Friday, April 5, 2019

आ० हीरालाल यादव जी

*ग़ज़ल*
1212 1122 1212 22

तेरे    जुनून,   तेरे   हौसले    से   गुज़रेगा।
बुरा   ये   वक्त  कहाँ   बैठने से गुज़रेगा।

कभी  क़रीब,  कभी  फासले  से गुज़रेगा।
ये  इश्क  है,  ये  हरिक पैतरे से गुज़रेगा।

रहूँगा  यूँ   हीं   मैं   पलकें    बिछाये   राहों में
न  जाने  कब  वो   मेरे सामने  से  गुज़रेगा।

मिटा   रहा   है   सभी   जंगलों   को  इंसाँ  तो
जहान क्यों न किसी जलजले से गुज़रेगा।

जहान  छोड़  के  जाना  है एक दिन *हीरा*
हरेक शख़्स इसी सिलसिले से गुज़रेगा।

                  हीरालाल

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