*गीत:-*
कितना और कमाये धन,
कही नहीं लगता है मन।
पहन मुखौटा सभी घूमते,
केवल प्यारा दिखता तन।।
चारो तरफ शिकारी बैठे,
जैसे सुनो मदारी बैठे।
ओढ़ दुशाला धर्म जाति की,
ऐसे यहां पुजारी बैठे।।
जातिवाद से ऊपर उठकर,
काम करें हम तो सब जन।
पहन मुखौटा सभी घूमते,
केवल प्यारा दिखता तन।।1।।
आदर करना छोड़ दिया है,
जीवन को क्या मोड़ दिया है।
एक झलक पाने की खातिर,
नाता घर तोड़ दिया है।।
पागलपन के दौर में देखो,
मिलते नहीं कही सज्जन।
पहन मुखौटा सभी घूमते,
केवल प्यारा दिखता तन।।2।।
धर्म ग्रंथ क्यों बाँट रहे हो,
आपस में ही छाँट रहे हो।
वामपंथ के ठेकेदारों,
भारत को क्यों काट रहे हो।।
अक्षकुमार सा बध करने को,
आयेगें अब सुनो पवन।
पहन मुखौटा सभी घूमते,
केवल प्यारा दिखता तन।।3।।
आपस में लड़वाते क्यों हो,
तुम हराम का खाते क्यों हो।
भारत में रह करके बोलो,
गान पाक का गाते क्यों हो।।
चेत सको गर चेत लो अब भी,
बन जाओ लकड़ी चंदन।
पहन मुखौटा सभी घूमते,
केवल प्यारा दिखता तन।।4।।
राष्ट्र प्रेम का पाठ सिखाओ,
भारत में मिलकर तुम गाओ।
उठो हिंद के वीर जवानों,
वतन की मिट्टी माथे लगाओ।।
सभी देश से पहले अपने,
भारत का करते वंदन।।
पहन मुखौटा सभी घूमते,
केवल प्यारा दिखता तन।।5।।
नीतेन्द्र सिंह परमार "भारत"
छतरपुर मध्यप्रदेश
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