Saturday, September 10, 2022

"पितॄणामर्यमा चास्मि" - अजय मोहन तिवारी



शास्त्रों में चन्द्रमा के ऊपर एक अन्य लोक को पितृ लोक कहा गया है और पितृगणों को देवताओं के समान पूजनीय बताया गया है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं को पितृओं में अर्यमा नामक पितृ बताया है; "पितॄणामर्यमा चास्मि"
हिन्दू मान्यताओं में पितृ पक्ष को विशेष स्थान दिया गया है। भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा से आश्विन मास के कृष्णपक्ष की अमावस्या(पितृमोक्ष अमावस्या) तक की कालावधि पितृपक्ष कहलाती है। पितृपक्ष में पूर्वजों का श्रद्धापूर्वक स्मरण करके उनका श्राद्ध कर्म किया जाता है। श्राद्ध कर्म पितृओं की शांति, मुक्ति के साथ-साथ उनके प्रति अपना सम्मान एवं कृतज्ञता प्रकट करने के लिए किये जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष में पितृओं का श्राद्ध करने से न केवल उनकी कृपा प्राप्त होती है, बल्कि हर प्रकार की बाधाओं से मुक्ति भी मिलती है। श्राद्धकर्म में मातृकुल और पितृकुल दोनों शामिल होते हैं।
अब आते हैं उस बात पर जो साझा करने के उद्देश्य से मैंने ये सब लिखा या लिख रहा हूँ.. दरअसल कल अर्थात दिनाँक 10.09.22 को भाद्रपद मास की पूर्णिमा से पितृ पक्ष की शुरुआत थी तो एक सामान्य सनातनी परिवार की तरह मेरे घर में भी पितृओं के प्रति सम्मान प्रकट करने हेतु श्राद्ध कर्म किया गया और मेरी माँ ने प्रचलित मान्यता के अनुसार मुझसे पितृओं के लिए भोजन(खीर-पूड़ी) का कुछ भाग ऊपर छत में रख आने के लिए कहा। यहाँ तक तो यह एक सामान्य बात है, लेकिन जैसे ही मैं वह भोज्य सामग्री लेकर छत पर पहुँचा तो मैं अचंभित रह गया। कौआ जो सनातन धार्मिक मान्यता के अनुसार पितृओं का प्रतीक माना गया है और लगभग लुप्तप्राय हो चुके हैं, मेरे छत पर पहुँचने के पहले ही वहाँ पर कुछ कौए बैठे हुए थे मानों मेरी प्रतीक्षा कर रहे हों, इतना ही नहीं कुछ ही क्षणों में न जाने कहाँ से वहाँ पर और भी बहुत से कौए आ गए और जैसे कि उन्हें पहले से ही सब कुछ भलीभाँति ज्ञात हो, वे उड़ते हुए आते और भोज्य सामग्री जो मैंने छत की पट्टी पर अलग अलग स्थान पर रखी थी, उसे खाते अथवा अपनी चोंच में दबाकर उड़ जाते। यह क्रम लगभग 10 से 15 मिनट तक चलता रहा। मैं यह दृश्य देखकर रोमांचित हो उठा और मैंने अपने मोबाइल कैमरा से कुछ फोटोग्राफ्स खींच लिए। अंततः मैं यही कहना चाहूँगा कि पितृ पक्ष अथवा श्राद्ध कर्म मात्र कपोल कल्पना अथवा कोरी धार्मिक मान्यता नहीं बल्कि कुछ ऐसा है जिसकी व्याख्या का सामर्थ्य फिलहाल वर्तमान भौतिक विज्ञान पास नहीं है। ॐ पितृ दैवतायै नम: 🙏🙏
 

                                            - अजय मोहन तिवारी

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