Saturday, May 16, 2020

गीत :- सोम

*गीत*

सीमा से एक सैनिक की पाती

शिल्प- 16,14 मात्राएँ प्रति पंक्ति।


दशा देखकर भारत माँ की,
                        उर अंतर में आग जले
प्रिये तुम्हारी खातिर कैसे,
                      इस दिल में अनुराग पले....

मात-तात को शत-शत वंदन, 
                  सुत को आशीर्वाद प्रिये।
तुमको बस जय हिंद लिखूँ मैं, 
                 हरदम रखना याद प्रिये।।
लिखूँ प्यार की बातें क्या जब,
                 माँ पर पड़ी मुशीबत हो।
हो सकता है प्रिये तुम्हारे, 
             नाम  यही  अंतिम ख़त हो।।
रिपु शोणित से हम सब सैनिक,
                        आज खेलने फाग चले....
           
लिपटा हुआ तिरंगे में शव,
                      गर मेरा पा जाओगी।
तुम्हें कसम है भारत माँ की,
                    आँसू नहीं बहाओगी।।
अपना पुत्र बड़ा जब हो तो,
                     फौजी उसे बना देना।
इस मिट्टी का तिलक लगाकर, 
                      वर्दी भी पहना देना।।
सैनिक की वर्दी पर केवल,
                        लगें लहू के दाग भले....

जाति धर्म पे धरती बाँटी,
                  कुछ अपने ही बन्दों ने।
गहरे घाव दिये सीने में,
              मिलकर इन जयचन्दों ने।।
जीते जी हम धरती माँ को,
                      कष्ट नहीं सहने देंगे।
किसी दुष्ट पापी को जिंदा,
                   "सोम" नहीं रहने देंगे।।
परवाने हम जियें मरेंगे,
                     अपने इसी चिराग तले...

                           ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

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