विधा -संस्मरण
विषय- पश्चात्ताप
निशा बहुत ही सुलझी हुई लड़की थी। उसकी आदर्शवादी विचारधारा के सभी प्रसंशक थे।सेवा भाव तो उसमें कूट-कूट कर भरा था। शादी के बाद ससुराल में भी उसने सभी के ह्रदय को जीत लिया था। सभी उससे बहुत प्यार करते थे।
ससुर की मृत्यु के बाद उसकी सास निशा के साथ ही रहने लगीं। वह भी अपनी माँ जी का बहुत ध्यान रखती थी। माँ जी के खाने-पीने नहलाने व कपड़े धोने का भी बहुत ध्यान रखती थी। कुछ वर्षों बाद माँ जी की भी तबियत बिगड़ने लगी। लाख कोशिशों के बाद भी माँ जी को स्वास्थ्य लाभ न मिला। दिन-रात स्वास्थ्य बिगड़ता ही जा रहा था। मानसिक स्थिति भी बिगड़ने लगी थी। निशा एक शिक्षिका थी उसने कई दिनों से अवकाश ले रखा था।दिन-रात माँ जी की सेवा में गुजार रही थी। अचानक एक रात माँ जी को रात में बुखार आ गया। जब निशा ने देखा तो रात्रि के तीन बजे रहे थे। उसने अपने पति को जगाया तो पति भी घबरा गए और दवा देने को कहा। ढूँढने पर दवा भी घर में न मिली फिर ठण्डे पानी की पट्टी रखती रही व हाथ पैर भी धोती रही। बुखार थोड़ा कम हुआ तब तक सुबह के पाँच बजे चुके थे। निशा ने जल्दी-जल्दी से फिर काम किया और माँ जी को भी नित्य कर्म से निवृत कराकर खुद भी तैयार हुई आज विद्यालय में कुछ आवश्यक सूचना जमा करनी थीं।माँ जी से विद्यालय जाने के लिये अनुमति मांगी, *"मम्मी मैं विद्यालय चली जाऊँ दो घंटे में वापस आ जाऊँगी।"* माँ जी ने एक बार के लिए भी मना नहीं किया और सिर हिलाकर अनुमति दे दी।विद्यालय पहुँचते ही उसके पति का फोन पहुँच गया कि जल्दी आ जाओ मम्मी की तबियत और बिगड़ गई हैं। वह तुरंत ही दूसरे शिक्षक के साथ चल दी। घर आई तब तक माँ जी गोलोक को सिधार चुकी थीं। उसके सब्र का बाँध टूट गया और मैं वहीं जड़ की भाँति स्थिर हो गई। बार-बार यही पश्चात्ताप हो रहा था कि काश मैं न जाती । बता दूं कि निशा कोई और नहीं मैं ही थी। यह अफसोस मुझे जीवन भर रहेगा।
मुनीशा यादव
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