Monday, May 25, 2020

गीत

◆गीत◆

[16,14,मात्राएँ,अन्त मगण,
ताटंक छन्द पर आधारित]


धन्य धन्य है भारत माता,
                   नित नित शीश झुकाता हूँ
मेवाड़ी माटी की महिमा,
                       सुनिये आज सुनाता हूँ......
                    1-
महाराणा जी परम सुभट थे,
               तन-मन जोश समाया था।
सुनकर साहस की गाथाएँ, 
               सारा जग चकराया था।।
जनमानस की बात कहूँ क्या,
                       पंछी गाथा गाते हैं।
दुश्मन के वंशज अब तक भी,
                    सुन-सुन के थर्राते हैं।।
गूँजे गली-गली में जो वो,
                           गौरव गाथा गाता हूँ......
                     2-  
छिपे-छिपे रहते सब दुश्मन,
                      ढूँढ़-ढूँढ़ के मारे थे।
रण में कितने ही मुगलों के,
                  धड़ से शीश उतारे थे।।          
लेकर जब भी भाला रण में,
                  राणा जी आ जाते थे।
पर्वत भी थर्रा जाते तब ,
             सब दुश्मन भय खाते थे।।
समझ पड़े तो समझ लीजिये,
                     आज यही समझाता हूँ.....
                    3-
मुगल सल्तनत की दीवारें,
                   हिलतीं थीं हुंकारों से।
अगर बात दुश्मन से होती,
                  तो भाला  के वारों से।।
कुछ ऐसा ही तो जादू है,
                     इस मेवाड़ी पानी में।
आँख उठाकर देख न लेना,
                     कोई भी नादानी में।।
जन्म मिला इस पुण्य धरा पर,
                      "सोम" सदा इतराता हूँ......

                         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

Friday, May 22, 2020

अनुस्वार और अनुनासिका में अंतर

*अनुस्वार और अनुनासिका में अंतर* -----

1- अनुनासिका स्वर है जबकि अनुस्वार मूलत: व्यंजन।
2- अनुनासिका (चंद्रबिंदु) को परिवर्तित नहीं किया जा सकता, जबकि अनुस्वार को वर्ण में बदला जा सकता है।.
3- अनुनासिका का प्रयोग केवल उन शब्दों में ही किया जा सकता है जिनकी मात्राएँ शिरोरेखा से ऊपर न लगीं हों। जैसे अ , आ , उ ऊ ,
उदाहरण के रूप में --- हँस , चाँद , पूँछ

4. शिरोरेखा से ऊपर लगी मात्राओं वाले शब्दों में अनुनासिका के स्थान पर अनुस्वार अर्थात बिंदु का प्रयोग ही होता है. जैसे ---- गोंद , कोंपल, जबकि अनुस्वार हर तरह की मात्राओं वाले शब्दों पर लगाया जा सकता है.

जब अनुस्वार को व्यंजन मानते हैं तो इसे वर्ण में किन नियमों के अंतर्गत परिवर्तित किया जाता है....इसके लिए सबसे पहले हमें सभी व्यंजनों को वर्गानुसार जानना होगा.......।

(क वर्ग ) क , ख ,ग ,घ ,ड.
(च वर्ग ) च , छ, ज ,झ , ञ
(ट वर्ग ) ट , ठ , ड ,ढ ण
(त वर्ग) त ,थ ,द , ध ,न
(प वर्ग ) प , फ ,ब , भ म
य , र .ल .व
श , ष , स ,ह

यहाँ अनुस्वार को वर्ण में बदलने का नियम है कि जिस अक्षर के ऊपर अनुस्वार लगा है उससे अगला अक्षर देखें ....जैसे गंगा ...इसमें अनुस्वार से अगला अक्षर गा है...ये ग वर्ण क वर्ग में आता है इसलिए यहाँ अनुस्वार क वर्ग के पंचमाक्षर अर्थात  *ङ*  में बदला  जायेगा.. ये उदाहरण हिंदी टाइपिंग में प्रायः नहीं आ रहा है...दूसरा शब्द लेते हैं. जैसे कंबल –
यहाँ अनुस्वार के बाद ब अक्षर है जो प वर्ग का है ..ब वर्ग का पंचमाक्षर म है इसलिए ये अनुस्वार म वर्ण में बदला जाता है
कंबल..... कम्बल
झंडा ..---- झण्डा
मंजूषा --- मञ्जूषा
धंधा --- धन्धा
छंद -----छन्द
बंद----बन्द         
मंद-----मन्द

Thursday, May 21, 2020

मात्रा ज्ञान

सभी मित्र, जिन्हें मात्राओं का ज्ञान प्राप्त करना हो, यह जानने के लिये यह लेख पढ़ सकते हैं, कोई शंका होने पर प्रश्न पूछ सकते हैं। 

मात्राभार की गणना

छन्दबद्ध रचना के लिये मात्राभार की गणना का ज्ञान आवश्यक है। मात्राभार दो प्रकार का होता है – वर्णिक भार और वाचिक भार। वर्णिक भार में प्रत्येक वर्ण का भार अलग-अलग यथावत लिया जाता है जैसे – विकल का वर्णिक भार = 111 या ललल जबकि वाचिक भार में उच्चारण के अनुरूप वर्णों को मिलाकर भार की गणना की जाती है जैसे विकल का उच्चारण वि कल है, विक ल नहीं, इसलिए विकल का वाचिक भार है – 12 या लगा। वर्णिक भार की गणना करने के लिए कुछ निश्चित नियम हैं। 

वर्णिक भार की गणना 

(1) ह्रस्व स्वरों की मात्रा 1 होती है जिसे लघु कहते हैं, जैसे - अ, इ, उ, ऋ की मात्रा 1 है। लघु को 1 या । या ल से भी व्यक्त किया जाता है। 

(2) दीर्घ स्वरों की मात्रा 2 होती है जिसे गुरु कहते हैं,जैसे - आ, ई, ऊ, ए,ऐ,ओ,औ की मात्रा 2 है। गुरु को 2 या S या गा से भी व्यक्त किया जाता है। 

(3) व्यंजनों की मात्रा 1/ल होती है , जैसे - क,ख,ग,घ / च,छ,ज,झ / ट,ठ,ड,ढ,ण / त,थ,द,ध,न / प,फ,ब,भ,म / य,र,ल,व,श,ष,स,ह। 
वास्तव में व्यंजन का उच्चारण स्वर के साथ ही संभव है, इसलिए उसी रूप में यहाँ लिखा गया है। अन्यथा क्, ख्, ग् … आदि को व्यंजन कहते हैं, इनमें अकार मिलाने से क, ख, ग ... आदि बनते हैं जो उच्चारण योग्य होते हैं। 

(4) व्यंजन में ह्रस्व इ, उ, ऋ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार 1/ल ही रहता है। 

(5) व्यंजन में दीर्घ स्वर आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार 2/गा हो जाता है। 

(6) किसी भी वर्ण में अनुनासिक लगने से मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है, जैसे – रँग = 11, चाँद = 21, माँ = 2, आँगन = 211, गाँव = 21

(7) लघु वर्ण के ऊपर अनुस्वार लगने से उसका मात्राभार 2 हो जाता है, जैसे – रंग = 21, अंक = 21, कंचन = 211, घंटा = 22, पतंगा = 122 

(8) गुरु वर्ण पर अनुस्वार लगने से उसके मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है, जैसे – नहीं = 12, भींच = 21, छींक = 21,
कुछ विद्वान इसे अनुनासिक मानते हैं लेकिन मात्राभार यही मानते हैं। 

(9) संयुक्ताक्षर का मात्राभार 1 (लघु) होता है, जैसे – स्वर = 11, प्रभा = 12, श्रम = 11, च्यवन = 111

(10) संयुक्ताक्षर में ह्रस्व मात्रा लगने से उसका मात्राभार 1 (लघु) ही रहता है, जैसे – प्रिया = 12, क्रिया = 12, द्रुम = 11, च्युत = 11, श्रुति = 11 

(11) संयुक्ताक्षर में दीर्घ मात्रा लगने से उसका मात्राभार 2 (गुरु) हो जाता है, जैसे – भ्राता = 22, श्याम = 21, स्नेह = 21, स्त्री = 2, स्थान = 21

(12) संयुक्ताक्षर से पहले वाले लघु वर्ण का मात्राभार 2 (गुरु) हो जाता है, जैसे – नम्र = 21, सत्य = 21, विख्यात = 221 

(13) संयुक्ताक्षर के पहले वाले गुरु वर्ण के मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है, जैसे – हास्य = 21, आत्मा = 22, सौम्या = 22, शाश्वत = 211, भास्कर = 211 

(14) संयुक्ताक्षर सम्बन्धी नियम (12) के कुछ अपवाद भी हैं, जिसका आधार पारंपरिक उच्चारण है, अशुद्ध उच्चारण नहीं। 

जैसे – तुम्हें = 12, तुम्हारा/तुम्हारी/तुम्हारे = 122, जिन्हें = 12, जिन्होंने = 122, कुम्हार = 121, कन्हैया = 122, मल्हार = 121, कुल्हाड़ी = 122 
व्याख्या – इन अपवादों में संयुक्ताक्षर का पूर्ववर्ती अक्षर सदैव ऐसा व्यंजन होता है जिसका ‘ह’ के साथ योग करके कोई नया अक्षर हिन्दी वर्ण माला में नहीं बनाया गया है, इसलिए जब इस पूर्ववर्ती व्यंजन का ‘ह’ के साथ योग कर कोई संयुक्ताक्षर बनता हैं तो उसका व्यवहार संयुक्ताक्षर जैसा न होकर एक नए वर्ण जैसा हो जाता है और इसीलिए उसपर संयुक्ताक्षर के नियम लागू नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए न् म् ल् का ‘ह’ के साथ योग करने से बनने वाले संयुक्ताक्षर म्ह न्ह ल्ह ‘एक वर्ण’ जैसा व्यवहार करते है जिससे उनके पहले आने वाले लघु का भार 2 नहीं होता अपितु 1 ही रहता है। यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि हिन्दी वर्णमाला के कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग और पवर्ग में पहले व्यंजन में ‘ह’ का योग करने से दूसरा व्यंजन तथा तीसरे व्यंजन में ‘ह’ का योग करने से चौथा व्यंजन बनता है। उदाहरणार्थ - 
क् + ह = ख , ग् + ह = घ 
च् + ह = छ , ज् + ह = झ 
ट् + ह = ठ , ड् + ह = ढ 
त् + ह = थ , द् + ह = ध 
प् + ह = फ , ब् + ह = भ किन्तु - 
न् + ह = न्ह , म् + ह = म्ह , ल् + ह = ल्ह (कोई नया वर्ण नहीं, तथापि व्यवहार नए वर्ण जैसा) 

कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं जिनपर उपर्युक्त व्याख्या लागू नहीं होती है, जैसे नन्हा = 22, कुल्हड़ = 211, अल्हड़ = 211 आदि।

Saturday, May 16, 2020

गीत :- सोम

*गीत*

सीमा से एक सैनिक की पाती

शिल्प- 16,14 मात्राएँ प्रति पंक्ति।


दशा देखकर भारत माँ की,
                        उर अंतर में आग जले
प्रिये तुम्हारी खातिर कैसे,
                      इस दिल में अनुराग पले....

मात-तात को शत-शत वंदन, 
                  सुत को आशीर्वाद प्रिये।
तुमको बस जय हिंद लिखूँ मैं, 
                 हरदम रखना याद प्रिये।।
लिखूँ प्यार की बातें क्या जब,
                 माँ पर पड़ी मुशीबत हो।
हो सकता है प्रिये तुम्हारे, 
             नाम  यही  अंतिम ख़त हो।।
रिपु शोणित से हम सब सैनिक,
                        आज खेलने फाग चले....
           
लिपटा हुआ तिरंगे में शव,
                      गर मेरा पा जाओगी।
तुम्हें कसम है भारत माँ की,
                    आँसू नहीं बहाओगी।।
अपना पुत्र बड़ा जब हो तो,
                     फौजी उसे बना देना।
इस मिट्टी का तिलक लगाकर, 
                      वर्दी भी पहना देना।।
सैनिक की वर्दी पर केवल,
                        लगें लहू के दाग भले....

जाति धर्म पे धरती बाँटी,
                  कुछ अपने ही बन्दों ने।
गहरे घाव दिये सीने में,
              मिलकर इन जयचन्दों ने।।
जीते जी हम धरती माँ को,
                      कष्ट नहीं सहने देंगे।
किसी दुष्ट पापी को जिंदा,
                   "सोम" नहीं रहने देंगे।।
परवाने हम जियें मरेंगे,
                     अपने इसी चिराग तले...

                           ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

Saturday, May 2, 2020

लोगो प्रतियोगिता:- जनचेतना

विशेष सूचना
🌷लोगो प्रतियोगिता🌷 ~
चित्रशाला समूह हेतु एक आकर्षक लोगो का निर्माण कर अब 30 मई 2020 तक भेज सकते हैं |

श्रेष्ठ लोगो निर्माण हेतु 101 ₹ की धनराशि के साथ सम्मान पत्र प्रदान किया जायेगा |

अन्य सभी प्रतिभागी साथियों को *प्रतिभाग अलंकरण पत्र* देकर सम्मानित किया जायेगा |

*लोगो !आकर्षक ,मौलिक व नवीन हो|*

लोगो बनाकर चित्रशाला में ही पोस्ट किया जाएगा |

अधिक जानकारी के लिए निःसंकोच सम्पर्क करें ~

प्रतियोगिता प्रमुख~
पं. सुमित शर्मा पीयूष 
अध्यक्ष -विहार
विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत

गीतिका :- डॉ शेषपालसिंह 'शेष'

🍏🌷   हिंदुस्तान में   🌷🍏
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                         [ गीतिका ]

निरत  ही  रहना  निरंतर,  नवल  अनुसंधान   में।
सँभलकर  चलना, खड़े  हैं, युद्ध  के   मैदान  में।

कौन हारा,कौन विजयी,विगत में क्या-क्या हुआ?
पंथ  अनुपम  ग्रहण करना,व्यस्त हैं अभियान में।

कोश बुद्धि-विवेक  विस्तृत, बहुत  अपने  पास है,
मात खाता  विषभरा  जो, डूबकर  अभिमान  में।

विघ्न - बाधाएँ   नहीं   हैं,  फैसले   लेकर   चलें,
जिंदगी   हीरे   भरी  है,  स्वर्णपथ   आसान   में।

लोभ-लालच   घट  हमेशा, फोड़   देना   चाहिए,
मधुर फल श्रम से मिलेगा, क्यों पड़ें व्यवधान में।

सूक्ष्मतम  पर  दृष्टि  डालें, चक्षुओं  में  शक्ति  है,
फूँककर हर कदम रखना, तोड़  भ्रम  संज्ञान में।

विश्व  में  संघर्ष  अगणित, शांति  से  हैं  दूरियाँ,
पा  लिया  सर्वस्व  हमने, जन्म   हिंदुस्तान  में।

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 ● डॉ शेषपालसिंह 'शेष'
      'वाग्धाम'-11डी/ई-36डी,
      बालाजीनगर कालोनी,
      टुण्डला रोड,आगरा-282006
      मोबाइल नं0 -- 9411839862

🍏🌷🍀🌹🌲🌹🍀🌷🍏

कुंडलिया छंद:- डॉ शेषपालसिंह 'शेष'

🍎🌳   कुंडलिया छंद  🌳🍎
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  दौड़ - लेखनी  तीव्र  है, लिखे  सार - भंडार।
  शिक्षित-जन रखते कलम,लिखने को तैयार।
  लिखने को  तैयार, मनीषी  झट लिख लेता।
  करता   नूतन  खोज, आदमी  ग्रंथ  सृजेता।
  हो जाती लिपिबद्ध, यथावत् करनी-कथनी।
  अंकित होते तथ्य,अजब  है  दौड़ - लेखनी।

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  स्याही, कलम, दवात  ने, रचकर  वेद-पुराण।
  ज्ञान-सिंधु,विज्ञान लिख,किया विश्वकल्याण।
  किया विश्व कल्याण, दिमागी  शक्ति बढ़ायी।
  लिखा चिकित्साशास्त्र,राह आरोग्य दिखायी।
  ऋषि - विज्ञों  के  शोध, हमें  करते  उत्साही।
  सदा लेखनी सफल, काम  आयी  है  स्याही।

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  कूची,कागज, लेखनी, शिक्षा का आधार।
  तख्ती, खड़िया, रंग से, भरा  रहा  संसार।
  भरा रहा संसार, पठन  कीमती  कला  है।
  संविधान-विज्ञान,कलम से  न्याय चला है।
  कलमकार हैं धन्य, ज्ञान  की बनती सूची।
  अत्यावश्क साध्य, लेखनी, कागज,कूची।

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    ● डॉ शेषपालसिंह 'शेष'
      'वाग्धाम'- 11डी/ई-36डी,
      बालाजीनगर कालोनी, 
      टुण्डला रोड,आगरा-282006
      मोबाइल नं0 -- 9411839862

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प्रयागराज संगम की पावन नगरी में साहित्यिक क्षेत्र में सुप्रसिद्ध संगठन "विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत" का छठवाॅं वार्षिकोत्सव मनाया गया।

दिनांक 30/11/2024 को प्रयागराज संगम की पावन नगरी में साहित्यिक क्षेत्र में सुप्रसिद्ध संगठन "विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत" का छठवाॅं ...