*◆लयग्राही छंद◆*
विधान-
तगण तगण तगण गुरु गुरु
(221 221 221 2 2)
4चरण,दो-दो चरण समतुकांत।
हे रामराजा मुझे तार दीजै।
मैं दास हूँ नाथ स्वीकार कीजै।।
सत्कार सेवा नहीं जानता हूँ।
सर्वस्य आपै सदा मानता हूँ।।
~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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