Saturday, December 24, 2022

गाँव और शहर

ये जो तस्वीर है वो दो भाइयों के बीच "बंटवारे" के बाद की बनी हुई तस्वीर है। 
बाप-दादा के घर की दहलीज को जिस तरह बांटा गया है यह हर गांव घर की असलियत को भी दर्शाता है। 

दरअसल हम "गांव और शहर" के लोग जितने खुशहाल दिखते हैं उतने हैं नहीं।
 जमीनों के केस, पानी के केस, खेत-मेढ के केस, रास्ते के केस, मुआवजे के केस,बंजर तालाब के झगड़े, ब्याह शादी के झगड़े , दीवार के केस,आपसी मनमुटाव, चुनावी रंजिशों ने समाज को खोखला कर दिया है। 

अब "गांव और शहर" वो नहीं रहे कि "बस" या अन्य 'वाहनो' में गांव की लडकी को देखते ही सीट खाली कर देते थे बच्चे।
 दो चार "थप्पड" गलती पर किसी बड़े बुजुर्ग या ताऊ ने ठोंक दिए तो मामला नहीं बनता था तब। लेकिन अब..आप सब जानते ही है
अब हम पूरी तरह बंटे हुए लोग हैं। "गांव और शहर" में अब एक दूसरे के उपलब्धियों का सम्मान करने वाले, प्यार से सिर पर हाथ रखने वाले लोग संभवतः अब मिलने मुश्किल हैं। वह लगभग गायब से हो गये हैं  ...

हालात इस कदर "खराब" है कि अगर पडोसी फलां व्यक्ति को वोट देगा तो हम नहीं देंगे। इतनी नफरत कहां से आई है लोगों में ये सोचने और चिंतन का विषय है

संयुक्त परिवार अब "गांवों और शहरों" में शायद एक आध ही हैं, "लस्सी-दूध" की जगह यहां भी अब ड्यू, कोकाकोला, पेप्सी पिलाई जाने लगी है। बंटवारा केवल भारत का नहीं हुआ था, आजादी के बाद हमारा समाज भी बंटा है और शायद अब हम भरपाई की सीमाओं से भी अब बहुत दूर आ गए हैं। अब तो वक्त ही तय करेगा कि हम और कितना बंटेंगे।..
यूँ लगने लगा है जैसे हर आदमी के मन मे ईर्ष्या भरा हुआ है 
कन फुसफुसाहट ..जहां लोग झप्पर छान उठाने को हंसी हंसी में सैकड़ो जुट जाया करते थे वहां अब इकठ्ठे होने का नाम तक नही लेते..
अभी भी समय है एक हो जाइए सभी 
🙏🙏

Tuesday, October 4, 2022

शानदार रहा विराट कवि सम्मेलन जाखी सतना (म.प्र.) नीतेंद्र परमार भारत

बहुत शानदार रहा 3 अक्टूबर 2022 को  जाखी,सतना

बहुत शानदार रहा 3 अक्टूबर 2022 को  जाखी,सतना का विराट कवि सम्मेलन सतना  साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच व  नवदुर्गा उत्सव समिति के द्वारा आयोजित हुआ। संयोजक डॉ० यू.बी.एस. परिहार जी व प्रमुख व्यवस्थापक में आ० रमेश सिंह परिहार,आ० धरम सिंह जी ने शानदार आयोजन कराया।मुख्य अतिथि आ० उमेश सिंह जी जनपद अध्यक्ष नागौद।  साथी बघेलखण्ड के नामी वरिष्ठ साहित्यकार बंधु उपस्थित हुए। सभी कवियों का फूल माला व शॉल श्रीफल से सम्मान किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता की आ० नरेंद्र सिंह जी ने। कार्यक्रम में माँ शारदे जी की वंदना आ० निर्मला सिंह जी के द्वारा की गई तथा कार्यक्रम का बेहतरीन संचालन बड़े भाई सतना जिले ही नहीं अपितु समस्त अखिल भारतीय काव्य मंचों अधिकतर दिखाई देने वाले रविशंकर चतुर्वेदी जी ने किया। कार्यक्रम में उपस्थित रहे पंडित छोटे लाल पाण्डेय जी,आ० बालेन्दु प्रभाकर, आ० अजीत सिंह कुंवर जी , आ० अनिल सिंह अल्प जी,आ० ब्रजेश सरल जी,आअरुण पयासी जी,आ० रामपाल सिंह जी व अन्य समस्त साहित्यकार भाई बंधु। सभी कवियों ने एक बढ़ कर एक गीत,ग़ज़ल, छंद आदि कविताओं से समां बांधा। देर रात्रि 2 बजे तक कार्यक्रम चलता रहा। आ० भूपेंद्र सिंह वर्तमान सरपंच व पूर्व सरपंच जय नारायण सिंह जी विशेष उपस्थित रही। सफल कार्यक्रम रहा और  मुझें इतना स्नेह मिला कि में कभी भी भूल नहीं सकता हूँ। लोगो के विशेष आग्रह पर मुझें पुनः काव्य पाठ हेतु मंच से आदेश हुआ पढ़ने काम पुनः आप सभी का हृदय से आभार।

सादर आभार
नीतेंद्र सिंह परमार 'भारत'
छातपुर, मध्यप्रदेश

सम्पर्क सूत्र:- 8109643725

Wednesday, September 28, 2022

मेरी दृष्टि - नीतेंद्र भारत

मेरी दृष्टि

आप सभी ने एक बात हमेशा सोशल मीडिया पर देखी होंगी। कि शुद्ध हिंदी लिखी हुई बहुत कम मिलती है। चाहे हम इंस्टाग्राम, फेसबुक आदि की पोस्ट की बात करें। विशेषकर चाहे वह वीडियो हो या फ़ोटो पोस्ट पर लिखा हो। और इसके साथ साथ कुछ यूट्यूब चैनल पर भी ऐसा देखना को मिलता है।

निवेदन- कृपया लिखने और बोलने में शुद्ध हिंदी शब्दों का उपयोग करें।

#हिंदीसमाचार 
#हिंदीसाहित्य 
#हिंदी 
#शब्दावली 

#नीतेंद्र_ #भारत

Thursday, September 15, 2022

श्रीनाथद्वारा में यशपाल शर्मा यशस्वी का दोहा संग्रह अन्तस् के अनुनाद हुआ लोकार्पित

श्रीनाथद्वारा में यशपाल शर्मा यशस्वी का दोहा संग्रह अन्तस् के अनुनाद हुआ लोकार्पित

साहित्य मण्डल, नाथद्वारा द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय 'हिंदी लाओ, देश बचाओ समारोह' के द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र में 
डॉ रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर' की अध्यक्षता डॉ विजय कुमार 'वेदालंकार', के मुख्य आतिथ्य एवं प्रो डॉ हेमराज मीणा, डॉ राहुल, डॉ संतोष यादव,  श्री गोपाल गुप्ता, डॉ जितेंद्र सिंह जी व पंडित मदन मोहन शर्मा 'अविचल' जी के विशिष्ट आतिथ्य व श्री श्याम प्रकाश देवपुरा, श्री वीरेंद्र लोढ़ा, श्री भँवर प्रेम, श्री सत्यनारायण व्यास 'मधुप', श्रीमती रेखा लोढ़ा 'स्मित' की मंच पर उपस्थिति में यशपाल शर्मा 'यशस्वी' का सद्य प्रकाशित दोहा संग्रह अन्तस् के अनुनाद का लोकार्पण किया गया। रेखा लोढ़ा 'स्मित' ने लोकार्पित कृति पर समीक्षात्मक चर्चा की । श्री यशपाल शर्मा ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए अपने सृजन कर्म व पुस्तक पर अपने विचार व्यक्त किए।   कार्यक्रम का संचालन श्री वीरेंद्र लोढ़ा ने किया।



Sunday, September 11, 2022

फतेहपुर बावन_इमली का एक ऐसा इतिहास, जिसे सुन कर रूह कांप जायगी -

अपने पूर्वजों का इतिहास जानो !

फतेहपुर #बावन_इमली का एक ऐसा इतिहास, 
जिसे सुन कर रूह कांप जायगी...
भारत की वो एकलौती ऐसी घटना जब , अंग्रेज़ों ने एक साथ 52 क्रांतिकारियों को इमली के पेड़ पर लटका दिया था, पर इतिहास की इतनी बड़ी घटना को आज तक गुमनामी के अंधेरों में ढके रखा।

उत्तरप्रदेश के फतेहपुर जिले में स्थित बावनी इमली एक प्रसिद्ध इमली का पेड़ है, जो भारत में एक शहीद स्मारक भी है। इसी इमली के पेड़ पर 28 अप्रैल 1858 को गौतम क्षत्रिय जोधासिंह अटैया और उनके इक्यावन साथी फांसी पर झूले थे। यह स्मारक उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के बिन्दकी उपखण्ड में खजुआ कस्बे के निकट बिन्दकी तहसील मुख्यालय से तीन किलोमीटर पश्चिम में मुगल रोड पर स्थित है।

यह स्मारक स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किये गये बलिदानों का प्रतीक है। 28 अप्रैल 1858 को ब्रिटिश सेना द्वारा बावन स्वतंत्रता सेनानियों को एक इमली के पेड़ पर फाँसी दी गयी थी। ये इमली का पेड़ अभी भी मौजूद है। लोगों का विश्वास है कि उस नरसंहार के बाद उस पेड़ का विकास बन्द हो गया है।
10 मई, 1857 को जब बैरकपुर छावनी में आजादी का शंखनाद किया गया, तो 10 जून,1857 को फतेहपुर में क्रान्तिवीरों ने भी इस दिशा में कदम बढ़ा दिया जिनका नेतृत्व कर रहे थे जोधासिंह अटैया। फतेहपुर के डिप्टी कलेक्टर हिकमत उल्ला खाँ भी इनके सहयोगी थे। इन वीरों ने सबसे पहले फतेहपुर कचहरी एवं कोषागार को अपने कब्जे में ले लिया। जोधासिंह अटैया के मन में स्वतन्त्रता की आग बहुत समय से लगी थी। उनका सम्बन्ध तात्या टोपे से बना हुआ था। मातृभूमि को मुक्त कराने के लिए इन दोनों ने मिलकर अंग्रेजों से पांडु नदी के तट पर टक्कर ली। आमने-सामने के संग्राम के बाद अंग्रेजी सेना मैदान छोड़कर भाग गयी ! इन वीरों ने कानपुर में अपना झंडा गाड़ दिया।

जोधासिंह के मन की ज्वाला इतने पर भी शान्त नहीं हुई। उन्होंने 27 अक्तूबर, 1857 को महमूदपुर गाँव में एक अंग्रेज दरोगा और सिपाही को उस समय जलाकर मार दिया, जब वे एक घर में ठहरे हुए थे। सात दिसम्बर, 1857 को इन्होंने गंगापार रानीपुर पुलिस चैकी पर हमला कर अंग्रेजों के एक पिट्ठू का वध कर दिया। जोधासिंह ने अवध एवं बुन्देलखंड के क्रान्तिकारियों को संगठित कर फतेहपुर पर भी कब्जा कर लिया।

 
आवागमन की सुविधा को देखते हुए क्रान्तिकारियों ने खजुहा को अपना केन्द्र बनाया। किसी देशद्रोही मुखबिर की सूचना पर प्रयाग से कानपुर जा रहे कर्नल पावेल ने इस स्थान पर एकत्रित क्रान्ति सेना पर हमला कर दिया। कर्नल पावेल उनके इस गढ़ को तोड़ना चाहता था, परन्तु जोधासिंह की योजना अचूक थी। उन्होंने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का सहारा लिया, जिससे कर्नल पावेल मारा गया। अब अंग्रेजों ने कर्नल नील के नेतृत्व में सेना की नयी खेप भेज दी। इससे क्रान्तिकारियों को भारी हानि उठानी पड़ी। लेकिन इसके बाद भी जोधासिंह का मनोबल कम नहीं हुआ। उन्होंने नये सिरे से सेना के संगठन, शस्त्र संग्रह और धन एकत्रीकरण की योजना बनायी। इसके लिए उन्होंने छद्म वेष में प्रवास प्रारम्भ कर दिया, पर देश का यह दुर्भाग्य रहा कि वीरों के साथ-साथ यहाँ देशद्रोही भी पनपते रहे हैं। जब जोधासिंह अटैया अरगल नरेश से संघर्ष हेतु विचार-विमर्श कर खजुहा लौट रहे थे, तो किसी मुखबिर की सूचना पर ग्राम घोरहा के पास अंग्रेजों की घुड़सवार सेना ने उन्हें घेर लिया। थोड़ी देर के संघर्ष के बाद ही जोधासिंह अपने 51 क्रान्तिकारी साथियों के साथ बन्दी बना लिये गये।

28 अप्रैल, 1858 को मुगल रोड पर स्थित इमली के पेड़ पर उन्हें अपने 51 साथियों के साथ फाँसी दे दी गयी। लेकिन अंग्रेजो की बर्बरता यहीं नहीं रुकी। 
अंग्रेजों ने सभी जगह मुनादी करा दिया कि जो कोई भी शव को पेड़ से उतारेगा उसे भी उस पेड़ से लटका दिया जाएगा । जिसके बाद कितने दिनों तक शव पेड़ों से लटकते रहे और चील गिद्ध खाते रहे । 
अंततः महाराजा भवानी सिंह अपने साथियों के साथ 4 जून को जाकर शवों को पेड़ से नीचे उतारा और अंतिम संस्कार किया गया । 
बिन्दकी और खजुहा के बीच स्थित वह इमली का पेड़ (बावनी इमली) आज शहीद स्मारक के रूप में स्मरण किया जाता है !

Saturday, September 10, 2022

"पितॄणामर्यमा चास्मि" - अजय मोहन तिवारी



शास्त्रों में चन्द्रमा के ऊपर एक अन्य लोक को पितृ लोक कहा गया है और पितृगणों को देवताओं के समान पूजनीय बताया गया है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं को पितृओं में अर्यमा नामक पितृ बताया है; "पितॄणामर्यमा चास्मि"
हिन्दू मान्यताओं में पितृ पक्ष को विशेष स्थान दिया गया है। भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा से आश्विन मास के कृष्णपक्ष की अमावस्या(पितृमोक्ष अमावस्या) तक की कालावधि पितृपक्ष कहलाती है। पितृपक्ष में पूर्वजों का श्रद्धापूर्वक स्मरण करके उनका श्राद्ध कर्म किया जाता है। श्राद्ध कर्म पितृओं की शांति, मुक्ति के साथ-साथ उनके प्रति अपना सम्मान एवं कृतज्ञता प्रकट करने के लिए किये जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष में पितृओं का श्राद्ध करने से न केवल उनकी कृपा प्राप्त होती है, बल्कि हर प्रकार की बाधाओं से मुक्ति भी मिलती है। श्राद्धकर्म में मातृकुल और पितृकुल दोनों शामिल होते हैं।
अब आते हैं उस बात पर जो साझा करने के उद्देश्य से मैंने ये सब लिखा या लिख रहा हूँ.. दरअसल कल अर्थात दिनाँक 10.09.22 को भाद्रपद मास की पूर्णिमा से पितृ पक्ष की शुरुआत थी तो एक सामान्य सनातनी परिवार की तरह मेरे घर में भी पितृओं के प्रति सम्मान प्रकट करने हेतु श्राद्ध कर्म किया गया और मेरी माँ ने प्रचलित मान्यता के अनुसार मुझसे पितृओं के लिए भोजन(खीर-पूड़ी) का कुछ भाग ऊपर छत में रख आने के लिए कहा। यहाँ तक तो यह एक सामान्य बात है, लेकिन जैसे ही मैं वह भोज्य सामग्री लेकर छत पर पहुँचा तो मैं अचंभित रह गया। कौआ जो सनातन धार्मिक मान्यता के अनुसार पितृओं का प्रतीक माना गया है और लगभग लुप्तप्राय हो चुके हैं, मेरे छत पर पहुँचने के पहले ही वहाँ पर कुछ कौए बैठे हुए थे मानों मेरी प्रतीक्षा कर रहे हों, इतना ही नहीं कुछ ही क्षणों में न जाने कहाँ से वहाँ पर और भी बहुत से कौए आ गए और जैसे कि उन्हें पहले से ही सब कुछ भलीभाँति ज्ञात हो, वे उड़ते हुए आते और भोज्य सामग्री जो मैंने छत की पट्टी पर अलग अलग स्थान पर रखी थी, उसे खाते अथवा अपनी चोंच में दबाकर उड़ जाते। यह क्रम लगभग 10 से 15 मिनट तक चलता रहा। मैं यह दृश्य देखकर रोमांचित हो उठा और मैंने अपने मोबाइल कैमरा से कुछ फोटोग्राफ्स खींच लिए। अंततः मैं यही कहना चाहूँगा कि पितृ पक्ष अथवा श्राद्ध कर्म मात्र कपोल कल्पना अथवा कोरी धार्मिक मान्यता नहीं बल्कि कुछ ऐसा है जिसकी व्याख्या का सामर्थ्य फिलहाल वर्तमान भौतिक विज्ञान पास नहीं है। ॐ पितृ दैवतायै नम: 🙏🙏
 

                                            - अजय मोहन तिवारी

हार्दिक आभार माननीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी का - - नीतेंद्र सिंह भारत - प्रदेश अध्यक्ष मध्यप्रदेश इकाई


माननीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी मैं हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। जिन्होंने इस भारत गौरव गाथा काव्य संकलन के लिए शुभकामना संदेश लिखा। मैं विश्व जनचेतना भारत की ओर पुनः आभार व्यक्त करता हूँ।

प्रदेश अध्यक्ष
नीतेंद्र सिंह परमार'भारत'
विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत 
मध्यप्रदेश इकाई

Sunday, September 4, 2022

शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर कला - ईश फाउण्डेशन के द्वारा सम्मानित।

शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर कला - ईश फाउण्डेशन जिसकी संस्थापक आदरणीया दिव्या गंगवार जी जो सांसद स्व०डॉ परशुराम गंगवार जी की सुपुत्री हैं । बहेड़ी बरेली के विधायक श्री जिया उर्रहमान जी और जगजीत सिंह जग्गा जी के कर कमलों से आदरणीय दिलीप कुमार पाठक सरस जी , आदरणीय राजेश कुमार मिश्र प्रयास जी तथा विमलेश कुमार हमदम को शिक्षक सम्मान से सम्मानित किया गया है ।
सभी का धन्यवाद है।


Saturday, September 3, 2022

शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित कवि सम्मेलन - नीतेंद्र भारत

शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित कवि सम्मेलन आप सभी का स्वागत है। कार्यक्रम में बड़े भाई साहब अभिराम जी व वीरेंद्र खरे अकेला जी की विशेष उपस्थिति व साथ ही विरल जी, जीतेंद्र जीत जी,अभिषेक जी और आ० नम्रता शुक्ला जी के संयोजक एवं सूरज कुमार के संचालन में। 


नीतेंद्र सिंह परमार 'भारत'
छतरपुर मध्यप्रदेश

Wednesday, August 31, 2022

ग़ज़ल - वो कहीं मुझकों यूं आती जाती मिले - जुबैर ,अल्तमश, छतरपुर मध्यप्रदेश


एक ग़ज़ल कहने की कोशिश की है,

वो कही मुझको यूं आती जाती मिले 
मेरी नजरो से नज़रे चुराती मिले 

ये तो मुमकिन नहीं, पर तमन्ना है ये
अपनी नजरो से मुझको बुलाती मिले

लिख दिया मैने जो हालेदिल वर्क पर
वो उसे यूं ही बस गुनगुनाती मिले

वो कही मंदिरों में मेरे नाम का
दीप ऐसे यूं ही फिर जलती मिले

मुख्तलिफ रास्ते हो गए है मगर
मेरे सुर से वो सुर को मिलती मिले
          
खैरियत पूंछ ले,उससे मेरी कोई
वो मेरे नाम पे फिर लजाती मिले

,अल्तमश, तेरे दिल से ये आती  सदा 
वो किसी मोड़ पर मुस्कुराती मिले

जुबैर ,अल्तमश,
छतरपुर मध्यप्रदेश

रत्ती - एक अनमोल पौधा


रत्ती
"""""
यह शब्द लगभग हर जगह सुनने को मिलता है। जैसे - 'रत्ती भर भी परवाह नहीं, रत्ती भर भी शर्म नहीं', रत्ती भर भी अक्ल नहीं... आपने भी इस शब्द को बोला होगा, बहुत लोगों से सुना भी होगा। आज जानते हैं 'रत्ती' की वास्तविकता, यह आम बोलचाल में आया कैसे.

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि रत्ती एक प्रकार का पौधा होता है, जो प्रायः पहाड़ों पर पाया जाता है। इसके मटर जैसी फली में लाल-काले रंग के दाने (बीज) होते हैं, जिन्हें रत्ती कहा जाता है।
प्राचीन काल में जब मापने का कोई सही पैमाना नहीं था तब सोना, जेवरात का वजन मापने के लिए इसी रत्ती के दाने का इस्तेमाल किया जाता था.

सबसे हैरानी की बात तो यह है कि इस फली की आयु कितनी भी क्यों न हो, लेकिन इसके अंदर स्थापित बीजों का वजन एक समान ही 121.5 मिलीग्राम (एक ग्राम का लगभग 8वां भाग) होता है।

तात्पर्य यह कि वजन में जरा सा एवं एक समान होने के विशिष्ट गुण की वजह से... कुछ मापने के लिए जैसे रत्ती प्रयोग में लाते हैं। उसी तरह किसी के जरा सा गुण, स्वभाव, कर्म मापने का एक स्थापित पैमाना बन गया यह "रत्ती" शब्द।

साभार

Sunday, August 21, 2022

"नैनी प्रयागराज के आधारशिला वृद्धाश्रम में मनाया गया अंदाज पोएट्री वर्ल्ड का चतुर्थ स्थापना दिवस [अंदाज महोत्सव 2022]" - डॉ० साहिल

"नैनी प्रयागराज के आधारशिला वृद्धाश्रम में मनाया गया अंदाज पोएट्री वर्ल्ड का चतुर्थ स्थापना दिवस [अंदाज महोत्सव 2022]"

आज (21/08/2022) रविवार को दोपहर  1:30 से 06:00 बजे तक आधारशिला वृद्धाश्रम (ई 5/12 चक दौंदी, अरैल मोड़, नैनी, प्रयागराज) में, *"अंदाज़ पोएट्री & क्रिएटिव संगम इवेंट्स {अंदाज़ पोएट्री वर्ल्ड}* का चतुर्थ स्थापना दिवस बहुत ही रंगारंग और बेहतरीन सांस्कृतिक कार्यक्रम के बीच मनाया गया | विशिष्ट अतिथि- प्रसिद्ध गायक मिश्र बंधु, पूर्व एसडीएम जे•पी• मिश्र जी, मुख्य अतिथि प्रभाकर तिवारी जी, आरव फाउन्डेशन के संस्थापक विवेक गुप्ता जी इत्यादि अतिथिगण, नवोदित एवं वरिष्ठ साहित्यकार, गायक,अन्य कलाकार एवं आश्रम की माताएं एवं बुजुर्ग वृद्धजन 150 से अधिक संख्या में उपस्थित रहे| 

      कार्यक्रम में काव्यपाठ करने का अवसर प्राप्त हुआ, अंदाज पोएट्री वर्ल्ड के संस्थापक प्रिय भाई बिजेन्द्र पाठक एवं शुभम दुबे के द्वारा स्मृति चिन्ह एवं प्रयाग अंदाज गौरव 2022 सम्मान पत्र प्राप्त हुआ | द्वय अनुजों एवं पूरे अंदाज पोएट्री परिवार का कोटि कोटि धन्यवाद व आभार|  इस प्रकार के कार्यक्रम इंसान को ऊर्जावान और ओजस्वी बनाते हैं| नवोदित कलमकारों, कलाकारों एवं बच्चों को मंच और बैनर प्रदान करने का कार्य काबिले-तारीफ है; कमुदितों को पल्लवित और पुष्पित करने का कार्य अंदाज पोएट्री वर्ल्ड बखूबी निभा रही है | संस्था यूँ ही निरन्तर प्रगति करती रहे| आधारशिला वृद्धाश्रम के मैनेजर सुशील श्रीवास्तव जी एवं आश्रम के अन्य कर्मचारियों के सहयोग के लिए कोटि कोटि आभार|

धन्यवाद!

   ©️ डॉ• राहुल शुक्ल साहिल
            प्रयागराज उ• प्र•

Monday, August 15, 2022

केशव कल्चर की अनुपम कृति प्रसादम का प्रकाशन - मृदुल

जय मां शारदा जय श्री कृष्णा

केशव कल्चर की अनुपम  कृति प्रसादम का  प्रकाशन

आप सभी को सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि दिल्ली में आ० दीप्ति शुक्ला जी के द्वारा चलाई जा रही एक संस्था जोकि केशव कल्चर के नाम से संचालित है। अपने अथक परिश्रम एवं कर्त्तव्यनिष्ठा से यह संस्था अनंत ऊंचाइयो को प्राप्त कर रही है ।

इसमें 56 कवियों की रचना है इसका मुख्य कारण यह है कि भगवान श्री कृष्ण को छप्पन भोग लगाए जाते हैं। इसीलिए संस्था द्वारा किताब में 56 साहित्यकारों के सृजन को संग्रहित करने का संकल्प लिया गया था ।  इस पावन पुस्तक में बेहद सुन्दर चित्रांकन मुकेश अनुरागी (भारत ) और तेजश्री वर्धावे जी (यू. एस. ए.) ने किया है l 

आपको बता दें कि संस्था ने जमीनी स्तर से काम करते हुए आज देश विदेश तक बड़े स्तर पर पहचान बना ली है। इसकी  डिज़ाइनिंग, पब्लिकेशन और प्रिंटिंग केशव कल्चर के तत्वाधान में ही हुई   है और  यह पावन पुस्तक रंगीन प्रष्टो की एक अनुपम कृति है l पुस्तक केशव कल्चर की वेबसाइट पर ईबुक एवं हार्डकॉपी (कलर्ड एवं ब्लैक एन्ड वाइट) में उपलब्ध होंगी 

आचार्य बृजपाल शुक्ला जी के आशीर्वाद से इस प्रसादम  का सम्पादन कार्य सफल हुआ l संपादकीय मण्डल में आ० दीप्ति शुक्ला जी , आ० विनीता लवानियाँ जी, आ०  प्रतिभा शर्मा जी,आ० के.एल. सोनी जी कि अहम् भूमिका रही l 

आ० प्रभा शुक्ला,आ० डॉ. निराला पाठक जी,आ० ज्ञानेश्वरी सिंह "सखी" जी,आ०  सीमा रहस्यमयी जी एवं आ० नीतेंद्र सिंह परमार भारत एवं  केशव कल्चर के कार्यकारिणी सदस्य प्रशांत द्विवेदी जी , पूजा चौधरी जी के निरंतर सहयोग से पुस्तक का कार्य पूरा हुआ । भगवान श्री कृष्ण और माँ शारदा से यही कामना है कि यह संस्था दिन प्रति दिन इसी तरह से ऊंचाइयों को प्राप्त करती रहे। इसी तरह सभी गुरुजनों और देवताओं का आशीष हम पर बना रहे ।

संस्था के महासचिव प्रशांत द्विवेदी जी ने बताया कि यह हमारा परम सौभाग्य है कि हमें इस पुस्तक पर कार्य करने का सुअवसर मिला 56 कवियों की रचनाओं का महाभोग की थाली सज चुकी है l आप सभी से अनुरोध है, कार्यक्रम में आकर इस अनुष्ठान को सफल बनायें l आइये हम सब मिलकर 
भगवान श्री कृष्ण को अपनी भाव भरी कृतियों का छप्पन भोग लगाये l

प्रेषक 
महासचिव
प्रशांत द्विवेदी मृदुल

प्रसादम - आचार्य ब्रजपाल शुक्ल वृंदावनधाम।

प्रसादम
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यह संसार विविधताओं से भरा हुआ है। जिसको,जितना,जब भी लोककल्याणकारी कुछ भी समझ में आता है,वह अवश्य ही प्रयत्नशील होता है।

इस संसार में परोपकार वृत्ति के स्त्री पुरुषों की संख्या बहुत ही कम होती है।

संसार में ऐसे स्त्री पुरुष भी हैं कि परोपकार का स्वभाव न होने पर,धन होते हुए भी उनके द्वार से भूखे प्यासे को एक रोटी और एक गिलास पानी नहीं मिलता है।

इसी प्रकार, ऐसे उच्च शिक्षा प्राप्त स्त्री पुरुष भी हैं कि अपनी विद्या का उपयोग, करके पर्याप्त धन कमाकर शान्ति से अपने घर में ही बैठे रहते हैं। किसी को भी एक अक्षर का ज्ञान नहीं देते हैं।

इन दोनों प्रकार के स्त्री पुरुषों का धन व्यर्थ ही है।
विद्याधन प्राप्त करके जिनने ज्ञान नहीं दिया है,उनका विद्याधन व्यर्थ ही समाप्त हो जाता है।

इसी प्रकार धन,वैभव होते हुए भी जिनका रुपया पैसा किसी भी दीनहीन के काम नहीं आता है,वह धन भी व्यर्थ ही होता है।

जिस धन से यश प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं किया जाए,वह धन और वह विद्या दोनों ही निरर्थक ही हैं।

धनवान व्यक्ति के धन को उसके परिवार के सदस्य ही उपयोग और उपभोग करके उसको समाप्त कर देते हैं। अन्त में उसका नाम लेनेवाला भी कोई नहीं रहता है।

विद्या धन भी तभी श्रेष्ठ माना जाता है,जब वह विद्या समाज के हृदय में उतर जाती है। 

कवियों ने,निबन्ध लेखकों ने समाज में पर्याप्त परिवर्तन किया है। 

दीप्ति शुक्ला जी ने अपने गृहकार्यों को तथा आजीविका प्रदान करनेवाले कार्यों को करते हुए भी अथक परिश्रम करके इस "प्रसादम"पत्रिका का संपादन,प्रकाशन तथा संयोजन करके अनेक कवियों तथा लेखकों को प्रकाशित करके सर्वग्राही बना दिया है।

सभी लेखकों को तथा कवियों को भी दीप्ति शुक्ला जी का यथाशक्ति यथासंभव सहयोग करके उनके मनोबल की वृद्धि करते हुए आगामी पत्रिका प्रकाशन में पूर्ण सहयोग करना चाहिए। तथा वर्तमान पत्रिका का प्रचार प्रसार भी करना चाहिए।

इस पत्रिका का जितना अधिक प्रचार प्रसार होगा,उतना ही अधिक महत्त्व, कवियों और लेखकों का भी बढ़ेगा।

केशव कल्चर के नाम को सार्थक करने के लिए भगवान केशव ही दीप्ति जी को भरपूर सहयोग करेंगे।

आचार्य ब्रजपाल शुक्ल वृंदावनधाम। 11-8 -2022

Saturday, July 30, 2022

वरिष्ठ साहित्यकार दादा आ० सुरेंद्र शर्मा 'शिरीष' जी से हुईं मुलाकात - नीतेंद्र सिंह परमार 'भारत'

बहुत दिनों बाद छतरपुर नगर के वरिष्ठ साहित्यकार दादा आ० सुरेंद्र शर्मा 'शिरीष' जी से मुलाकात हुईं। और दादा श्री का आशिर्वाद प्राप्त हुआ तथा जो मेरे अंदर विभिन्न प्रकार की जिज्ञासा थी। उनके  उत्तर भी  दादा श्री से पाकर मैं धन्य हुआ।
      






नीतेंद्र सिंह परमार
🙏🙏🙏🙏

Friday, July 22, 2022

महान_क्रांतिकारी_चंद्रशेखर_आजाद - जीतेन्द्र यादव जीत

#महान_क्रांतिकारी_चंद्रशेखर_आजाद_को_सादर_समर्पित



धन्य धरा भारत की हुई थी, जब उसका अवतार हुआ ।
डूब रही थी जो नैया, वह उसका  खेवनहार हुआ ।।
बेड़ी डलीं गुलामी की थीं, चारों ओर अंधेरा था ।
लंदन से आ गए फिरंगी, भारत भू को घेरा था ।।
कांधे पर जिसके जनेऊ, जयमाल भाँति लहराता था ।
देख फिरंगी ज़ुल्मों को वह, बबर शेर बन जाता था  ।।
आशा की जो किरण बना था, वह अनमोल नगीना था ।
कमर में पिस्टल हरदम रहती, छप्पन इंची सीना था ।।

चाल निराली मतवाली थी, स्वाभिमान था मूछों में ।
हिन्दुस्तानी होने का, अभिमान भरा था मूछों में ।।
हृदय देश के मध्य प्रदेश की, गाँव भाभरा माटी में ।
बचपन बीता था संघर्षों, वाली उस परिपाटी में ।।
खेल खेल में उस बालक ने, बाण चलाना सीख लिया ।
गोरों की गर्दन रखकर, पिस्तौल चलाना सीख लिया ।।
बाल्यकाल में उसने यारो, रौद्र रूप दिखलाया था ।
खुली बग़ावत अंग्रेजों से, केसरिया लहराया था ।।

अत्याचारी अंग्रेजों का, खौफ नहीं था शेखर में ।
भारत माँ के घावों का प्रति, शोध भरा था शेखर में ।।
नर संहार किया गोरों ने, जलियाँ वाले बाग में ।
भड़की ज्वाला थी भारत में, कूद पड़ा था आग में ।।
संतावन वाली आग अभी तक, धधक रही थी सीने में ।
लक्ष्य एक था बस आजादी, मरने में या जीने में ।।
गाँधी जी के आंदोलन में, आगे बढ़कर भाग लिया ।
नाम देश के लिखी जवानी, मात-पिता को त्याग दिया ।।

पंद्रह वर्ष की आयु में वह, गिरफ्तार हो जाते हैं ।
हैरान सभी रह जाते हैं जब, न्यायालय में आते हैं ।।
न्यायाधीश हुकुम देता है, नाम पता बतला देना ।
आज़ाद लाल स्वाधीन पिता का, पता जेल लिखवा लेना ।।
नग्न बदन पर पड़े बेंत, ना संयम उसका डोला था ।
कतरा कतरा लाल लहू, जय भारत माँ की बोला था ।।
ऐसे चंद्रशेखर को यारो, आओ सभी सलाम करें ।
जान लुटाई जिनने हम पर, उनका हम गुणगान करें ।।

गोरों की हिंसा के बदले, मार्ग अहिंसक बौने थे  ।
भारत माँ का मन व्याकुल था, घायल कोने कोने थे ।।
लाला जी पर पड़ी लाठियाँ, दृश्य नहीं वह भूला था ।
तोड़ दिया व्रत सत्य अहिंसा, क्रांति मार्ग कबूला था ।।
सपना सुखद संजोया था तब, भारत के हर वासी ने ।
राह दिखाई अंधों को थी, गाँव भाभरा वासी ने ।।
आजादी पाने का उसने, मार्ग नया दिखलाया था ।
एक गाल के बदले दूजा, गाल नहीं सिखलाया था ।।

मार भगाने अंग्रेजों को, बिस्मिल के संग जाते हैं ।
काकोरी में रेल रोक, हथियार उड़ा ले आते हैं ।।
खुली चुनौती अंग्रेजों को, बेटा हिम्मत वाला था ।
थर-थर कँपते थे शेखर से, जिनका भी दिल काला था ।।
वेष बदलने में माहिर थे, और अचूक निशाना था ।
नगर ओरछा के जंगल में, वर्षों रहा ठिकाना था ।।
गाँव-गाँव में घूम-घूम कर, क्रांतिवीर तैयार किये ।
आजादी की अलख जगाई , लड़ने को हथियार दिये ।।

भारत का हर बच्चा बच्चा, शेखर का दीवाना था ।
सर्वस्व समर्पण किया देश पर, ऐसा वह परवाना था ।।
चढ़ा बसंती रंग वीर पर, इंकलाब की बोली थी ।
बनी टोलियाँ मस्तानों की, खेली खून से होली थी ।।
लाला की हत्या का बदला, लेना था उस दौर में ।
शेर पंजाबी भगत सिंह संग, जा पहुँचे लाहौर में ।।
साण्डर्स के काल बने थे, भून दिया था गोली से । 
सिंहासन हिल गया फिरंगी, इंकलाब की बोली से ।।

पूरे भारत को उकसाने, काम नया कुछ करना था ।
ब्रिटिश हुकूमत की आँखों में, उनको जिंदा रहना था ।।
फेंकेंगे बम असेम्बली में, शेखर ने ऐलान किया ।
भगत सिंह और बटुकेश्वर ने, भलीभाँति अंजाम दिया ।। 
सुखदेव भगत व राजगुरु की, फाँसी का फरमान हुआ ।
रंग दे बसंती चोला मेरा, भारत में जय गान हुआ ।।
आज़ाद ने फाँसी रुकवाने को, पूरा जोर लगाया था ।
दुर्गा भाभी से संदेशा, बापू तक पहुँचाया था ।।

गांधी जी गर एक पत्र ही, इरविन को तब लिख देते ।
फाँसी भी रुक सकती थी, और मन भी मैले ना होते ।।
भगत सिंह को रिहा कराने, चाचा के घर आये थे ।
अल्फ़्रेड पार्क को रणनीति का, अपना केन्द्र बनाये थे ।।
किन्तु विभीषण जयचंदों ने, भेद खोलकर दगा किया ।
भारत माँ का शेर पार्क में, अंग्रेजों को बता दिया ।।
अंग्रेजी अफ़सर बाबर ने, आकर उनको घेरा था ।
गोलीं बरसीं अंधाधुंध, आज़ाद ने मुँह ना फेरा था ।।

मृत्यु खड़ी थी गले लगाने, हिम्मत ना वे हारे थे ।
पेड़ को ढाल बनाकर गोरे, मौत के घाट उतारे थे ।।
भारत माँ के चरणों की, सौगन्ध लाल ने खाई थी ।
अपनी पिस्टल से गोरों कीं, लाशें वहाँ बिछाईं थीं ।।
अंतिम गोली पिस्टल में, शेखर की यारो बचती है ।
मातृभूमि पर मर मिटने की, नई इबारत लिखती है ।।
भरत भूमि की चंदन रज का, टीका भाल लगाता है ।
कनपट्टी पर पिस्टल रखके, ट्रिगर लाल दबाता है ।।

हाँथ नहीं आया गोरों के , प्राणों का बलिदान दिया ।
भारत माता की गोदी में, शेखर ने विश्राम किया ।। 
वचन दिया था माता को जो, अंतिम क्षण तक याद रहा ।
चंद्रशेखर आज़ाद हमारा, जीवन भर आजाद रहा ।।
चंद्रशेखर से वीर धरा पर, रोज जन्म ना पाते हैं ।
इतिहासों के स्वर्ण पृष्ठ पर, नाम अमर कर जाते हैं ।।
चंद्र शेखर आजादों से हम, अपना हिन्दुस्तान भरें ।
जान लुटाई जिनने हम पर, उनका हम गुणगान करें ।।





✍️ जीतेन्द्र यादव जीत

Wednesday, July 20, 2022

जीवनी-हाकी के जादूगर : मेजर ध्यानचंद - संतोष कुमार सिंह मथुरा, उ०प्र०

जीवनी-हाकी के जादूगर : मेजर ध्यानचंद
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खेल मनुष्य के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक माना जाता है। जो व्यक्ति कोई न कोई खेल खेलता है, वह स्वस्थ अवश्य ही रहता है।
        भारत में कई खेल प्रतिभाओं ने जन्म लिया है। जैसे- 'उड़नपरी' के नाम से प्रसिद्ध पी०टी० उषा, 'मास्टर ब्लास्टर' के नाम से प्रसिद्ध सचिन तेंदुलकर और 'हाकी के जादूगर' के नाम से प्रसिद्ध मेजर ध्यानचंद। आज मैं, मेजर ध्यानचंद के बारे बताने जा रहा हूँ।
        
       हाॅकी के महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज ( इलाहाबाद) शहर में हुआ था। इनके पिता का नाम सूबेदार समेश्वर दत्त सिंह और माता का नाम शारदा सिंह था।
   ध्यानचंद, साधारण शिक्षा प्राप्त करने के बाद 16 वर्ष की आयु में एक सिपाही के रूप में सेना में भर्ती हुए थे। सेना में रहते हुए ही इन्होंने हाॅकी के खेल  में रुचि ली। धीरे-धीरे ये हाॅकी खेल प्रतिस्पर्धाओं में उत्तम प्रदर्शन करने लगे। इसी कारण सेना में पदोन्नति देकर सन् 1927 में लांस नायक, सन् 1936 सूबेदार बना दिए गए थे। ...उत्कृष्ट खेल प्रदर्शन करते रहने पर लेफ्टीनेंट, कैप्टेन और फिर मेजर बने।

       मेजर ध्यानचंद हॉकी के इतने बेहतरीन खिलाड़ी थे कि अगर गेंद एक बार उनकी स्टिक से चिपक जाए तो गोल करने के बाद ही हटती थी। यही कारण था एक बार खेल को बीच में रोककर उनकी स्टिक तोड़कर देखा गया कि कहीं उनकी स्टिक में चुंबक या कोई ऐसी चीज तो नहीं लगी है जो बाॅल को चिपका लेती है। यही कारण है कि उनको 'हॉकी का जादूगर' कहा जाता है। मेजर ध्यानचंद तीन बार ओलंपिक के स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे थे, जिनमें सन् 1928 का एम्सटर्डम ओलंपिक सन् 1932 का लॉस एंजिल्स ओलंपिक एवं 1936 का वर्लिन ओलंपिक शामिल है। सन् 1936 के बर्लिन ओलंपिक खेलों में ध्यानचंद को भारतीय टीम का कप्तान चुना गया था। उन्होंने 1926 से 1948 तक अपने कैरियर में 400 से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय गोल किए थे। जब कि पूरे कैरियर में एक हजार के लगभग गोल किए थे। इतना ही नहीं, जब ध्यान चंद हॉकी से रिटायर हो गए तो उसके बाद भी उनके प्रदर्शन की चमक भारतीय हॉकी टीम में बनी रही। भारत ने 1928 से 1964 तक खेले गए आठ ओलंपिक खेलों में से 7 में गोल्ड मेडल जीता था।

     भारत सरकार ने इस महान खिलाड़ी को सम्मानित करते हुए सन् 2012 में इनके जन्मदिन को *राष्ट्रीय खेल दिवस*' के रूप में मनाने का फैसला लिया था। उन्हें भारत सरकार द्वारा सन् 1956 में 'पदम भूषण' सम्मान से सम्मानित भी किया गया था।
     राष्ट्रीय खेल दिवस को राष्ट्रीय स्तर पर बड़े तौर पर मनाया जाता है।  इसका आयोजन प्रतिवर्ष राष्ट्रपति भवन में किया जाता है और राष्ट्रपति द्वारा देश के उन खिलाड़ियों को राष्ट्रीय खेल पुरस्कार दिया जाता है, जिन्होंने अपने खेल के उत्तम प्रदर्शन द्वारा पूरे विश्व में तिरंगे झंडे का मान बढ़ाया होता है। राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों  के अंतर्गत, अर्जुन अवॉर्ड, राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड और द्रोणाचार्य अवार्ड जैसे कई पुरस्कार देकर खिलाड़ियों को सम्मानित किया जाता है। इन सभी सामानों के साथ ,ध्यानचंद अवार्ड, भी इसी दिन दिया जाता है।
     सन 1979 में मेजर ध्यानचंद की मृत्यु के बाद भारतीय डाक विभाग ने उनके सम्मान में स्टाम्प भी जारी किए थे। दिल्ली के नेशनल स्टेडियम का नाम भी बदल कर उनके नाम पर 'मेजर ध्यान चंद स्टेडियम' रख कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई है। इतना ही नहीं 6 अगस्त 2021 को राजीव गांधी खेल रत्न का नाम बदलकर 'मेजर ध्यानचंद खेल रत्न' कर दिया गया है।

मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन अर्थात प्रतिवर्ष 29 अगस्त को *राष्ट्रीय खेल दिवस* के दिन उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को भारत के महामहिम राष्ट्रपति, राष्ट्रपति भवन में बुलाकर राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों से  खिलाड़ियों को सम्मानित करते हैं। इस अवसर पर खिलाड़ियों के साथ-साथ उनकी प्रतिभा निखारने वाले खेल प्रशिक्षकों को भी सम्मानित किया जाता है। इसके अतिरिक्त लगभग सभी स्कूलों तथा अन्य शिक्षण संस्थाओं में 'राष्ट्रीय खेल दिवस' के दिन अपना सालाना खेल समारोह आयोजित करते हैं।
   *मेजर ध्यानचंद खेल रत्न सम्मान* पाने वाले खिलाड़ियों को राष्ट्रपति द्वारा एक पदक, एक प्रमाण पत्र तथा नकद राशि  25,00,000 रुपए दी जाती है। सम्मानित व्यक्तियों को रेल की मुक्त पास सुविधा प्रदान की जाती है, जिसके अंतर्गत  राजधानी या शताब्दी गाड़ियों में प्रथम और द्वितीय श्रेणी वातानुकूलित कोचों में मुफ्त यात्रा कर सकते हैं।
          🌀🌀🌀

 संतोष कुमार सिंह
       मथुरा, उ०प्र०
मोबाइल 9456882131

संस्मरण श्रद्धा भक्ति में शक्ति - गीतांजली वार्ष्णेय"सूर्यान्जलि"इफको ऑवला बरेली उ.प्रदेश


संस्मरण
विधा-गद्य
श्रद्धा भक्ति में शक्ति
 
विश्वास एक शब्द ही नहीं एक
शक्ति है। हमारी श्रद्धा और विश्वास हमें सफलता की राह दिखाता है,हमारी कोशिश मंजिल तक ले जाती है। ऐसी ही घटना लॉक डाउन में मेरे साथ घटित हुई।
              सितंबर के महीना,मेरा 17 बर्षीय बेटा शुभांश जो हाइपरऑटिस्टिक है,हॉस्टल में वृंदावन रहता है।उसे संभालना बहुत मुश्किल है।लॉक डाउन में घर आया था।कुछ दिन ठीक रहा,धीरे धीरे उसकी हाइपर नेस बढ़ने लगी। एक दिन वह पापा के साथसब्जी मंडी गया,उसे स्प्रिंग रोल खाने थे जो लॉक डाउन के कारण नहीं मिले। पापा सब्जी ले रहे थे वह चुपचाप घर भाग आया।और चिल्लाने लगा स्प्रिंग रोल खायेगा,चिल्लाते हुए साइकिल की चाभी ली और तेजी से साइकिल लेकर निकल गया,में किचिन में खाने की तैयारी कर रही थी,मैं उसके पीछे भागी,किन्तु वह हाथ न आया।कोई यकीन नहीं करता वह सायकिल 25-30km की स्पीड में दौड़ा कर आँखों से ओझल हो गया।उसे घर लौटने का रास्ता नहीं मालूम,न ही किसी से बात करता है।कोई पूछे तो जबाब भी नही देता।
    कहते है न कि "मुसीबत अकेले नही आती,उधर मेरी सास भी उठने की कोशिश में बिस्तर से गिर गयीं।जैसे तैसे उन्हें उठाया।
    उस दिन मेरे पति फोन भी नही ले गए,वह ढूंढते हुए घर वापस आये,मैंने पूरी बात बताई और तुरंत गाड़ी लेकर ढूंढने निकल पड़े,सारे पुलिस थानों में सूचना दे दी,किन्तु नही मिला।पूरी रात दूसरा दिन ढूंढते रहे नही मिला।
    हम घर लौटे मैंने माता के मंदिर में दीपक जलाया और प्रार्थना की मेरा बच्चा सही सलामत घर नहीं लौटा तो मैं दीपक जलाना छोड़ दूँगी,ईश्वर से विश्वास खत्म हो जाएगा।पर कहते हैं विश्वास में भक्ति और ,#भक्ति में शक्ति होती है हमारे एक मित्र ने हमें 12 km और आगे देखने के लिए प्रेरित किया, और घर से लगभग 64km दूर बेटे के देखे जाने का क्लू मिला।
    हमने 112 न.गाड़ी को उसी रास्ते पर  दौड़वाया और 7 सितम्बर तीसरा दिन ,की रात्रि दो बजे भूखा प्यासा अति दयनीय स्थिति में मिला।उसकी हालत याद आ जाती है तो कलेजा कांप उठता है। किंतु माता रानी का शुक्र है उन्होनें रास्ता दिखलाया और सफलता हासिल हुईं।
    तब भक्ति में शक्ति का एहसास हुआ।।

गीतांजली वार्ष्णेय"सूर्यान्जलि"
इफको ऑवला बरेली उ.प्रदेश

संस्मरण - झलक ~ दिलीप कुमार पाठक 'सरस'

विधा-संस्मरण 

"झलक"

उत्तर प्रदेश के दो जनपद, शाहजहाँपुर तथा पीलीभीत को मिलाने वाली कटना नदी के किनारे बसा एक सुन्दर गाँव जिन्दपुरा है | पीलीभीत की दृष्टि से देखें तो नदी के इस ओर बसे गाँव पीलीभीत के हैं और उस ओर बसे गाँव शाहजहाँपुर के हैं | नदी के इस ओर गाँव खनंका और नदी पार करो तो जिंदपुरा | स्टेशन जिन्दपुरा में है और बस- अड्डा खनंका नदी पुल है | पुल पार करते ही बालासिद्धन (बारह सिद्धियों का) एक रमणीक प्राकृतिक तपोवन है जो सदैव श्रधालुओं व दर्शनार्थियों को बुलाता रहता है |
       भगवान भोलेनाथ का प्रताप कहाँ नहीं है | प्रभु का "इटौरनाथ" शिव धाम जिंदपुरा का शक्ति-धाम है | विशेष बात यह है कि यहाँ भी भगवान शिवजी कटना नदी के किनारे ही विराजमान हैं | इसी गाँव में एक ऐसा भी स्थान है जो समन्वय का पावन स्थान है| जिसके सिर पर वट-वृक्ष की छाँव है | जहाँ मंजार और मंदिर प्राचीन समय से अपनी पहचान बनाए हुए हैं | विशेष बात यह है कि इस पवित्र स्थान पर हर वृहस्पतिवार को मेला लगता है | दूर-दूर से लोग आज भी इस स्थान पर आते हैं |इस स्थान की कुछ तो विशेष बात होगी | इस स्थान से हिंदू व मुसलमान दोनों का विश्वास जुड़ा हुआ है |समान रूप से दोनों, दोनों स्थानों पर प्रसाद चढ़ाते हैं| दोनों स्थानों पर श्रद्धा से शीश झुकाते हैं |इसीलिए यहाँ की गई प्रार्थना मनोकामना के रूप में पूरी होती है |
       इसी गाँव के एक जमीनदार कश्यप गोत्रीय ब्राह्मण परिवार में परम श्रद्धेय स्व. श्री मथुरा प्रसाद पाठक जी के हृदयांश परम पूजनीय  स्व. श्री पोथीराम पाठक जी के स्नेहिल मझले सुपुत्र परम वंदनीय स्व. श्री बनवारी लाल पाठक जी ने वंश को समृद्ध करने वाले अपने श्रेष्ठ भाइयों के बड़े छोटे के बीच को भरने वाले मझले बेटे के रूप में जिसे पाया, उन्हीं वंदनीय श्री जगदीश सरन पाठक जी का पुत्र बनने का मुझे 5 जुलाई सन् 1983 को सौभाग्य मिला | ममतामयी  श्रीमती मैनादेवी मइया की गोद में मैं रोता हुआ आया था ,उस दिन आज तक  उनका दुलार पाकर हँस रहा हूँ, प्रसन्न हूँ| निश्चित रूप से माँ की देन है | 
     मेरी जन्मभूमि जिंदपुरा जैसा सुरम्य गाँव बिरला ही कोई होगा |जिसके पूर्व में स्टेशन व रेल पटरी को काटती हुई नहर, पश्चिम में शिवधाम इटौरनाथ, उत्तर में पुल व बालासिद्धन, दक्षिण में विशाल वट वृक्ष की शीतल छाया में देवस्थान व मजार चारों ओर से आपको आमंत्रित कर रहे हैं | 
       अपनी जन्मभूमि पर मुझे गर्व है | खनंका में मौसी ,जिंदपुरा में माँ , बीच में नदी | जिंदपुरा से जितनी दूर व्लॉक निगोही, उतनी ही दूर खनंका की तहसील बीसलपुर | शाहजहाँपुर बचपन का क्रीड़ांगण और जनपद पीलीभीत कब कर्मक्षेत्र बन गया? पता ही नहीं चला |

~ दिलीप कुमार पाठक 'सरस'
    20 जुलाई 2022

संस्मरण - पश्चात्ताप - मुनीशा यादव

विधा -संस्मरण
विषय- पश्चात्ताप

     निशा बहुत ही सुलझी हुई लड़की थी। उसकी आदर्शवादी विचारधारा के सभी प्रसंशक थे।सेवा भाव तो उसमें कूट-कूट कर भरा था। शादी के बाद ससुराल में भी उसने सभी के ह्रदय को जीत लिया था। सभी उससे बहुत प्यार करते थे।
           ससुर की मृत्यु के बाद उसकी सास निशा के साथ ही रहने लगीं। वह भी अपनी माँ जी का बहुत ध्यान रखती थी। माँ जी के खाने-पीने नहलाने व कपड़े धोने का भी बहुत ध्यान रखती थी। कुछ वर्षों बाद माँ जी की भी तबियत बिगड़ने लगी। लाख कोशिशों के बाद भी माँ जी को स्वास्थ्य लाभ न मिला। दिन-रात स्वास्थ्य बिगड़ता ही जा रहा था। मानसिक स्थिति भी बिगड़ने लगी थी। निशा एक शिक्षिका थी उसने कई दिनों से अवकाश ले रखा था।दिन-रात माँ जी की सेवा में गुजार रही थी। अचानक एक रात माँ जी को रात में बुखार आ गया। जब निशा ने देखा तो रात्रि के तीन बजे रहे थे। उसने अपने पति को जगाया तो पति भी घबरा गए और दवा देने को कहा। ढूँढने पर दवा भी घर में न मिली फिर ठण्डे पानी की पट्टी रखती रही व हाथ पैर भी धोती रही। बुखार थोड़ा कम हुआ तब तक सुबह के पाँच बजे चुके थे। निशा ने जल्दी-जल्दी से फिर काम किया और माँ जी को भी नित्य कर्म से निवृत कराकर   खुद भी तैयार हुई आज विद्यालय में कुछ आवश्यक सूचना जमा करनी थीं।माँ जी से विद्यालय जाने के लिये अनुमति मांगी, *"मम्मी मैं विद्यालय चली जाऊँ दो घंटे में वापस आ जाऊँगी।"* माँ जी ने एक बार के लिए भी मना नहीं किया और सिर हिलाकर अनुमति दे दी।विद्यालय पहुँचते ही उसके पति का फोन पहुँच गया कि जल्दी आ जाओ मम्मी की तबियत और बिगड़ गई हैं। वह तुरंत ही दूसरे शिक्षक के साथ चल दी। घर आई तब तक माँ जी गोलोक को सिधार चुकी थीं। उसके सब्र का बाँध टूट गया और मैं वहीं जड़ की भाँति स्थिर हो गई। बार-बार यही पश्चात्ताप हो रहा था कि काश मैं न जाती । बता दूं कि निशा कोई और नहीं मैं ही थी। यह अफसोस मुझे जीवन भर रहेगा।
       
         मुनीशा यादव



संस्मरण बदलता समय अर्थात परिवर्तन - हरीश बिष्ट "शतदल"


विषय :- बदलता समय  अर्थात परिवर्तन
विधा :- संस्मरण 

  
 परिवर्तन प्रकृति का शास्वत नियम है , जो कि सर्वविदित है | इस नियम के अनुसार समय-२ पर  मूर्त-अमूर्त हर प्रकार की वस्तुओं में परिवर्तन देखा जाना लाजिमी ही है, इसी प्रकार संस्मरण के रूप में आप सबके समक्ष अपने बचपन की बात रखने जा रहा हूँ, उस समय जब मैं बहुत छोटा था तो गाँव में ही रहता था, गाँव में ही पढ़ाई-लिखाई और घर परिवार के हर प्रकार के काम-काज करते हुए बचपन के साथ-२ जीवन के सुनहरे २०-२१ साल बीत गये, आज जब कभी उन दिनों को याद करता हूँ तो मन करता है कि काश वो दिन फिर लौटकर आ जाते, क्योंकि वो दिन जैसे भी थे बहुत अच्छे थे  |
           बचपन में हम जब छोटे-छोटे थे तो गाँव में ही रहते थे, तो उस समय आज की तरह गाँव शहरों की मानिंद इतने विकसित नहीं थे, उस समय गाँवों में शहरों की भाँति हर वस्तु आसानी से और नजदीक में ही नहीं मिलती थी, यदि हमें कुछ लेना भी होता तो गाँव से बाहर बहुत दूर-२ वो भी पैदल ही बाजारों में जाना पड़ता था, आज तो पहाड़ों में भी गाँव-२ और घर में दुकानें खुल चुकी हैं , शहरों की तरह उनमें भी हर प्रकार की अधिकतर वस्तुएं आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं, इसके अलावा किसी वस्तु के लिए बाजार भी जाना पड़ा तो गाँव-२ में रोड़ और घर-२ में गाड़ियां खड़ी हैं, मगर हमारे समय में ऐसा नहीं था, हम स्कूल भी जाते थे तो हमें पांच किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था, पाँच किलोमीटर आना और पाँच किलोमीटर जाना, और स्कूल से वापस आकर फिर घर का काम भी करना पड़ता था, लेकिन हम फिर भी खुश रहते थे | इस सब के बावजूद बाल मन तो बाल मन ही होता है, जो चंचल और जिज्ञासु होने के साथ-२ महत्वाकांक्षी भी होता ही है, बशर्ते उसकी महत्वाकांक्षा बड़ी-२ न होकर छोटी-२ सही, हमारा गाँव दो भागों में बँटा है एक नाले के इस ओर और दूसरा उस ओर, मगर गाँव एक ही है, अब तो सब पूरी तरह से लगभग एक सा ही हो गया है, उन दिनों जब कभी कोई त्योहार वगैरह या फिर गाँव में शादियाँ होती थी तो उस दूसरी तरफ के लड़के जो की उस समय अधिकतर शहरों में रहते थे तो वे गाँव आते रहते थे, और जब गाँव आते थे तो अपने साथ फल-फूल, मिठाई, अपने छोटे भाई-बहिनों के लिए लत्ते-कपड़े, खिलोने, दिवाली पर फुलझड़ी, बाम्ब, तथा अन्य प्रकार के छोटे-बड़े पटाखे लाते थे, दूसरी तरफ हमारी तरफ से एक-दो को छोड़कर कोई भी शहरों में नहीं था, जो थे भी तो वो अपने परिवारों के साथ रहते थे, तो वो २-३ साल में कभी कभार ही गाँव आते थे, तो मिठाई वगैरह खाने को कम ही मिला करती थी, उस समय मेरा भी शायद हो सकता है दूसरे बच्चों का मन भी करता हो, पर मैं तो अपने मन की बता सकता हूँ, तो उस समय मेरा मन करता था की काश हमारे बाखली ( मोहल्ले) के लड़के भी शहरों में होते तो हमारी बाखली खूब मिठाई आती और हमको भी खाने को मिलती, और हमें भी मजा आता, मैं आप सभी को एक बात और बताना चाहता हूँ कि शुरु से ही हमारे पहाड़ों में एक रिवाज है कि जो भी शहरों से नौकरी करके आता तो वह गाँव में बाँटने के लिए मिठाई जरुर लाता, और जैसे नई-२ बहुएंँ  भी अपने मायके से ससुराल को आती या फिर चैत के महिने  में भिटोली ( चैत्र के महिने में मायके वालों की तरफ से अपनी बेटी को दिया जाने वाला तोहफे के रूप में लत्ते-कपड़े के साथ- पूरियाँ या मिठाई ) के समय जो कुछ भी लाते या आता उसे पूरे गाँव में बाँटा जाता है, तब हमारा भी मन करता काश कोई आता अच्छी-२ टॉफियाँ, मिठाईयाँ या फिर फल-फूल  लाता तो कितना अच्छा होता , ऐसा विशेषकर दिवाली या किसी अन्य त्योहार के समय ज्यादा होता, धीरे-२ हम भी बढ़े होते गये, और फिर एक दिन मैं भी शहर को आ गया, अब जब भी घर जाता हूँ तो ४-५ किलो मिठाई, फल-फूल और घर पर जाते समय बाखली के बच्चों को बाँटने के लिए टॉफी इत्यादि जरूर ले जाता हूँ, परंतु हमारे समय में तो बाखली में बच्चे भी बहुत थे, मानो हर घर से ४-५ बच्चे तो होंगे ही, और बाहर से आने वाले गिने-चुने लोग वो भी २-३ साल में एक बार, अब तो हर घर से कोई न कोई बाहर शहरों में रहता है, और हर महिने कोई न कोई गाँव जाते रहता, लेकिन अब बाखली में पहले की तरह बच्चे भी नहीं रहे , किसी का एक तो किसी के दो और उनमें से भी अधिकतर शहरों की तरफ आ चुके है़ं , इसलिए अब पहले की तरह बच्चे भी नहीं, साथ ही जो चीज शहरों में मिलती है वही सब वस्तुए गाँवों में भी आसानी से मिल जाती है, तो जिसे जब जो चीज चाहिए वो वहीं पर ले लेता है  , इसलिए अब पहले जैसी बात भी नहीं रही, और हाँ गर्मियो में सभी जगह मई- जून में स्कूलों की छुट्टीयाँ पड़ जाती और गाँवों में अधिकतर शादियाँ भी उसी समय होती थी, तो हम लोग भी उस समय बड़ी बेसब्री से शहर से गाँव आने वालों का इंतजार करते रहते कि वो आएगा, फलाना आएगा, उसके चाचा आएंगे, उसका भाई आएगा करके, जो भी एक बार गाँव आता वो हमारा और हम उसके मित्र बन ही जाते, और बड़े खुश होते, और जब वो लोग छुट्टियाँ बीत जाने पर शहरों की तरफ जाते तो हमको बहुत बुरा लगता और उस रात तो हम खाना भी नहीं खाते, भूखे ही सो जाते, ऐसी थी उस समय गाँव की जिंदगी, लेकिन आज की शहरों की जिंदगी से तो बड़ा ही आनंद आता था गाँव की उस जिंदगी में, लेकिन अपने दिनों को याद करते हुए जब भी गाँव जाता हूँ तो कभी भी खाली हाथ नहीं जाता, क्योंकि मुझे पता है अपने घर में खाने को चाहे कुछ कितना बढ़िया ही क्यों न मिल जाए मगर उससे ज्यादा आनंद तो बाहर अर्थात दूसरे के घर से आयी चीज में होता है, चाहे वो खाने को बिल्कुल थोड़ा सा ही क्यों न मिले, उसमें जो प्यार और अपनत्व की महक होती है उससे उसका स्वाद कई गुना बढ़ जाता है, इसीलिए मेरे बाल मन में उस समय ऐसी बाल इच्छाएँ अक्सर जन्म लेती रहती थी, और हाँ दुख केवल इस बात का नहीं होता था कि हमें मिठाई या फिर कुछ और खाने को नहीं मिली बल्कि दुख तो इस बात का होता की काश कोई हमारा भी शहरों से आता! 


   हरीश बिष्ट "शतदल"
रानीखेत || उत्तराखण्ड ||
  VJTM438045IN

Monday, July 18, 2022

इंजी. हेमंत कुमार जैन जी को जबलपुर इकाई का जिलाध्यक्ष बनाये जाने पर हार्दिक शुभकामनाएं।


विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत मध्यप्रदेश की जबलपुर इकाई का जिला अध्यक्ष इंजी. हेमंत कुमार जैन जी को बनाये जाने पर हार्दिक शुभकामनाएं।

     
       प्रदेश अध्यक्ष
नीतेंद्र सिंह परमार 'भारत'
विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत
    मध्यप्रदेश इकाई



Saturday, July 16, 2022

नव नियुक्त - नीतेंद्र भारत

आमंत्रण पत्र सह कार्यक्रम की रूपरेखा 
*एक कदम और त्रैमासिक ई पत्रिका* के जुलाई अंक का विमोचन, *नवनियुक्ति* व *सम्मान समारोह*

दिनांक - 16/7/2022,शनिवार

समय ~शाम 8:30 से प्रारम्भ 

स्थान - जय काव्य चित्रशाला 
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सरस्वती वंदना ~आ. आशा बुटोला 'सुप्रसन्ना' जी
स्वागत-गीत ~ आ. इंजी. संतोष कुमार सिंह जी 
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नियुक्ति पत्र प्रदाता ~ राष्ट्रीय संरक्षक आ. कौशल कुमार पाण्डेय आस जी
नियुक्त ~राष्ट्रीय प्रवक्ता
डॉ. शरद श्रीवास्तव जी 

नियुक्ति पत्र प्रदाता ~ राष्ट्रीय अध्यक्ष आ. सुशीला धस्माना मुस्कान जी 
नियुक्त ~अन्तर्राष्ट्रीय समन्वयक ~ आ. विमलेश कुमार 'हमदम' जी 

नियुक्ति पत्र प्रदाता ~ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आ. डॉ. राहुल शुक्ल 'साहिल' जी 
नियुक्त ~ राष्ट्रीय समन्वयक आ. डॉ. संतोष कुमार सिंह 'सजल' जी 

सम्मान पत्र प्रदाता ~ अलंकरण प्रमुख पं. सुमित शर्मा 'पीयूष: जी 
नियुक्त ~ जिला इकाई फर्रुखाबाद अध्यक्ष आ. दिनेश अवस्थी जी 

सम्मान पत्र प्रदाता ~ राष्ट्रीय सलाहकार आ. संतोष कुमार 'प्रीत' जी 
नियुक्त ~ राष्ट्रीय कार्यक्रम अध्यक्ष नीतेन्द्र सिंह परमार 'भारत' जी 

नियुक्ति पत्र प्रदाता ~ राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष ओमप्रकाश फुलारा 'प्रफुल्ल' जी 
नियुक्त ~ जबलपुर जिला इकाई अध्यक्ष आ. इंजी. हेमंत जैन जी 

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कार्यक्रम संचालक ~ नीतेन्द्र सिंह परमार भारत जी 
(साहित्यिक नामकरण समारोह प्रभारी) पाँच साहित्यकार साथियों के साहित्यिक नामकरण हेतु चयन करना |

कार्यक्रम संरक्षक ~ आ. शंकर केहरी जी 
कार्यक्रम अध्यक्ष ~ आ. अरविंद सोनी 'सार्थक' जी 
स्वागत प्रमुख ~ आ. मनोज खोलिया जी व आ. राजेश मिश्रा 'प्रयास' जी 
विमोचनकर्ता  ~ आ. इंजी. हेमंत कुमार जैन जी 

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(लिखित और ऑडियो दोनों में) विशेष उद्बोधक

राष्ट्रीय प्रवक्ता ~डॉ. शरद श्रीवास्तव जी 
वरिष्ठ साहित्यकार व मार्गदर्शक ~ आ. इंजी. संतोष कुमार सिंह जी 
राष्ट्रीय समन्वयक ~ आ. डॉ. संतोष कुमार सिंह सजल जी 
कार्यक्रम अध्यक्ष ~ आ.अरविंद सोनी 'सार्थक' जी 
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ~ डॉ. राहुल शुक्ल साहिल ~ त्रैमासिक गतिविधि का लिखित रूप विशेष सह उद्बोधन |
दैनिक कार्यक्रम प्रमुख ~ आ. हेमंत कुमार जैन जी 
राष्ट्रीय अध्यक्ष ~ आ. सुशीला धस्माना 'मुस्कान' जी 
आगामी कार्ययोजना का प्रारूप सहित उद्बोधन  ~ दिलीप कुमार पाठक 'सरस' 
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निवेदक - प्रशासक मंडल

तृतीय- श्रावणमास #श्रृंगार श्री श्री 1008 श्री संकट मोचन मंदिर छतरपुर (म.प्र)

#तृतीय- श्रावणमास #श्रृंगार 🌺🌺🌺
श्री श्री 1008 श्री संकट मोचन मंदिर छतरपुर (म.प्र)

आपके प्रति ~~दिलीप कुमार पाठक 'सरस'प्रधान संपादकएक कदम और त्रैमासिक ई साहित्यिक पत्रिका

आपके प्रति ~

यह गौरव की बात है कि एक कदम और त्रैमासिक साहित्यिक ई पत्रिका (प्रथम अंक~बालपत्रिका) अक्टूबर 2019 में प्रकाशित होकर अनवरत विकास की ओर अग्रसर होती हुई आज हिंदी साहित्य की श्रेष्ठ ई पत्रिकाओं में अपनी अलग पहचान रखती है | इस पत्रिका के संपादक प्रिय भाई ओमप्रकाश फुलारा 'प्रफुल्ल' जी ने इस पत्रिका को स्थायित्व दिया और आप सभी साथियों ने इसे अपना प्रत्येक प्रकार से समर्पण दिया, स्नेह दिया | इस पत्रिका का नवीन जुलाई अंक आपके कर कमलों में है | आप सभी साथियों के स्नेह ने इसे सींचा है, पल्लवित किया है, पुष्पित किया | आप सभी साथियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ |
      प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से आप सभी साथी इस अनुठी पत्रिका के सहयोगी हैं, आपके किए गए प्रयासों को भुलाया नहीं जा सकता |इस अंक के माध्यम से आप सभी स्नेहिल साथियों का हार्दिक अभिनंदन करता हूँ | 
     इस अंक में विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत के त्रैमासिक कार्यों का संक्षिप्त विवरण मिलेगा जो कि संस्था उपाध्यक्ष आ. डॉ. राहुल शुक्ल साहिल जी द्वारा लिखा जाता है, आपको पढ़ने को मिलेगा | मुख्य पृष्ठ का आकर्षण आपको लुभाएगा, जो आ. संपादक महोदय की साज सज्जा, क्रमबद्धता के द्योतक हैं | आप सभी स्नेहिल साथियों के प्यार भरे शुभकामना संदेश निश्चित रूप से इस पत्रिका को विशेष बनाने का काम कर रहे हैं | नाम में क्या रखा है, काम स्वयं बोलते हैं | जब काम बोलते हैं तो नाम स्वयं गूँजता है |समस्त जिला इकाई, समस्त प्रांत इकाई, राष्ट्रीय इकाई के पदाधिकारी व प्रशासक मंडल के पदाधिकारी,समस्त पत्रिका पदाधिकारियों के साथ इस पत्रिका से जुड़े सभी पाठक व सभी रचनाकार साथियों को इस अंक के प्रकाशन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ |
    श्रावण के पावन मास में, प्रकृति के क्रीड़ांगण की भावभूमि पर क्रीड़ा करती रचनाकारों की कलमतूलिका एक नवीनतम् सृष्टि-चित्र का निर्माण करने में संलग्न है | यह चित्र आनंद का केन्द्र बनकर हर दृष्टि को प्रेरणा प्रदान करेगा ऐसा मेरा विश्वास है |
      भगवान भोलेनाथ की महिमा का गान, हर-हर बम-बम करती काँवरियों की टोलियों का जयगान, रिमझिम-रिमझिम सावन की फुहारों के बीच प्रस्फुटित होते आनंद की किलकारियाँ | सावन में मेघों की धोखेबाजी, मिलन की उत्कंठा, पौधारोपण के बाद उनका जलाभिलाषी होना स्वाभाविक है |
  स्वाभाविकता के धरातल पर सभी साथियों की ओर से इतना ही कहना चाहूँगा हे प्रिय मेघ! 
       अबकी बार बरस जाओ |
       मैंने पौध लगाई है |
        प्यासी है मुरझाई है ||
        दुबली हो अकुलाई है |
        सावन की ऋतु आई है ||
        कर उपकार बरस जाओ |
         अबकी बार बरस जाओ ||
      नवरसकलश की छलकन का आनंद आपको समर्पित करते हुए गौरवान्वित हूँ | पुनश्च हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ | आपका सहयोग व स्नेह सदैव मिलता रहेगा | कुछ नया करने की आप सभी साथी नित प्रेरणा देते रहेंगे | मुझे पूर्ण विश्वास है |
बधाई! 

~दिलीप कुमार पाठक 'सरस'
प्रधान संपादक
एक कदम और त्रैमासिक ई साहित्यिक पत्रिका

Thursday, July 14, 2022

#प्रथम- श्रावणमास #श्रृंगार श्री श्री 1008 श्री संकट मोचन मंदिर छतरपुर (म.प्र)

#प्रथम- श्रावणमास #श्रृंगार 
श्री श्री 1008 श्री संकट मोचन मंदिर छतरपुर (म.प्र)

1857 की क्रांति के समय भारत का क्षेत्रफल था लगभग 83 लाख वर्ग किलोमीटर जो आज घटकर मात्र लगभग 33 लाख वर्ग-किलोमीटर रह गया है।

ज्यादा अतीत में न जायें तो भी 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेज प्रशासनिक अफसर जब कलकत्ता के अपने दफ़्तर में बैठते थे तो प्रोटोकॉल के अनुसार उनके पीछे की दीवार पर उस भारत का मानचित्र लगा होता था जिसे वो "इंडिया" कहकर पुकारते थे। 

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उस नक़्शे के अनुसार 1857 की क्रांति के समय भारत का क्षेत्रफल था लगभग 83 लाख वर्ग किलोमीटर जो आज घटकर मात्र लगभग 33 लाख वर्ग-किलोमीटर रह गया है। 

यानि 1857 के बाद हमने अपनी भारतभूमि का लगभग पचास लाख वर्ग किलोमीटर भूभाग गँवा दिया। 

मगर न तो हमें वेदना है न ही कोई शर्म 🙁
#ख्वाजामेरालेले

Monday, July 11, 2022

"संवेदनशील हृदय के लिए कितनी बड़ी चुनौती है, प्रयोगात्मक दौर में भावनात्मक रहना।"~ इति शिवहरे

जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है, न सुख न दुःख न नौकरी न रिश्ते कुछ भी नहीं, एक नियत समय पर सबको छूटना ही है पर छूटने की क्रिया में कब कुछ छूट पाया है, बल्कि शामिल और हो जाती है, उदासी, उदासीनता, ऊब, घुटन, पीड़ा और भी न जाने क्या-क्या? 
छूटने के क्रम में तो हरा पत्ता भी पीला पड़ जाता है, फिर हम तो मनुष्य हैं! और हमारी भावनाएँ किसी की प्रयोगशाला जिस पर लोग अपने प्रयोग करते रहते हैं!

"संवेदनशील हृदय के लिए कितनी बड़ी चुनौती है, प्रयोगात्मक दौर में भावनात्मक रहना।"

~ इति शिवहरे

Saturday, July 9, 2022

भारतीय परंपरा - प्रथम

हमने कभी वेदों का अध्ययन नही किया,हमने कभी गीता पढ़कर उसे अमल में लाने का प्रयास नही किया,हमने योग विद्या को कभी नही अपनाया,हमने आयुर्वेद में कोई अनुसंधान नही किया,हमने संस्कृत भाषा को कोई महत्व नही दिया ऐसी बहुत सी अच्छी और महत्वपूर्ण चीजें है जो हमारे पूर्वज हमारे बुजुर्ग हमे विरासत में दे गए पर हम पाश्चात्य संस्कृति अपनाने में अंधे हो गए हमने धीरे धीरे हमारी संस्कृति को ही छोड़ने का काम किया.
अब एक बहुत छोटी सी बात है पर हमने उसे विस्मृत कर दिया हमारी भोजन संस्कृति इस भोजन संस्कृति में बैठकर खाना और उस भोजन को "दोने पत्तल" पर परोसने का बड़ा महत्व था कोई भी मांगलिक कार्य हो उस समय भोजन एक पंक्ति में बैठकर खाया जाता था और वो भोजन पत्तल पर परोसा जाता था जो विभिन्न प्रकार की वनस्पति के पत्तो से निर्मित होती थी.

क्या हमने कभी जानने की कोशिश की कि ये भोजन पत्तल पर परोसकर ही क्यो खाया जाता था?नही क्योकि हम उस महत्व को जानते तो देश मे कभी ये "बुफे"जैसी खड़े रहकर भोजन करने की संस्कृति आ ही नही पाती.
जैसा कि हम जानते है पत्तले अनेक प्रकार के पेड़ो के पत्तों से बनाई जा सकती है इसलिए अलग-अलग पत्तों से बनी पत्तलों में गुण भी अलग-अलग होते है| तो आइए जानते है कि कौन से पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से क्या फायदा होता है? 

लकवा से पीड़ित व्यक्ति को अमलतास के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना फायदेमंद होता है| 
जिन लोगों को जोड़ो के दर्द की समस्या है ,उन्हें करंज के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए| 
जिनकी मानसिक स्थिति सही नहीं होती है ,उन्हें पीपल के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए| 
पलाश के पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से खून साफ होता है और बवासीर के रोग में भी फायदा मिलता है| 
केले के पत्ते पर भोजन करना तो सबसे शुभ माना जाता है ,इसमें बहुत से ऐसे तत्व होते है जो हमें अनेक बीमारियों से भी सुरक्षित रखते है| 
पत्तल में भोजन करने से पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होता है क्योंकि पत्तले आसानी से नष्ट हो जाती है| 
पत्तलों के नष्ट होने के बाद जो खाद बनती है वो खेती के लिए बहुत लाभदायक होती है| 
पत्तले प्राकतिक रूप से स्वच्छ होती है इसलिए इस पर भोजन करने से हमारे शरीर को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती है| 
अगर हम पत्तलों का अधिक से अधिक उपयोग करेंगे तो गांव के लोगों को रोजगार भी अधिक मिलेगा क्योंकि पेड़ सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रो में ही पाये जाते है| 

अगर पत्तलों की मांग बढ़ेगी तो लोग पेड़ भी ज्यादा लगायेंगे जिससे प्रदूषण कम होगा| 
डिस्पोजल के कारण जो हमारी मिट्टी ,नदियों ,तालाबों में प्रदूषण फैल रहा है ,पत्तल के अधिक उपयोग से वह कम हो जायेगा| 

जो मासूम जानवर इन प्लास्टिक को खाने से बीमार हो जाते है या फिर मर जाते है वे भी सुरक्षित हो जायेंगे ,क्योंकि अगर कोई जानवर पत्तलों को खा भी लेता है तो इससे उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा| 

सबसे बड़ी बात पत्तले ,डिस्पोजल से बहुत सस्ती भी होती है|

ये बदलाव आप और हम ही ला सकते है अपनी संस्कृति को अपनाने से हम छोटे नही हो जाएंगे बल्कि हमे इस बात का गर्व होना चाहिए कि हम हमारी संस्कृति का विश्व मे कोई सानी नही है

लेखक अभय

राष्ट्रीय महासचिव - संकीर्तन समोत्थान समिति मध्यप्रदेश,भारत का बनाया गया। - नीतेंद्र भारत

हार्दिक आभार समिति का मुझें महासचिव का दायित्व देने हेतु। आ० विनोदी जी का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ।

राष्ट्रीय महासचिव
नीतेंद्र सिंह परमार 'भारत'
संकीर्तन समोत्थान समिति
मध्यप्रदेश, भारत

Friday, July 8, 2022

"कितनी बड़ी त्रासदी है न युवावस्था में मोहावस्था से विरक्ति होना!" ~ इति शिवहरे


एक समय होता है जब हमें सब-कुछ चाहिए होता है। हर सपने अपने होते हैं, लेकिन ये समय, कुछ समय के लिए ही होता है, फिर आता है एक 'ठहराव' अनिश्चितकाल के लिए, जहाँ न कुछ पाने की जिद होती है न कामनाएँ। यहाँ तक की मिली हुई चीजों को भी सहेजने में कोई दिलचस्पी नहीं रह जाती। जो कुछ भी हमसे छूट रहा होता है, उसे उतनी ही सहजता के साथ छूटने देते हैं। जाते हुए को रोक नहीं पाते, किसी के साथ ज्यादा जुड़ने का प्रयास नहीं करते, क्योंकि जानते हैं, हम सब जिंदगी की रेल के डिब्बे में बैठे यात्री हैं जो अपना गंतव्य आते ही उतर जाएँगे।

"कितनी बड़ी त्रासदी है न युवावस्था में मोहावस्था से विरक्ति होना!"

~इति शिवहरे

विधा-जीवनी संबंधित रचनाकार ~ ओमप्रकाश फुलारा 'प्रफुल्ल'



विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत के संस्थापक एवं वरिष्ठ साहित्यकार आ. दिलीप कुमार पाठक 'सरस' जी का कोटि कोटि आभार

विधा-जीवनी 
संबंधित रचनाकार ~ ओमप्रकाश फुलारा 'प्रफुल्ल'
दिनांक~ 8/7/2022
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

हिंदी साहित्य के युवा सशक्त हस्ताक्षर ओमप्रकाश फुलारा जी का जन्म उत्तराखंड राज्य के जनपद अल्मोड़ा की एक सुंदर- सी पहाड़ी पर बसे छोटे-से गाँव मयोली में 2 मई सन् 1980 को एक साधारण से भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था | चार सुपुत्रियों को प्राप्त करने के पश्चात जन्मे इस पुत्ररत्न को प्राप्त कर विष्णुदत्त फुलारा और कमलादेवी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा अतः आपका नामकरण संस्कार हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ | आपके पिता सरकारी अस्पताल में लैब-तकनीशियन के पद पर कार्यरत होने के साथ ही साथ बहुत ही सामाजिक व्यक्ति थे,जिसका प्रभाव बालक पर पड़ना स्वाभाविक ही था | वे सप्ताह में एक बार गाँव आते थे तो पूरे गाँव का भ्रमण कर सभी के स्वास्थ्य की जानकारी लेते थे व मल ,मूत्र जाँच के लिए ले जाते थे तथा उचित सलाह व उपचार कराने में सहयोगी बनते थे | परन्तु इस बालक को यह सब देखना नसीब न हुआ | तीन वर्ष की बाल्यावस्था में ही पिता जी की छत्रछाया सिर से उठ गयी | अबोध बच्चे को पिता का प्यार अधिक समय तक न मिल सका |माता कमलादेवी ने कठोर श्रम कर अपने पाँचों बच्चों को पाला- पोसा | 
    आपके पिताजी की मृत्यु के बाद माताजी को 190 रुपया पारिवारिक पेंशन मिलने लगी लेकिन इतने अल्प में 5 बच्चों का भरण पोषण एवं उनकी शिक्षा सम्भव नहीं थी | परन्तु माताजी के श्रम ने  खेतीबाड़ी कर तथा गाय भैंस पालकर घी दूध आदि बेचकर तथा कठिन मेहनत- मजदूरी करके परिवार का पालन पोषण कर इस दुष्कर कार्य को संभव कर दिखाया | बाद में बहनें बड़ी हो गयीं तो उन्होंने भी पढ़ाई के साथ-साथ मेहनत मजदूरी में माताजी का हाथ बँटाना शुरू किया। खेत में काम करते हुए विद्यालय का समय होने पर सभी भाई- बहन खेतों से ही तैयार होकर विद्यालय को जाते थे और विद्यालय से सीधे खेतों में ही आते थे | जहाँ माता जी बच्चों का इंतजार कर रहीं होतीं थीं| इस प्रकार कठिन संघर्षों के बीच सन् 1989 में बालक की प्रारंभिक शिक्षा प्राथमिक विद्यालय बाबन में सम्पन्न हुई |
      इस बालक ने कठिन परिश्रम कर सन् 1996 में इंटरमीडिएट राजकीय इंटर कॉलेज जालली से पूरा किया व उच्च शिक्षा मयोली गाँव की तहसील द्वाराहाट में स्थापित राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय द्वाराहाट से पूरी की | 
    विद्यार्थी जीवन में इस बालक को सदैव गुरुजनों का आशीर्वाद प्राप्त हुआ| प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक आ. रतन सिंह जी का भरपूर सहयोग औऱ आशीर्वाद प्राप्त कर उनके बताए मार्ग पर चलकर यह बालक समस्त बाधाओं को पार करता हुआ हमेशा आगे बढ़ा | आपका परिश्रम ही आपकी पहचान बनता चला गया |इसी बीच बहिनों के विवाह की जिम्मेदारी माताजी के साथ निभाई | 
         मृतक आश्रित के रूप में पिता जी जगह नौकरी के सपने बचपन से ही सबने इस बालक को दिखाए थे | जिसके चलते उच्च शिक्षा पूर्णतः प्रभावित रही। आपके चाचा श्री लीलाधर फुलारा जी का उपकार कभी भुलाया नहीं जा सकता | आपके पिताजी की मृत्यु के बाद उन्होंने ही आगे बढ़ने की प्रेरणा दी और पूरी तरह से मार्गदर्शित किया। पिताजी की जगह पर नौकरी के लिए उन्होंने भरपूर भागदौड़ की पर ईश्वर की इच्छा के आगे किसकी चलती है।वर्ष 2004 में आ. हरीश पाण्डेय जी(जिन्होंने इंटर की कक्षाओं में हमेशा बालक का मार्गदर्शन किया) ने एक विद्यालय खोला और वहाँ अध्यापन का कार्य सौंपा जो पूर्णतः अवैतनिक था | केवल सीखने के उद्देश्य से बालक ने विद्यालय में भरपूर परिश्रम किया | उनका भी यह पहला अनुभव था। 3 साल तक वहाँ अध्यापन कार्य करने के बाद यह साहसी बालक बी. एड के लिए देहरादून चला गया। सन 2007 दिसम्बर में बी एड करके वापस लौटा तो 2 महीने शिशु मंदिर जालली में अध्यापन कार्य किया उसके पश्चात कंट्रीवाइड पब्लिक स्कूल गरुड़ में अध्यापन कार्य का अवसर प्राप्त हुआ। अप्रैल 2008  में गरुड़ आगमन हुआ। उसके बाद राजकीय महाविद्यालय बागेश्वर से हिंदी से पुनः एम.ए. किया। पढ़ाई के दौरान इस बालक के मन पर कबीरदास जी का बहुत प्रभाव पड़ा| जिसने सोचने का नजरिया ही बदल दिया |जितना है उसी में संतोष करना आ गया |परीक्षा के दौरान बालक की मुलाकात गुरुदेव डॉ हेम चंद्र दुबे जी से हुई धीरे-धीरे बातों का सिलसिला शुरू हुआ |जो मुलाकातों में बदलता चला गया | आ. दुबे जी के मृदुल स्वभाव एवं उनकी रचनाओं ने इस बालक को बहुत प्रभावित किया। उनसे ही रचना लिखने की प्रेरणा मिली | उन्हीं के आशीर्वाद से साहित्य के क्षेत्र में पदार्पण किया। प्रसिद्ध साहित्यकार आ. मोहन जोशी जी ने भी इस क्षेत्र में बालक का मार्गदर्शन किया। इन दोनों विद्वतजनों के आशीर्वाद से ही आज साहित्य के क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए आज यह बालक ओमप्रकाश फुलारा 'प्रफुल्ल' नाम से युवा हिंदी साहित्यकारों का सिरमौर बनकर हिंदी साहित्य की श्रीबृद्धि कर रहा है |
        सन् 2011 में आपका विवाह मंजू देवी से हुआ | सुशील पत्नी का साथ मिला तो जीवन में खुशहाली आई | घर परिवार सँभला | दाम्पत्य सुख से परिवार की बृद्धि हुई | सन् 2012 में लक्ष्मी के रूप में पुत्री प्रियांशी का जन्म हुआ और सन् 2014 में प्रियांशु पुत्ररत्न मिला | वर्ष 2014 में स्कूल पत्रिका DAWN का सम्पादन कार्य पहली बार मिला जिसे आपने सफलता पूर्वक सम्पन्न किया |
वर्ष 2019 में आ. भुवन बिष्ट जी द्वारा आपको विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत से जोड़ा गया | जहाँ कई साहित्यकारों का मार्गदर्शन मिला | आपने अपने परिश्रम व स्नेह से इस संस्था में अपनी जगह बनाई |आज विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत के आप राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष व उत्तराखंड इकाई के अध्यक्ष के रूप में अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन कुशलता पूर्वक कर रहे हैं |इस संस्था के माध्यम से आपको छंदगुरु के रूप में आ. शैलेन्द्र खरे सोम जी जैसे अनमोल रत्न प्राप्त हुए व कई अन्य साहित्य साधकों से समन्वय स्थापित कर निरन्तर आप संस्था की शक्ति बन रहे हैं | अब तक आपने हिंदी साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लिखने का काम किया | कई संस्थाओं ने आपको सम्मानित भी किया है | आपकी रचनाएँ कई साझा संकलनों में प्रकाशित हो चुकी हैं | अभी हाल में ही आपने श्रीराम जी के चरित पर आधारित एक नूतन छंदबद्ध खंडकाव्य की रचना भी की है जो शीघ्र प्रकाशित भी होगी | कई विशेषांकों का संपादन आप कर चुके हैं | एक कदम और त्रैमासिक साहित्यिक ई पत्रिका का आप संपादन विगत तीन वर्षों से लगातार करते चले आ रहे हैं | कई विद्यालयों नें, कई अधिकारियों ने व कई संस्थाओं ने आपके कार्य व परिश्रम की सराहना करते हुए आपको सम्मानित किया है |
      आपके कार्य आपकी पहचान बनते जा रहे हैं | वह बालक जो अभावों में जिया, संघर्षों से खेला, पर अपने काम से व परिश्रम से कभी समझौता नहीं किया | हर जगह अपना एक अलग पहचान बनाई | अपना अलग स्थान बनाया | आज वही बालक श्री ओमप्रकाश फुलारा 'प्रफुल्ल' बनकर अध्यापन कार्य के द्वारा समाज की नई पीढ़ी को शिक्षित करने का काम करते हुए साहित्य साधना कर हिन्दी का नवोत्थान करते हुए समाज को जगाने का व राष्ट्र के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है और सभी के हृदय सिंहासन पर राज कर रहा है |

~दिलीप कुमार पाठक 'सरस'

Thursday, July 7, 2022

महारानी अजबदे पंवार

• महारानी अजबदे पंवार •

मेवाड़ के महाराजा महाराणा प्रताप की पत्नी महारानी अजबदे पंवार का जन्म 1542 में महान राव मम्रख पंवार और महारानी हंसा बाई के यहाँ हुआ था। महारानी अजबदे महाराणा प्रताप के लिए महान समर्थक थी। महाराणा प्रताप का यह मानना था की वह महाराणा प्रताप की मां महारानी जयवंताबाई की छाया थी। वह महाराणी अजबदे में हमेशा अपनी मां महारानी जयवंता बाई को देखा करते थे।

संस्कृत भाषा का चमत्कार देखिये

संस्कृत भाषा का चमत्कार देखिये

अहिः = सर्पः
अहिरिपुः = गरुडः
अहिरिपुपतिः = विष्णुः
अहिरिपुपतिकान्ता = लक्ष्मीः
अहिरिपुपतिकान्तातातः = सागरः
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धः = रामः
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ता = सीता
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरः = रावणः
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयः = मेघनादः
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्ता = लक्ष्मणः
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्तृप्राणदाता = हनुमान्
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्तृप्राणदातृध्वजः = अर्जुनः

अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्तृप्राणदातृध्वजसखा = श्रीकृष्णः
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्तृप्राणदातृध्वजसखिसुतः = प्रद्युम्नः
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्तृप्राणदातृध्वजसखिसुतसुतः = अनिरुद्धः


 
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्तृप्राणदातृध्वजसखिसुतसुतकान्ता = उषा
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्तृप्राणदातृध्वजसखिसुतसुतकान्तातातः = बाणासुरः
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्तृप्राणदातृध्वजसखिसुतसुतकान्तातातसम्पूज्यः = शिवः

अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्तृप्राणदातृध्वजसखिसुतसुतकान्तातातसम्पूज्यकान्ता = पार्वती
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्तृप्राणदातृध्वजसखिसुतसुतकान्तातातसम्पूज्यकान्तापिता = हिमालयः

अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्तृप्राणदातृध्वजसखिसुतसुतकान्तातातसम्पूज्यकान्तापितृशिरोवहा = गङ्गा,

सा मां पुनातु इति अन्वयः

है किसी अन्य भाषा में इतना सामर्थ्य..???

जयतु सनातन
सनातन धर्म सर्वश्रेष्ठ है
हर हर महादेव
जय श्रीराम

Wednesday, June 15, 2022

कवि सम्मेलन - जनचेतना परिवार



विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत के तत्वावधान में आयोजित
अखिल भारतीय ऑनलाइन ऑडियो कवि सम्मेलन
स्थान- जय जय काव्य चित्रशाला
दिनांक -15 जून 2022
समय- 8:00 से समापन तक
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प्रतिभाग हेतु ~
रचना कोई भी पर नई
ऑडियो 2से 3 मिनट का ही हो।ऑडियो में अपना नाम अवश्य बताएँ।
ऑडियो रिकार्ड कर अपने पास सुरक्षित रखें ।क्योंकि आपके नाम के क्रम में जब आपको बुलाया जाएगा तभी आपको ऑडियो प्रेषित करना है।
अपना जीवन परिचय व एक स्पष्ट रंगीन फोटो संचालक आ. नीतेन्द्र सिंह परमार जी के नम्बर पर भेजना होगा |👇
+91 81096 43725
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आ. डॉ. शरद श्रीवास्तव जी ~ कार्यक्रम अध्यक्ष
आ. सुशीला धस्माना मुस्कान जी ~ संरक्षक
आ. कौशल कुमार पाण्डेय आस जी ~ विशेष उद्बोधन
मुख्य अतिथि ~ आ० कंचन सिंह परिहार जी
विशिष्ट अतिथि ~ आ० इंजी. हेमंत कुमार जैन जी
अनुशासन प्रमुख ~ आ० मनोज खोलिया जी
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सरस्वती वंदना ~ आ० शैलेन्द्र खरे सोम जी
स्वागत गीत ~ आ० सुशीला धस्माना मुस्कान जी
जनचेतना एंथम- पं. सुमित शर्मा 'पीयूष' जी
कार्यक्रम संचालन:-आ० नीतेंद्र सिंह परमार 'भारत' जी

प्रतिभागीगण:-
1- आ० दिलीप कुमार पाठक 'सरस' जी (8:20)
2- डॉ.शरद श्रीवास्तव 'शरद' जी (8:25)
3- इंजी. हेमंत कुमार जैन जी (8:30)
4- आ० शैलबाला कुमारी जी (8:35)
5- डॉ.राजेश कुमार जैन जी (8:40)
6- आ० आशा जोशी जी (8:45)
7- आ० विभा रंजन सिंह जी (8:50)
8- इं० संतोष कुमार सिंह जी (8:55)
9- डाॅ.आलोक कुमार यादव जी (9:00)
10- डॉ. शुभ्रा माहेश्वरी जी (9:05)
11- आ० एस के कपूर 'श्री हंस' जी (9:10)
12- आ० सुशीला धस्माना 'मुस्कान' जी (9:15)
13- आ० प्रीति शर्मा 'प्रीति' जी (9:20)
14- आ० आशा बुटोला 'सुप्रसन्ना' जी (9:25)
15- आ० भरत धामी जी (9:30)
16- आ० दीप चंद्र पांडेय जी (9:35)
17- आ० दिनेश चंद्र श्रीवास्तव जी (9:40)
18- आ० रामस्वरूप मयूरेश जी (9:45)
19- आ०  नीतेंद्र सिंह परमार 'भारत' जी (9:50)
20- डॉ०सन्तोष कुमार सिंह 'सजल' जी (9:55)
21- गीतांजली वार्ष्णेय 'सूर्यान्जलि' जी (10:00)
22- आ० मन्शा 'शुक्ला' जी (10:05)
23- आ० मनिन्द्र कुमार  'फुर्तीला बनारसी' जी (10:10)
अतिथि कवि -
24- आ० पूनम शुक्ला जी  (10 : 15)
25- आ० अरविंद सोनी 'सार्थक' जी (10:20)

निवेदन
प्रशासक मंडल जय जय हिंदी

Monday, June 13, 2022

स्वर्गीय अरुण पटेरिया जी की स्मृति में आयोजित हुआ कवि सम्मेलन

स्वर्गीय अरुण पटेरिया जी की स्मृति में आयोजित हुआ कवि सम्मेलन

खजुराहो के विद्याधर कॉलोनी में मंनसा माता मंदिर के पास स्वर्गीय श्री अरुण पटेरिया जी की पुण्य स्मृति पर एक कवि सम्मेलन के कार्यक्रम का आयोजन किया गया इस कवि सम्मेलन के आयोजन पूर्व मंच के माध्यम से स्वर्गीय श्री अरुण पटेरिया जी की स्मृति में आयोजित इस कार्यक्रम में प्रमुख रूप से श्री पुष्पेंद्र पटेरिया जी के अलावा स्वर्गीय अरुण पटेरिया जी की धर्मपत्नी श्रीमती राजलक्ष्मी पटेरिया एवं उनके पुत्र सत्यार्थ पटेरिया तथा पुत्री साध्वी पटेरिया के द्वारा चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि व्यक्त की गई , इस अवसर पर उपस्थित सभी लोगों के द्वारा भी पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि व्यक्त की गई एवं दीप प्रज्वलन के पश्चात कवि सम्मेलन का कार्यक्रम प्रारंभ हुआ जो देर रात तक चला जिसमें कभी परम लाल तिवारी, इंद्रजीत दीक्षित, राजीव शुक्ला, नीरज लटोरिया, राम अवतार पाठक, गणेश द्विवेदी, मुन्नीलाल तिवारी ,राघव पाठक, दिलीप जैन, रामसेवक रैकवार तथा अलका जैन ने कविता पाठ किया जबकि कवि सम्मेलन का सफल  संचालन राजू राजा सिंह चौहान के द्वारा किया गया , इस अवसर पर बड़ी संख्या में काव्य रसिक श्रोता गण उपस्थित रहे ।

Sunday, June 12, 2022

UPSI में हुआ चयन - शिवम सिंह परमार


प्रिय भाई शिवम सिंह परमार पिता श्री गुलाब सिंह जी को UPSI में चयनित होने पर हार्दिक शुभकामनाएं। अपनी गहरी लगन और कड़ी मेहनत से एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। 

चुनौती लाख थी लेकिन कभी मुड़कर नहीं देखा।
बढ़ाये नित क़दम आगे कभी मुड़कर नहीं देखा।।
किया रौशन है सबका नाम तुमकों नित बधाई है।
पूर्ण गंतव्य पाया है कभी मुड़कर नहीं देखा।।

नीतेंद्र सिंह परमार
नर्सिंग ऑफिसर
जिला चिकित्सालय छतरपुर
मध्यप्रदेश

Sunday, May 22, 2022

परमार कालीन नीलकंठेश्वर शिव मंदिर


परमार कालीन नीलकंठेश्वर शिव मंदिर: जहां सूर्य की किरण करती है शिवलिंग का अभिषेक.
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विदिशा जिले के उदयपुर में स्थित इस शिवालय में रोज सूर्य की पहली किरण मंदिर के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग पर पड़ती है।
परमार राजा उदयादित्त द्वारा निर्मित प्राचीन एक हजार साल पुराना यह मंदिर अपने पूर्ण संरक्षित नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर के लिए जाना जाता है, जिसे आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया है। मंदिर का वास्तु कुछ इस प्रकार का है कि भोर की पहली किरण वेधशाला, मंडप और गर्भगृह के छोटे से द्वार को चीरती हुई भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग पर पड़ती है।

Sunday, April 17, 2022

निर्मम हत्या - नीतेंद्र भारत

#निर्मम #हत्या/मानव आज दानव

किसको क्या समझाएं भारत,मौन हुआ बस मौन हुआ।
हत्या का आरोपी आखिर,कौन हुआ अब कौन हुआ।।

क्या निर्मम हत्या करने में,शर्म नहीं तुमको आती।
उन संतों खाल सभी से,चीख़ चीख़ कर चिल्लाती।।

बिन मतलब के मार रहें क्यों,कारण मेरा बतलाओ।
मेरी बाते सुनलो मानव,रुक जाओ तुम रुक जाओ।।

डण्डे मत मारो हे मुझकों,सहने लायक पीठ नहीं।
जर्जर मेरी हुई अवस्था,नए महलो की ईंट नहीं।।

राम नाम गुन गाने वाले,हम केवल संन्यासी है।
हे दानव मत मार मुझे तू,हम भी भारतवासी है।।

पहला डंडा सिर में मारा,हम थोड़े सकुचाए थे।
मुझे नहीं मालूम हुआ सच,साथ सभी वो आये थे।।

लाल रक्त की धार जो निकली,याद किया कैलाशी को।
कोरोना के डर से भांगे,याद किया फिर खाँसी को।।

मैंने सीताराम पुकारा,नहीं रुके वो हत्यारे।
मैंने अल्लाह गॉड पुकारा,नहीं रुके फिर भी मारे।।

मैंने सोचा किसी धर्म के,अनुयायी तो होंगे ही।
जातिवाद अगर है जिंदा,जाति वाले होंगे ही।।

धरती माँ की गोद में लेटा,चीखा भी चिल्लाया था।
खड़ा सामने सैनिक देखो,नहीं बचा फिर पाया था।।

मानवता गिरवी रक्खी है,यह मुझकों आभास हुआ।
पहले दानव राक्षस कुल में,अब मानव में बास हुआ।।

हमने किसका बुरा किया था,जो ऐसा दिन आया है।
आज यहाँ भगवाधारी को,बिन कारण मरवाया है।।

गर कुछ लोग बचा लेते तो,माथ कलंक नहीं चढ़ता।
एक को गोली मारी होती,दूजा पैर नहीं बढ़ता।।

एक बहत्तर एक पैतालीस,अपनो से हम हार गये।
क्रुर कुरर्मी मानव दानव,हमको जिंदा मार गये।।

ओम शांति,ओम शांति

नीतेंद्र सिंह परमार "भारत"
छतरपुर मध्यप्रदेश

Thursday, April 14, 2022

सच को सच ही कहेंगे डरेंगे नहीं। - नीतेंद्र भारत

मुक्तक 

सच को सच ही कहेंगे डरेंगे नहीं।
भाव दूषित भी मन में भरेंगे नहीं।।
अब बहुत हो चुका ध्यान देकर सुनों।
मारे बिन शत्रु को हम मरेंगे नहीं।।

नीतेंद्र भारत
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Saturday, April 9, 2022

राष्ट्रीय सचिव बनाया गया - नीतेंद्र परमार



आदरणीय राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय गोपाल सर जी आपके द्वारा और सभी पदाधिकारियों के द्वारा नर्सिंग के क्षेत्र में जो अद्भुत अद्वितीय और अनुकरणीय कार्य नर्सिंग छात्र संगठन कर रहा है वास्तव में वह सराहनीय है अनुकरणीय है देश में प्रदेश में ऐसा कोई संगठन नहीं है जो नर्सिंग की इस अव्यवस्थाओं को सही करवा सकें यदि किसी संगठन का नाम आता है तो वह नर्सिंग छात्र संगठन है जिसमें सभी हमारे सदस्यगण और पर अधिकारी बंधु तन मन धन से निस्वार्थ भाव से सहयोग करते हैं और नर्सिंग के क्षेत्र को बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं इसी तारतम्य में मैं पहले जिला अध्यक्ष रहा फिर आपने मुझे प्रदेश महासचिव का कार्यभार दिया तदोपरांत अब आप मुझे राष्ट्रीय सचिव का कार्यभार सौंप रहे हैं जिसे मैं सहर्ष स्वीकार करता हूं और मेरे द्वारा जितना मुझसे बन सकेगा मैं संगठन के लिए इमानदारी पूर्वक सभी कार्य संपादन करूंगा तथा विस्तार पर भी आपके सहयोग से चर्चा करूंगा और बेहतर से बेहतर करने का प्रयास करूंगा हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं। नीतेंद्र

Thursday, April 7, 2022

राम जी का चाहा काम- नीतेंद्र भारत

जय श्रीराम

मनहरण घनाक्षरी छंद

राम जी का चाहा काम,होता पल भर में ही।
विधि का विधान कोई,कैसे मेट पायेगा।।
राम को पठा के वन, दुखी दशरथ  मन।
नीति औ अनिति का भी,भेद कौन गायेगा।।
हृदय उठी जो पीर,धरता न मन धीर।
बिलख -बिलख तन,किसको सुनायेगा।।
भाग्य में लिखी जो बात,टलती ना टाले कभी।
कर्म की गति से प्रभु ,नाम ही बचायेगा।।

नीतेंद्र सिंह परमार 'भारत'
छतरपुर,मध्यप्रदेश

Saturday, April 2, 2022

श्री राम वनगमन काव्ययात्रा छतरपुर में।

आज दिनांक 1 अप्रैल2022 को श्री राम वनगमन काव्ययात्रा श्रीलंका से अयोध्या की बढ़ रही है इसी तारतम्य में अपने नगर छतरपुर में यह यात्रा बड़ी ही हर्ष उल्लास के साथ निकाली गई जिसमें बाबा सत्यनारायण मौर्य जी आ० जगदीश मित्तल बाबू जी व दिनेश शर्मा जी व श्री हनुमान टौरिया रावतन ट्रस्ट के समस्त कार्यकर्ता व पदाधिकारी बंधु उपस्थित रहे। और काव्य पाठ का आयोजन हुआ। जिसमें नगर के युवा रचनाकारों ने अपने काव्य सुमन श्रीराम जी के चरणों में समर्पित किये। आप सभी का बहुत बहुत आभार।

'कात्यायनी' काव्य संग्रह का हुआ विमोचन। - छतरपुर, मध्यप्रदेश

'कात्यायनी' काव्य संग्रह का हुआ विमोचन।  छतरपुर, मध्यप्रदेश, दिनांक 14-4-2024 को दिन रविवार  कान्हा रेस्टोरेंट में श्रीम...