#महान_क्रांतिकारी_चंद्रशेखर_आजाद_को_सादर_समर्पित
धन्य धरा भारत की हुई थी, जब उसका अवतार हुआ ।
डूब रही थी जो नैया, वह उसका खेवनहार हुआ ।।
बेड़ी डलीं गुलामी की थीं, चारों ओर अंधेरा था ।
लंदन से आ गए फिरंगी, भारत भू को घेरा था ।।
कांधे पर जिसके जनेऊ, जयमाल भाँति लहराता था ।
देख फिरंगी ज़ुल्मों को वह, बबर शेर बन जाता था ।।
आशा की जो किरण बना था, वह अनमोल नगीना था ।
कमर में पिस्टल हरदम रहती, छप्पन इंची सीना था ।।
चाल निराली मतवाली थी, स्वाभिमान था मूछों में ।
हिन्दुस्तानी होने का, अभिमान भरा था मूछों में ।।
हृदय देश के मध्य प्रदेश की, गाँव भाभरा माटी में ।
बचपन बीता था संघर्षों, वाली उस परिपाटी में ।।
खेल खेल में उस बालक ने, बाण चलाना सीख लिया ।
गोरों की गर्दन रखकर, पिस्तौल चलाना सीख लिया ।।
बाल्यकाल में उसने यारो, रौद्र रूप दिखलाया था ।
खुली बग़ावत अंग्रेजों से, केसरिया लहराया था ।।
अत्याचारी अंग्रेजों का, खौफ नहीं था शेखर में ।
भारत माँ के घावों का प्रति, शोध भरा था शेखर में ।।
नर संहार किया गोरों ने, जलियाँ वाले बाग में ।
भड़की ज्वाला थी भारत में, कूद पड़ा था आग में ।।
संतावन वाली आग अभी तक, धधक रही थी सीने में ।
लक्ष्य एक था बस आजादी, मरने में या जीने में ।।
गाँधी जी के आंदोलन में, आगे बढ़कर भाग लिया ।
नाम देश के लिखी जवानी, मात-पिता को त्याग दिया ।।
पंद्रह वर्ष की आयु में वह, गिरफ्तार हो जाते हैं ।
हैरान सभी रह जाते हैं जब, न्यायालय में आते हैं ।।
न्यायाधीश हुकुम देता है, नाम पता बतला देना ।
आज़ाद लाल स्वाधीन पिता का, पता जेल लिखवा लेना ।।
नग्न बदन पर पड़े बेंत, ना संयम उसका डोला था ।
कतरा कतरा लाल लहू, जय भारत माँ की बोला था ।।
ऐसे चंद्रशेखर को यारो, आओ सभी सलाम करें ।
जान लुटाई जिनने हम पर, उनका हम गुणगान करें ।।
गोरों की हिंसा के बदले, मार्ग अहिंसक बौने थे ।
भारत माँ का मन व्याकुल था, घायल कोने कोने थे ।।
लाला जी पर पड़ी लाठियाँ, दृश्य नहीं वह भूला था ।
तोड़ दिया व्रत सत्य अहिंसा, क्रांति मार्ग कबूला था ।।
सपना सुखद संजोया था तब, भारत के हर वासी ने ।
राह दिखाई अंधों को थी, गाँव भाभरा वासी ने ।।
आजादी पाने का उसने, मार्ग नया दिखलाया था ।
एक गाल के बदले दूजा, गाल नहीं सिखलाया था ।।
मार भगाने अंग्रेजों को, बिस्मिल के संग जाते हैं ।
काकोरी में रेल रोक, हथियार उड़ा ले आते हैं ।।
खुली चुनौती अंग्रेजों को, बेटा हिम्मत वाला था ।
थर-थर कँपते थे शेखर से, जिनका भी दिल काला था ।।
वेष बदलने में माहिर थे, और अचूक निशाना था ।
नगर ओरछा के जंगल में, वर्षों रहा ठिकाना था ।।
गाँव-गाँव में घूम-घूम कर, क्रांतिवीर तैयार किये ।
आजादी की अलख जगाई , लड़ने को हथियार दिये ।।
भारत का हर बच्चा बच्चा, शेखर का दीवाना था ।
सर्वस्व समर्पण किया देश पर, ऐसा वह परवाना था ।।
चढ़ा बसंती रंग वीर पर, इंकलाब की बोली थी ।
बनी टोलियाँ मस्तानों की, खेली खून से होली थी ।।
लाला की हत्या का बदला, लेना था उस दौर में ।
शेर पंजाबी भगत सिंह संग, जा पहुँचे लाहौर में ।।
साण्डर्स के काल बने थे, भून दिया था गोली से ।
सिंहासन हिल गया फिरंगी, इंकलाब की बोली से ।।
पूरे भारत को उकसाने, काम नया कुछ करना था ।
ब्रिटिश हुकूमत की आँखों में, उनको जिंदा रहना था ।।
फेंकेंगे बम असेम्बली में, शेखर ने ऐलान किया ।
भगत सिंह और बटुकेश्वर ने, भलीभाँति अंजाम दिया ।।
सुखदेव भगत व राजगुरु की, फाँसी का फरमान हुआ ।
रंग दे बसंती चोला मेरा, भारत में जय गान हुआ ।।
आज़ाद ने फाँसी रुकवाने को, पूरा जोर लगाया था ।
दुर्गा भाभी से संदेशा, बापू तक पहुँचाया था ।।
गांधी जी गर एक पत्र ही, इरविन को तब लिख देते ।
फाँसी भी रुक सकती थी, और मन भी मैले ना होते ।।
भगत सिंह को रिहा कराने, चाचा के घर आये थे ।
अल्फ़्रेड पार्क को रणनीति का, अपना केन्द्र बनाये थे ।।
किन्तु विभीषण जयचंदों ने, भेद खोलकर दगा किया ।
भारत माँ का शेर पार्क में, अंग्रेजों को बता दिया ।।
अंग्रेजी अफ़सर बाबर ने, आकर उनको घेरा था ।
गोलीं बरसीं अंधाधुंध, आज़ाद ने मुँह ना फेरा था ।।
मृत्यु खड़ी थी गले लगाने, हिम्मत ना वे हारे थे ।
पेड़ को ढाल बनाकर गोरे, मौत के घाट उतारे थे ।।
भारत माँ के चरणों की, सौगन्ध लाल ने खाई थी ।
अपनी पिस्टल से गोरों कीं, लाशें वहाँ बिछाईं थीं ।।
अंतिम गोली पिस्टल में, शेखर की यारो बचती है ।
मातृभूमि पर मर मिटने की, नई इबारत लिखती है ।।
भरत भूमि की चंदन रज का, टीका भाल लगाता है ।
कनपट्टी पर पिस्टल रखके, ट्रिगर लाल दबाता है ।।
हाँथ नहीं आया गोरों के , प्राणों का बलिदान दिया ।
भारत माता की गोदी में, शेखर ने विश्राम किया ।।
वचन दिया था माता को जो, अंतिम क्षण तक याद रहा ।
चंद्रशेखर आज़ाद हमारा, जीवन भर आजाद रहा ।।
चंद्रशेखर से वीर धरा पर, रोज जन्म ना पाते हैं ।
इतिहासों के स्वर्ण पृष्ठ पर, नाम अमर कर जाते हैं ।।
चंद्र शेखर आजादों से हम, अपना हिन्दुस्तान भरें ।
जान लुटाई जिनने हम पर, उनका हम गुणगान करें ।।
✍️ जीतेन्द्र यादव जीत