एक ग़ज़ल कहने की कोशिश की है,
वो कही मुझको यूं आती जाती मिले
मेरी नजरो से नज़रे चुराती मिले
ये तो मुमकिन नहीं, पर तमन्ना है ये
अपनी नजरो से मुझको बुलाती मिले
लिख दिया मैने जो हालेदिल वर्क पर
वो उसे यूं ही बस गुनगुनाती मिले
वो कही मंदिरों में मेरे नाम का
दीप ऐसे यूं ही फिर जलती मिले
मुख्तलिफ रास्ते हो गए है मगर
मेरे सुर से वो सुर को मिलती मिले
खैरियत पूंछ ले,उससे मेरी कोई
वो मेरे नाम पे फिर लजाती मिले
,अल्तमश, तेरे दिल से ये आती सदा
वो किसी मोड़ पर मुस्कुराती मिले
जुबैर ,अल्तमश,
छतरपुर मध्यप्रदेश
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