नमस्कार मित्रो
आज आपका फिर स्वागत है हमारे पूर्व निर्धारित विषय "वर्तमान साहित्य एवम साहित्यकार" में आइये आज फिर मिलते हैं एक और कवि से | मित्रो आज मैंने उस साहित्यकार को चुना है जिसके गीतों में भीनी-भीनी खुशबू है ,एक अनोखा एहसास है अर्थात वरिष्ठ कवि कमल सक्सेना बरेली |
( कवि परिचय )
नाम- के० पी० सक्सेना
साहित्यिक नाम- कमल सक्सेना
जन्म तिथि- 01/01/1956
जन्म स्थान- ग्राम- ककौड़ी, जिला हापुड़ (उ०प्र०)
वर्तमान निवास- 255, पवन विहार पीलीभीत वाईपास बरेली (उ०प्र०)
कार्य- लेखा परीक्षक (रक्षा लेखा विभाग)
दूरभाष- 9411915646
मित्रो जब गीतकारों का चर्चा होता है तो अनायास ही कमल सक्सेना का नाम जुवां पर आ ही जाता है | हापुड़ जिले के ककौड़ी गॉव में जन्में श्री कमल सक्सेना जी हिन्दी गीतों के सुकुमार कवि हैं | पिछले लगभग तीस वर्षों से हिन्दी साहित्य के उत्थान में अपना योगदान देने बाले कवि श्री कमल सक्सेना जी एक कोमल रचनाकार हैं |
गीतों के साथ-साथ उनके मुक्तक व घनाक्षरी छन्द भी उत्कृष्ट कोटि के हैं | देश ,समाज और पारिवारिक विषयों पर उनका लेखन बहुत ही सराहनीय है | कमल जी की हिन्दी शब्दकोष पर बहुत ही अच्छी पकड़ है उन्होंने विशुद्ध हिन्दी के शब्दों का प्रयोग अपनी रचनाओं में किया है जो उनकी रचनाओं को और अधिक प्रभावशाली बनाते हैं |
उनकी भाषा सरल व शोधयुक्त है रस ,छन्द व अलंकारों का प्रयोग बहुत ही श्रेष्ठ तथा आकर्षक है |
आजकल मंचों पर परोसे जा रहे फूहड़पन से दूर हटकर श्री कमल जी ने साहित्य रचना की जो युवा पीढ़ी के लिए एक महत्वपूर्ण सन्देश व शिक्षा है |
देश के अनेकों मंचों पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनबाने बाले श्री कमल सक्सेना जी हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं | कवि मंचो के साथ-साथ उन्होंने अनेकों बार आकाशवाणी रामपुर व बरेली से सफल काव्य पाठ किया है| श्री कमल सक्सेना जी अनेकों साहित्यिक सम्मानों से सम्मानित हो चुके हैं | अपने सरल व सौम्य व्यवहार से कमल सक्सेना जी सभी साहित्यकारों के प्रिय हैं |
श्री कमल सक्सेना जी के गीतों की पुस्तक " कब तक मन का दर्द छुपाते " प्रकाशित हो चुकी है प्रस्तुत है उनकी पुस्तक का एक गीत ---------
राजपथों पर भटक न जाना ये पूजा का थाल लिये |
क़दम-क़दम पर खड़े शिकारी दोनों हाथों जाल लिये ||
नैनो की भाषा पढ़ लेंगे हमको थी इतनी आशा |
पागल मन क्यों समझ न पाया पागल मन की अभिलाषा |
माना कुछ धुंधली - धुंधली थी मेरे पत्रों की भाषा |
लेकिन इतनी कठिन नहीं थी अमर प्रेम की परिभाषा |
मैंने सारे पत्र लिखे थे नैना सिन्धु विशाल लिए |
राजपथों पर--------------
क्या तुम जानों हमको कितनी पीर मिली अभिनन्दन से|
हमनें रो - रो रात बितायीं संत्रासों के वन्दन से |
टूट गये तटबंध नैन के अभिलाषा के क्रन्दन से |
हमने पग- पग गरल पिया पर खड़े रहे हम चन्दन से |
जब - जब हमने रचा स्वयंवर पीर मिली जयमाल लिये राजपथों पर-------------
कल के सुख की आशा में जो रखते याद अतीत नहीं|
जीवन के सूने पंथों पर होती उनकी जीत नहीं |
मीत बिना कहीं प्रीति नहीं है प्रीति बिना कोई मीत नहीं |
टूटे दिल के टुकड़े करना प्रेमगन्थ की रीति नहीं |
मानसरोवर छोड़े तुमने मृगतृष्णा के ताल लिये |
राजपथों पर भटक न जाना ये पूजा का थाल लिये ||
अन्त में मैं श्री कमल सक्सेना जी की रचना धर्मिता को प्रणाम करते हुए उनके अविरल साहित्य व सुखी एवं निरोगी जीवन की मॉ शारदे से कामना करता हूं ||
( प्रस्तुति )
प्रो० आनन्द मिश्र अधीर
दातागंज ,बदायूं (उ०प्र०)
कवि ,संयोजक, संचालक एवम समीक्षक
दूरभाष- 9927590320
8077530905
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