*ग़ज़ल*
212 212 212
ख़ुद ही ख़ुद से अदावत न कर।
पत्थरों से मुहब्बत न कर।
ख़ुद में भी झाँक कर देख ले
हर घड़ी बस शिकायत न कर।
हाथ आये हैं किसके यहाँ
चाँद तारों की चाहत न कर।
दिल दुखा कर के अपनों का यूँ
घर से ख़ुशियों को रुखसत न कर।
कर न नज़र-ए-इनायत भले
इल्तिज़ा है कि नफ़रत न कर।
पड़ के लालच में *हीरा* किसी
नफ़रतों की तिजारत न कर।
हीरालाल
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