*गीत*
*आदमी न रहा आदमी के लिये*
कोई पी के जिये,कोई जी के जिये।
आदमी न रहा आदमी के लिये।।
मैं भटकता रहा,लोग चलते रहे।
आँधी तूफा में हरदम ही जलते रहे।।
सत्य सब जानते,बैठे मुँह को सिये।।
आदमी न रहा आदमी के लिये।।1।।
आज मौसम भी पल में बदलता दिखा।
वक्त वे वक्त मैंने तो सबकुछ लिखा।।
है अंधेरा बहुत अब जलाओ दिये।।
आदमी न रहा आदमी के लिये।।2।।
भोर से शाम तक वो तो मिलते नहीं।
पुष्प भी बाग में अब तो खिलते नहीं।।
मन मचलता मेरा और मचलता हिये।
आदमी न रहा आदमी के लिये।।3।।
राह भी सत्य की अब दिखा दीजिए।
कर्म अच्छा करूं अब सिखा दीजिए।।
कर्म भारत में *भारत* ने अच्छे किये।।
आदमी न रहा आदमी के लिये।।4।।
--- नीतेन्द्र सिंह परमार "भारत"
छतरपुर [ मध्यप्रदेश ]
No comments:
Post a Comment