनायें क्या भला हम आपको रूदाद अप-बीती !
गये सागर में फिर भी अपनी गागर रह गयी रीती !
घुटन,तड़पन,हिकारत, बेबसी,बेचारगी तल्खी !
इन्हीं पुख्ता किराये के घरों में ज़िन्दगी बीती !

मित्रो अन्त में मैं यही कहूंगा कि ऑचल जी एक सम्पूर्ण साहित्यकार हैं तथा युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं  मैं अकिंचन भला उनके विषय में क्या लिख सकता हूं | उनका आशीष मुझे मिला है यह मेरा सौभाग्य है | मैं ऑचल जी की लम्बी आयु एवम अनवरत साहित्य रचना की मॉ शारदे से कामना करता हूं ||

                         ( प्रस्तुति )
   प्रो० आनन्द मिश्र अधीर
  दातागंज बदायूं  (उ०प्र०)
कवि, संयोजक, संचालक एवम समीक्षक
दूरभाष-   9927590320
             8077530905

Wednesday, September 5, 2018

शिक्षक दिवस





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*शिक्षक दिवस*


करे सम्मान हम सबका,गुरु प्रभु सम दिखाई हैं।
सुहानी हैं घड़ी आई,हुये मेरे सहाई हैं।।
रहूगा जब तलक भू पर करूं गुरू मात की सेवा।
सभी ने ली कसम जो थी,बताई हैं निभाई हैं।।


- नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
   छतरपुर  ( मध्यप्रदेश )

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'कात्यायनी' काव्य संग्रह का हुआ विमोचन। - छतरपुर, मध्यप्रदेश

'कात्यायनी' काव्य संग्रह का हुआ विमोचन।  छतरपुर, मध्यप्रदेश, दिनांक 14-4-2024 को दिन रविवार  कान्हा रेस्टोरेंट में श्रीम...