एक समय होता है जब हमें सब-कुछ चाहिए होता है। हर सपने अपने होते हैं, लेकिन ये समय, कुछ समय के लिए ही होता है, फिर आता है एक 'ठहराव' अनिश्चितकाल के लिए, जहाँ न कुछ पाने की जिद होती है न कामनाएँ। यहाँ तक की मिली हुई चीजों को भी सहेजने में कोई दिलचस्पी नहीं रह जाती। जो कुछ भी हमसे छूट रहा होता है, उसे उतनी ही सहजता के साथ छूटने देते हैं। जाते हुए को रोक नहीं पाते, किसी के साथ ज्यादा जुड़ने का प्रयास नहीं करते, क्योंकि जानते हैं, हम सब जिंदगी की रेल के डिब्बे में बैठे यात्री हैं जो अपना गंतव्य आते ही उतर जाएँगे।
"कितनी बड़ी त्रासदी है न युवावस्था में मोहावस्था से विरक्ति होना!"
~इति शिवहरे
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