Saturday, March 30, 2019

आ० हीरालाल यादव जी

*ग़ज़ल*
221 2121 1221 212

इन्सानियत का पाठ पढ़ाने की बात हो।
नफ़रत सभी दिलों से मिटाने की बात हो।

रोने  की  बात  हो न रुलाने की बात हो।
ख़ुशहाल ज़िन्दगी को बनाने की बात हो।

दीमक  के  जैसे  चाट  रहें हैं  जो एकता
नाम-ओ-निशान उनका मिटाने की बात हो।

रखती  है  दूर  आदमी  को  आदमी से जो
नफ़रत की वो दीवार  गिराने  की  बात हो।

आयेंगे  वो  न  बाज  ये जब जानते हैं हम
क्यों दुश्मनों से हाथ मिलाने की बात हो।

ख्वाबों में जी रहा ये पड़ोसी जो मुल्क है
अब आइना इसे भी दिखाने की बात हो।

*हीरा*  करेंगे   बात  सितारों   की  बाद  में
भूखों की पहले भूख मिटाने की बात हो।

               हीरालाल

आ० हीरालाल यादव जी

*ग़ज़ल*
1222 1222 122

नशे  में  मूँद  कर  आँखें  पड़े  हैं।
सियासत में जो ये चिकने घड़े हैं।

जुगत कर के जो कुर्सी पर हैं बैठे
उन्हें  लगता  है वो मोती जड़े हैं।

नज़र  आती  नहीं  है राह कोई
ये कैसे मोड़ पर हम आ खड़े हैं।

नहीं   बदलेंगे   यूँ  हालात  यारो
हमीं  को  फैसले  लेने  कड़े  हैं।

सुलह  का रास्ता निकलेगा कैसे
जो जिद पर आप हम दोनो अड़े हैं।

सदाकत  की  चुनी है राह *हीरा*
तभी दुनिया की नज़रों में गड़े हैं।

                   हीरालाल

Friday, March 29, 2019

आ० शिव गोविंद सिंह गीत

.             *गीत सुहाने*
तर्ज:-किसी का घर द्वार न छूटे
--------------------------------------------
चंचल ,चतुर ,चपल कहते है,
                  आते जाते लोग।।
पर हम तेरी राह निहारे,
                   ये कैसा संयोग।।

सनम हम तुम्हे पुकारे ।
          तुम्हारी राह निहारे।।
               *(१)*
रुत आई है बसन्ती,
    पर अब तक तुम न आये।।
कोयल गीत सुनाती,
                  आम रहे बौराये।।
मंद पवन की महके खुशबु,
      पर हमको लगा वियोग..

सनम हम तुम्हे पुकारें,
            तुम्हारी राह निहारे।।
                 *(२)*
चिड़िये चहक रही है,
          फर फर पंख फैलाये।।
कल कल बहती नदियां,
             प्रकृति प्रेम दरषाये।।
दर दर माथा टेक रहे है,
           प्रभु को लगाये भोग...

सनम हम तुम्हे पुकारे,
          तुम्हारी राह निहारे ।।
                 *(३)*
पूछ रही है सखियाँ ,
                पूछ रहे घरबाले।।
कैसे उन्हे बताये,
   हम पी गये प्यार के प्याले।।
मन जोगन की को पहचाने,
             लगा प्रेम को रोग....

सनम हम तुम्हे पुकारे,
           तुम्हारी राह निहारे ।।
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  🌹 *शिव गोविन्द सिंह*🌹

अनंगशेखर छंद नीतेन्द्र सिंह परमार भारत

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*अनंगशेखर छंद*
शिल्प : जगण रगण जगण रगण जगण गुरु
16 वर्ण, दो दो चरण समतुकांत
121 212 121 212  121  2

निहार लीजिये  हिया विकार मुक्त हों अभी।
सुधार  लीजिये  सुनों विचार  युक्त हों सभी।।
बनी  रहे  कृपालु  आपकी   कृपा   सुहावने।
निहारते    रहें    सदैव    सोमजू    लुभावने।।

नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
छतरपुर  ( मध्यप्रदेश )

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Thursday, March 28, 2019

डायलॉग नम्बर एक

*डायलॉग* _नम्बर एक_

रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप होते हैं।

नाम है भारत।

*किस देश ने किस देश से कहा ?*

नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
छतरपुर  ( मध्यप्रदेश )
सम्पर्क सूत्र:- 8109643725

आ० हीरालाल यादव जी

*ग़ज़ल*
2122 1212 22

आज कल खो रहा मेरा दिल है।
आपका हो  रहा मेरा  दिल है।

चैन  से  ओ  सुकून  से  अपने
हाथ ख़ुद धो रहा मेरा दिल है।

अपने हाथों से  अपनी राहों में
काँटे खुद बो रहा मेरा दिल है।

क्या है दुनिया, है  भूल  बैठा ये
रात-दिन सो रहा मेरा दिल है।

याद आई है आज फिर उसकी
आज फिर रो रहा मेरा दिल है।

अपनी नाकामियों का ग़म *हीरा*
कांधों  पे ढो  रहा मेरा दिल है।
                   हीरालाल

तत्सम और तद्भव शब्द

🌷तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण🌷🌷

*तत्सम शब्द*

तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना किसी परिवर्तन के ले लिया जाता है उन्हें तत्सम शब्द कहते हैं। इनमें ध्वनि परिवर्तन नहीं होता है।

जैसे :- हिंदी , बांग्ला , मराठी , गुजराती , पंजाबी , तेलगु , कन्नड़ , मलयालम आदि।

*तद्भव शब्द*

समय और परिस्थिति की वजह से तत्सम शब्दों में जो परिवर्तन हुए हैं उन्हें तद्भव शब्द कहते हैं।

🌷तत्सम और तद्भव शब्दों को पहचानने के नियम🌷

(1) तत्सम शब्दों के पीछे ‘ क्ष ‘ वर्ण का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों के पीछे ‘ ख ‘ या ‘ छ ‘ शब्द का प्रयोग होता है।

(2) तत्सम शब्दों में ‘ श्र ‘ का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों में ‘ स ‘ का प्रयोग हो जाता है।

(3) तत्सम शब्दों में ‘ श ‘ का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों में ‘ स ‘ का प्रयोग हो जाता है।

(4) तत्सम शब्दों में ‘ ष ‘ वर्ण का प्रयोग होता है।

(5) तत्सम शब्दों में ‘ ऋ ‘ की मात्रा का प्रयोग होता है।

(6) तत्सम शब्दों में ‘ र ‘ की मात्रा का प्रयोग होता है।

(7) तत्सम शब्दों में ‘ व ‘ का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों में ‘ ब ‘ का प्रयोग होता है।

*✳तत्सम शब्द = तद्भव शब्द के उदाहरण इस प्रकार हैं*

*अ, आ से शुरू होंने वाले तत्सम = तद्भव शब्द*

1. आम्र = आम
2. आश्चर्य = अचरज
3. अक्षि = आँख
4. अमूल्य = अमोल
5. अग्नि = आग
6. अँधेरा = अंधकार
7. अगम = अगम्य
8. आधा = अर्ध
9. अकस्मात = अचानक
10. आलस्य = आलस
11. अज्ञानी = अज्ञानी
12. अश्रु = आँसू
13. अक्षर = अच्छर
14. अंगरक्षक = अंगरखा
15. आश्रय = आसरा
16. आशीष = असीस
17. अशीति = अस्सी
18. ओष्ठ = ओंठ
19. आरात्रिका = आरती
20. अमृत = अमिय
21. अंध = अँधा
22. अर्द्ध = आधा
23. अन्न = अनाज
24. अनर्थ = अनाड़ी
25. अग्रणी = अगुवा
26. अक्षवाट = अखाडा
27. अंगुष्ठ = अंगूठा
28. अक्षोट = अखरोट
29. अट्टालिका = अटारी
30. अष्टादश = अठारह
31. अंक = आँक
32. अंगुली = ऊँगली
33. अंचल = आंचल
34. अंजलि = अँजुरी
35. अखिल = आखा
36. अगणित = अनगिनत
37. अद्य = आज
38. अम्लिका = इमली
39. अमावस्या = अमावस
40. अर्पण = अरपन
41. अन्यत्र = अनत
42. अनार्य = अनाड़ी
43. अज्ञान = अजान
44. आदित्यवार = इतवार
45. आभीर = अहेर
46. आम्रचूर्ण = अमचूर
47. आमलक = आँवला
48. आर्य = आरज
49. आश्रय = आसरा
50. आश्विन = आसोज
51. आभीर = अहेर

*इ , ई से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द*

52. इक्षु = ईंख
53. ईर्ष्या = इरषा
54. इष्टिका = ईंट

*उ , ऊ से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द*

55. उलूक = उल्लू
56. ऊँचा = उच्च
57. उज्ज्वल = उजला
58. उष्ट्र = ऊँट
59. उत्साह = उछाह
60. ऊपालम्भ = उलाहना
61. उदघाटन = उघाड़ना
62. उपवास = उपास
63. उच्छवास = उसास
64. उद्वर्तन = उबटन
65. उलूखल = ओखली
66. ऊषर = ऊँट

*ए , ऐ से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द*

67. एकादश = ग्यारह
68. एला = इलायची

ऋ से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-
69. ऋक्ष = रीछ

*क , ख से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द*

70. किरण = किरन
71. कुपुत्र = कपूत
72. कर्म = काम
73. काक = कौआ
74. कपोत = कबूतर
75. कदली = केला
76. कपाट = किवाड़
77. कीट = कीड़ा
78. कूप = कुआँ
79. कोकिल = कोयल
80. कर्ण = कान
81. कृषक = किसान
82. कुम्भकर = कुम्हार
83. कटु = कडवा
84. कुक्षी = कोख
85. क्लेश = कलेश
86. काष्ठ = काठ
87. कृष्ण = किसन
88. कुष्ठ = कोढ़
89. कृतगृह = कचहरी
90. कर्पूर = कपूर
91. कार्य = काज
92. कार्तिक = कातिक
93. कुक्कुर = कुत्ता
94. कन्दुक = गेंद
95. कच्छप = कछुआ
96. कंटक = काँटा
97. कुमारी = कुँवारी
98. कृपा = किरपा
99. कपर्दिका = कौड़ी
100. कुब्ज = कुबड़ा
101. कोटि = करोड़
102. कर्तव्य = करतब
103. कंकण = कंगन
104. किंचित = कुछ
105. केवर्त = केवट
106. खटवा = खाट

*ग , घ से शुरु होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द*

107. घोटक = घोडा
108. गृह = घर
109. घृत = घी
110. ग्राम = गाँव
111. गर्दभ = गधा
112. घट = घडा
113. ग्रीष्म = गर्मी
114. ग्राहक = गाहक
115. गौ = गाय
116. घृणा = घिन
117. गर्जर = गाजर
118. ग्रन्थि = गाँठ
119. घटिका = घड़ी
120. गोधूम = गेंहूँ
121. ग्राहक = गाहक
122. गौरा = गोरा
123. गृध = गीध
124. गायक = गवैया
125. ग्रामीण = गँवार
126. गोमय = गोबर
127. गृहिणी = घरनी
128. गोस्वामी = गुसाई
129. गोपालक = ग्वाला
130. गर्मी = घाम

*च , छ से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द*

131. चन्द्र = चाँद
132. छिद्र = छेद
133. चर्म = चमडा
134. चूर्ण = चूरन
135. छत्र = छाता
136. चतुर्विंश = चौबीस
137. चतुष्कोण = चौकोर
138. चतुष्पद = चौपाया
139. चक्रवाक = चकवा
140. चर्म = चाम
141. चर्मकार = चमार
142. चंचु = चोंच
143. चतुर्थ = चौथा
144. चैत्र = चैत
145. चंडिका = चाँदनी
146. चित्रकार = चितेरा
147. चिक्कण = चिकना
148. चवर्ण = चबाना
149. चक = चाक
150. छाया = छाँह

*ज , झ से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द*

151. जिह्वा = जीभ
152. ज्येष्ठ = जेठ
153. जमाता = जवाई
154. ज्योति = जोत
155. जन्म = जनम
156. जंधा = जाँध
157. झरन = झरना
158. जीर्ण = झीना

*त , थ से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द*

159. तैल = तेल
160. तृण = तिनका
161. ताम्र = ताँबा
162. तिथिवार = त्यौहार
163. ताम्बूलिक = तमोली
164. तड़ाग = तालाब
165. त्वरित = तुरंत
166. तपस्वी = तपसी
167. तुंद = तोंद
168. तीर्थ = तीरथ

*द , ध से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द*

169. दूर्वा = दूब
170. दधि = दही
171. दुग्ध = दूध
172. दीपावली = दीवाली
173. धर्म = धरम
174. दंत = दांत
175. दीप = दीया
176. धूम्र = धुआँ
177. धैर्य = धीरज
178. दिशांतर = दिशावर
179. धृष्ठ = ढीठ
180. दंतधावन = दतून
181. दंड = डंडा
182. द्वादश = बारह
183. द्विगुणा = दुगुना
184. दंष्ट्रा = दाढ
185. दिपशलाका = दिया सलाई
186. द्विप्रहरी = दुपहरी
187. धरित्री = धरती
188. दंष = डंका
189. द्विपट = दुपट्टा
190. दुर्बल = दुर्बला
191. दुःख = दुख
192. द्वितीय = इजा
193. दक्षिण = दाहिना
194. धूलि = धुरि
195. धन्नश्रेष्ठी = धन्नासेठी
196. दौहित्र = दोहिता
197. देव = दई

*न , प से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-*

198. पक्षी = पंछी
199. नयन = नैन
200. पत्र = पत्ता
201. नृत्य = नाच
202. निंद्रा = नींद
203. पद = पैर
204. नव्य = नया
205. प्रस्तर = पत्थर
206. नासिका = नाक
207. पिपासा = प्यास
208. पक्ष = पंख
209. नवीन = नया
210. नग्न = नंगा
211. पुत्र = पूत
212. प्रहर = पहर
213. पितृश्वसा = बुआ
214. प्रतिवेश्मिक = पड़ोसी
215. प्रत्यभिज्ञान = पहचान
216. प्रहेलिका = पहेली
217. पुष्प = फूल
218. पृष्ठ = पीठ
219. पौष = पूस
220. पुत्रवधू = पतोहू
221. पंच = पाँच
222. नारिकेल = नारियल
223. निष्ठुर = निठुर
224. पश्चाताप = पछतावा
225. प्रकट = प्रगट
226. प्रतिवासी = पड़ोसी
227. पितृ = पिता
228. पीत = पीला
229. नापित = नाई
230. पर्यंक = पलंग
231. पक्वान्न = पकवान
232. पाषाण =पाहन
233. प्रतिच्छाया = परछाई
234. निर्वाह = निवाह
235. निम्ब = नीम
236. नकुल = नेवला
237. नव = नौ
238. परीक्षा = परख
239. पुष्कर = पोखर
240. पर्ण = परा
241. पूर्व = पूरब
242. पंचदष = पन्द्रह
243. पक्क = पका
244. पट्टिका = पाटी
245. पवन = पौन
246. प्रिय = पिय
247. पुच्छ = पूंछ
248. पर्पट = पापड़
249. फणी = फण
250. पद्म = पदम
251. परख: = परसों
252. पाष = फंदा
253. प्रस्वेदा = पसीना

*फ , ब से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-*

254. बालुका = बालू
255. बिंदु = बूंद
256. फाल्गुन = फागुन
257. बधिर = बहरा
258. बलिवर्द = बैल
259. बली वर्द = बींट

*भ , म से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-*

260. मयूर = मोर
261. मुख = मुँह
262. मक्षिका = मक्खी
263. मस्तक = माथा
264. भिक्षुक = भिखारी
265. मृत्यु = मोत
266. भिक्षा = भीख
267. मातुल = मामा
268. भ्राता = भाई
269. मिष्ट = मीठा
270. मृत्तिका = मिट्टी
271. भुजा = बाँह
272. भगिनी = बहिन
273. मृग = मिरग
274. मनुष्य = मानुष
275. भक्त = भगत
276. भल्लुक = भालू
277. मार्ग = मग
278. मित्र = मीत
279. मुष्टि = मुट्ठी
280. मूल्य = मोल
281. मूषक = मूस
282. मेघ = मेह
283. भाद्रपद = भादौं
284. मौक्तिक = मोती
285. मर्कटी = मकड़ी
286. मश्रु = मूंछ
287. भद्र = भला
288. भ्रत्जा = भतीजा
289. भ्रमर = भौरां
290. भ्रू = भौं
291. मुषल = मूसल
292. महिषी = भैंस
293. मरीच = मिर्च

*य , र से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-*

294. रात्रि = रात
295. युवा = जवान
296. यश = जस
297. राशि = रास
298. रोदन = रोना
299. योगी = जोगी
300. राजा = राय
301. यमुना = जमुना
302. यज्ञोपवीत = जनेऊ
303. यव = जौ
304. राजपुत्र = राजपूत
305. यति = जति
306. यूथ = जत्था
307. युक्ति = जुगति
308. रक्षा = राखी
309. रज्जु = रस्सी
310. रिक्त = रीता
311. यषोदा = जसोदा

*ल , व से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-*

312. वानर = बन्दर
313. लौह = लोहा
314. वत्स = बच्चा
315. विवाह = ब्याह
316. वधू = बहू
317. वाष्प = भाप
318. विद्युत् = बिजली
319. वार्ता = बात
320. लक्ष = लाख
321. लक्ष्मण = लखन
322. व्याघ्र = बाघ
323. वणिक = बनिया
324. वाणी = बैन
325. वरयात्रा = बारात
326. वर्ष = बरस
327. वैर = बैर
328. लज्जा = लाज
329. लवंग = लौंग
330. लोक = लोग
331. वट = बड
332. वज्रांग = बजरंग
333. वल्स = बछड़ा
334. लोमशा = लोमड़ी
335. वक = बगुला
336. वंष = बांस
337. वृश्चिका = बिच्छु
338. लवणता = लुनाई
339. लेपन = लीपना
340. विकार = विगाड
341. व्यथा = विथा
342. वर्षा = बरसात

*स , श , ष , श्र से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-*

343. सूर्य = सूरज
344. स्वर्ण = सोना
345. स्तन = थन
346. सूची = सुई
347. सुभाग = सुहाग
348. शिक्षा = सीख
349. शुष्क = सूखा
350. सत्य = सच
351. सर्प = साँप
352. श्रंगार = सिंगर
353. शत = सौ
354. सप्त = सात
355. शर्कर = शक्कर
356. शिर = सिर
357. श्रृंग = सींग
358. श्रेष्ठी = सेठ
359. श्रावण = सावन
360. शाक = साग
361. शलाका = सलाई
362. श्यामल = साँवला
363. शून्य = सूना
364. शप्तशती = सतसई
365. स्फोटक = फोड़ा
366. स्कन्ध = कंधा
367. स्नेह = नेह
368. श्यालस = साला
369. शय्या = सेज
370. स्वसुर = ससुर
371. श्रंखला = साँकल
372. श्रृंगाल = सियार
373. शिला = सिल
374. सूत्र = सूत
375. शीर्ष = सीस
376. स्थल = थल
377. स्थिर = थिर
378. ससर्प = सरसों
379. सपत्नी = सौत
380. स्वर्णकार = सुनार
381. शूकर = सूअर
382. शाप = श्राप
383. श्याली = साली
384. श्मषान = समसान
385. शुक = सुआ

*ह , क्ष से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-*

386. हास्य = हँसी
387. क्षीर = खीर
388. क्षेत्र = खेत
389. हिरन = हरिण
390. हस्त = हाथ
391. हस्ती = हाथी
392. क्षत्रिय = खत्री
393. क्षार = खार
394. क्षत = छत
395. हरिद्रा = हल्दी
396. क्षति = छति
397. क्षीण = छीन
398. क्षत्रिय = खत्री
399. हट्ट = हाट
400. होलिका = होली
401. ह्रदय = हिय
402. हंडी = हांड़ी

*त्र से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द *

403. त्रिणी = तीन
404. त्रयोदष = तेरह

Wednesday, March 27, 2019

आ० हीरालाल यादव जी

*ग़ज़ल*
122 122 122 122
भला  जानते  हैं,  बुरा  जानते  हैं।
ज़माने   तेरी   हर  अदा जानते हैं।

यकीं कैसे कर लें ज़माने पे हम यूँ
ज़माना   करेगा   दगा   जानते है।

गले  मिल  रहा है बड़े प्यार से पर
तू काटेगा इक दिन गला जानते हैं।

लगा  ले  भले लाख चेहरे पे चेहरा
तुझे  खूब  हम  बेवफ़ा  जानते  हैं।

सुखों  की तमन्ना  करें भी तो कैसे
है  जीवन  दुखों  से भरा जानते हैं।

करें चाँद  तारों  की क्योंकर तमन्ना
मुकद्दर का जब हम लिखा जानते हैं।

किसे दोष दें हम तबाही की अपनी
हमारी  ही  है  सब  ख़ता जानते हैं।

उन्हीं  की  है बजती ज़माने में तूती
जो दिल जीतने की कला जानते हैं।

इबादत  ख़ुदा  की भला कैसे छोड़ें
दुखों  की  यही इक दवा जानते हैं।

नहीं  छोड़ते  आस जीने की *हीरा*
उबारेगा  दुख  से  ख़ुदा जानते  हैं।

                   हीरालाल

तांका

प्रस्तुत तांका...... ॐ जय माँ शारदा......!
तांका विधा की जानकारी --- तांका का शाब्दिक अर्थ हैं - *लघु गीत* या *छोटी कविता* जो मात्र 31 वर्ण में सम्पूर्ण हो जाती है। यह जापानी विधा 05, 07, 05, 07, 07 के वर्णानुशासन  से बँधी हुई पंचपदी कविता हैं जिसका भाव पहली से पांचवी पंक्ति तक बना रहता हैं। अंतिम दो पंक्ति में तुकांत मिल जाये तो सोने पे सुहागा। लयविहीन काव्यगुण से शून्य रचना, छंद का शरीर धारण करने मात्र से तांका नहीं बन सकती।

"तांका"

गाँव के गाँव
वीरान खलिहान
सूखते वृक्ष
संध्या संग प्रदीप
टिमटिमाते दीप।।

अधूरे ख्वाब
लुढ़कती जिंदगी
जीने की आशा
संध्या सरोज सगी
उम्र ढलने लगी।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

अहीर छंद नीतेन्द्र सिंह परमार भारत

*◆अहीर छंद◆*

विधान~प्रति चरण 11 मात्राएँ,
            चरणान्त जगण(121),
             [दो दो चरण तुकांत।]

जीवन सरल सुजान।
कहते वेद - पुरान।।
        सीमा अड़ा जवान।
         खेतों खड़ा किसान।।

खोना नही विवेक।
संकट भले अनेक।।
    दाता हृदय विशाल।
    मन को करे निहाल।।

नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
छतरपुर  ( मध्यप्रदेश )
सम्पर्क सूत्र:- 8109643725

Monday, March 25, 2019

रंगोत्सव संस्मरण

आज का विषय -

🌹रंगोत्सव काव्य सम्मेलन ( दिनांक १९ मार्च २०१९) के संस्मरण 🌹

होली के पावन अवसर पर होने वाले अखिल भारतीय विराट कवि सम्मेलन में भाग लेना व उसका आनंद लेना एक सुमधुर व अद्भुत अहसास था! विश्व जन चेतना ट्रस्ट, भारत ने हमें यह अमूल्य अवसर दिया जिसके हम ऋणी रहेंगे।
     मेरे लिए तो यह सम्मेलन और भी गौरान्वित करने वाला था क्योंकि संस्था के पदाधिकारियों द्वारा मुझे  इस कार्यक्रम के अध्यक्ष पद पर आसीन  कर दिया था  उसके लिए भी मैं संस्था की आभारी हूँ।
   कार्यक्रम नियत समय अर्थात १९  मार्च २०१९  को छः बजे  माँ शारदे की प्रतिमा स्थापित करने से आरंभ हुआ। माँ शारदे को नमन करते हुए उन्हें माल्यार्पण के तत्काल  बाद उन्नाव (उत्तर प्रदेश) से आदरणीया मधु गौड़  के मधुर स्वरों  से  सरस्वती वंदना सम्पन्न हुई तत्पश्चात रानीखेत उत्तराखंड से आदरणीय भुवन बिष्ट जी के द्वारा बहुत अनुपम स्वागत गीत प्रस्तुत किया गया।  कवि सम्मेलन को वास्तविक रूप से आरंभ करने के लिए मेरे द्वारा अध्यक्षीय भाषण में ही अनुमति प्रदान की गयी। उसके उपरांत काव्य धाराएं निर्विरोध, अविरल व विभिन्न रसों को लेकर बहने लगीं। किसी ने होली के त्योहार पर गीत गाये तो किसी ने देश भक्ति पर कविता पढ़ी।
    देश के विभिन्न स्थानों से ३८ कविगणों ने काव्य पाठ कर चित्रशाला पटल को रसों से व आनंद से सराबोर कर दिया था!
     यदि मैं कहूँ कि उस दिन का संचालन एक दिव्य, मनोहर व अद्वितीय था तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। प्रिय अनुज नीतेन्द्र परमार जी व  प्रिय बेटे नमन जैन जी  ने बहुत ही अनूठा संचालन किया! बाद में   कार्यक्रम के अंत में दोनों को अनुज हरीश बिष्ट जी द्वारा  ५०१ - ५०१ रुपये प्रदान कर पुरस्कृत भी किया गया था।
    कार्यक्रम के संरक्षक आदरणीय शैलेंद्र खरे 'सोम' जी, मुख्य अतिथि आदरणीय शीतल प्रसाद वोपचे जी, कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि आदरणीया ममता राठौर 'मीत' एवं आदरणीय हरीश बिष्ट जी का कार्यक्रम के आरंभ में ही स्वागत किया गया।
    कार्यक्रम के समीक्षक आदरणीय राहुल शुक्ल ' साहिल' जी व आदरणीय कौशल कुमार पांडेय 'आस'  जी थे। संस्था के संस्थापक आदरणीय दीपक कुमार पाठक 'सरस' जी पूरे कार्यक्रम की तैयारी में व सम्पन्न होने तक सबके साथ रहे। कार्यक्रम सुचारू रूप से चला इसमें इनका बहुत बड़ा योगदान है।
       यह कार्यक्रम सदैव हमारे स्मृति पटल में सुरक्षित रहेगा। वास्तव में जैसे गूंगा गुड़ के  स्वाद का वर्णन पूरी तरह से नहीं कर पाता वह केवल अहसास कर पाता है वैसे ही हमारे इस आनंद की अनुभूति को  मेरे द्वारा अक्षरसः व्यक्त कर पाना  कठिन है!

     सुशीला धस्माना 'मुस्कान'।

Sunday, March 24, 2019

"व या ब"

🙏समम् नमस्ते 🙏
                 'व'  या  'ब'
अगर आपको  'व'  और  'ब'  के प्रयोग में संशय की स्थिति रहती हो तो यह संकलन आपकी समस्या को कम कर सकता है---
ध्यान दें कि
👉 'वि' उपसर्ग से प्रारम्भ होने बाले शब्द सर्वाधिक होते हैं।
जैसे- विख्यात, विगत, विकृत, विकार, विग्रह, विघ्न, विचलित, विचार, विच्छेद, विचित्र, विजय, विकल्प, विकराल, विकलाङ्ग, विक्रम, विच्छेद, विजेता, विज्ञान, विडम्बना, वितरक, विदाई, विदित, विदुर, विदुषी, विदूषक, विदेश, विद्यालय, विद्यमान, विद्रोही, विद्या, विद्वान् , विधायक, विधवा, विधाता, विधि, विनती, विनय, विनोद, विनय, विपक्ष, विपत्ति, विभाग, विभिन्न, विभाजन, विफल,  विभु, विभूषित, विमान, विमर्श, विमल, वियोग, विरल, विराग, विरुद्ध, विरूप, विरोध, विलम्ब, विवाद, विवाह, विविध, विवेक, विशारद, विश्वास, विशाल, विश्राम, विश्लेषण, विश्व, विष, विषाद, विषाणु, विसर्जन, विसर्ग, विस्तार, विस्तृत, विस्मय, विस्फोट, विराजमान आदि

👉" बि "  से प्रारम्भ होने बाले शब्द कम होते हैं। (यहाँ 'बि' उपसर्ग रूप में नहीं है।)
जैसे - बिकाऊ, बिक्री, बिगाड़ना, बिच्छू, बिछौना, बिजली, बिम्ब(छाया),  बिन्दु, बिनावट, बिनाई, बिदाई, बिताना, बिल्ली, बिल्व (बेल का वृक्ष), बिस्तर, बिल, बिलखना आदि।

🤔सूचना - आधे 'ब्' से प्रारम्भ होने बाले शब्द बहुत ही कम हैं। जैसे- ब्याज, ब्याह, ब्यालि(नागिन), ब्यालू (रात्रि का भोजन), ब्योरा(विवरण) तथा ब्यूरो, ब्यूटी, ब्लॉग आदि अँग्रेजी शब्द।

👉 ' व '  से प्रारम्भ होने बाले कुछ प्रचलित शब्द-
वंश, वक्र, वटु, वध, वधू, वन, वर, वरिष्ठ, वर्ग, वर्ण, वर्ष, वश, वस्तु, वस्त्र, वली(पंक्ति), वहाँ, वाक्य, वाचनालय, वाटिका, वाणिज्य, वाणी, वायु, वार्ता, वासना, वारिधि, वार्षिक, वीणा, वीर, वृक्ष, वृद्ध, वृष्टि, वेग, वेद, वेणी, वेश, वैज्ञानिक, वैयाकरण, वैर, वैरागी, वैश्य, व्रजभाषा, वसुधा, व्रण(घाव), व्रत, व्रीडा(लज्जा), व्रीहि (चावल का दाना) आदि।
🤔सूचना -आधे 'व्' से प्रारम्भ होने बाले शब्द बहुत हैं। जैसे - व्यक्ति, व्यवस्था, व्यायाम, व्याकरण आदि

👉 'ब'  से प्रारम्भ होने बाले कुछ प्रचलित शब्द -
बधाई, बँटवारा, बचपन, बदला, बधू,
बन्दर, बन्धु, बरगद, बर्तन, बल, बलवान्, बलात्कार, बली (बलवान्), बहिन, बहिर्मुख, बहिष्कार, 'बहु' से बने सभी शब्द जैसे बहुवचन, बहुव्रीहि आदि, बस्ती, बहू (दुलहन), बाहु(भुजा), बाँध, बाटी(उपलों पर सेंकी हुई गोली), बाढ़, बाण, बादाम, बावली, बासन(पात्र), बुद्ध(जागा हुआ), बुध(विद्वान्), बुधवार, बेल(लता,श्रीफल,जरदोरी का काम), ब्राह्मण, ब्रह्मा आदि

😇 ध्यान रखें कि हिन्दी में निम्नलिखित दोनों शब्द सही हैं -
विकल(सं), बिकल(हि.) व्याकुल के अर्थ में
विना(सं), बिना(हि.) अभाव अर्थ में
विनती(सं), बिनती(हि.) प्रार्थना अर्थ में
विराजना(सं.), बिराजना(हि.) शोभित होने के अर्थ में
विभावरी(सं.), बिभावरी(हि.) रात्रि के अर्थ में
वटुक(सं), बटुक(हि.) बालक के अर्थ में
वड़वाग्नि(सं), बड़वानल(हि.) समुद्र की अग्नि
वपु(सं), बपु(हि.) शरीर के अर्थ में
वनवास(सं.), बनवासी(हि.)
वर (सिद्धि, श्रेष्ठ), बर (दूल्हा, श्रेष्ठ)
वलि(रेखा, देवता को अर्पित वस्तु), बलि(भेंट, देवता को उद्देश्य कर मारा गया पशु)
वासी(बसने बाला), बासी(देर का)
वसन्त(चैत्र और वैशाख का महीना), बसन्ती(वसन्त ऋतु सम्बन्धी)
वन(सं.), बन(हि.) जंगल के अर्थ में
वाटिका, बाटिका (उपवन के अर्थ में)
वात(सं) वायु, बात(हि.)वचन
वानर(सं), बानर(हि.) बन्दर के अर्थ में
बरात, बारात (वरयात्रा के अर्थ में)
वेला(काल), बेला(सफेद फूल बाला पौधा)
संकेत - सं.= संस्कृत
           हि.= हिन्दी
धन्यवाद....👏

संकलनकर्ता -
डा. सवितुर प्रकाश गंगवार
असि. प्रोफेसर (संस्कृत-विभाग)
डी.ए-वी.कालेज,कानपुर
मो.9412847331
     9149172091

'कात्यायनी' काव्य संग्रह का हुआ विमोचन। - छतरपुर, मध्यप्रदेश

'कात्यायनी' काव्य संग्रह का हुआ विमोचन।  छतरपुर, मध्यप्रदेश, दिनांक 14-4-2024 को दिन रविवार  कान्हा रेस्टोरेंट में श्रीम...