*ग़ज़ल*
2122 1212 22/112
ज़िन्दगी ऐसे इम्तिहान न ले।
दर्द दे दे के रोज़ जान न ले।
हौसला तोड़कर मेरा हर दिन
छीन मुझसे मेरा गुमान न ले।
बोलने वाले सच, सँभल के रह
काट दुनिया कहीं जुबान न ले।
बस इसी डर में जी रहे हैं सब
राज़-ए-दिल और कोई जान न ले।
सच की राहों पे चल के तू *हीरा*
अपना दुश्मन बना जहान न ले।
हीरालाल
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