लॉकडाउन
हम बात कर रहें आज के परिवेश की,समाज में रहें लोगों की। स्वार्थी जीवन हम हमेशा जीते रहेंगे। इसे कोई नहीं मिटा सकता है। दरअसल बात यह हैं कि पूरा देश जहाँ महामारी से जूझ रहा है। और लॉकडाउन लगा हुआ है। कोरोना बीमारी जिससे सभी लोग परेशान है।वही दूसरी और पुलिसकर्मी,बैंककर्मी,मीडियाकर्मी व सफाईकर्मी तथा अपने प्राणों की परवाह ना करते हुए डॉक्टर व नर्स अपनी हिम्मत से कोरोना को हराने के लिए अद्भुत क्षमता से कार्य कर रही है।
आपको बताना चाहता हूँ। मेरी मामा जी की बहू का ऑपरेशन हुआ है वो अस्पताल में भर्ती थी। मुझे कहना देने जाना था।परंतु चारो तरफ पुलिस लगी हुई थी।और गाड़ी वाहन से जाना साफ मना है। अस्पताल बहुत दूर था पैदल जा नहीं सकता था। मैं मोटरसाइकिल ली और कोई रास्ता नहीं था।मैं आधे दूर तक मोटरसाइकिल से गया। आपने मित्र के घर के बाहर रख दी। फिर पैदल गया। अस्पताल तक खाना देकर आया।
जब मैं वहाँ घर के लौट रहा था। तो एक औरत छोटी सी बच्ची को लिए साथ में उसकी सास थी। दोनों सरकारी अस्पताल से आ रही थी। लॉकडाउन की वज़ह से ऑटो रिक्शा आदि सभी बंद थे। काफ़ी लोगों को रोका कोई नहीं रुका,मुझे भी रोका मैं आगे तक निकल गया था। वापिस आया मैं पूछने ही वाला था । कि उसकी सास बोल पड़ी बेटा मेरी ये नातिन हुईं थी।और अस्पताल आज छुट्टी हो गयी गई है। कोई वाहन नहीं मिला। हम दोनों यहाँ तक तो पैदल आ गए लेकिन घर दूर है। अब और नहीं चल सकते है। यदि आप मुझे घर तक छोड़ दे तो मेहरवानी होगी। मैंने कहा ऐसी बात नहीं है। चलो लेकिन आगे पुलिस हैं। क्या करें मैं बहुत असमंजस में था।आगे पुलिस है। यदि छोड़ने नहीं जाता तो ये लोग कैसे जायेंगे। मैंने कहा दोनों नियम का पालन करना मुश्किल है।मैंने कहा दादी सीधे मैन रोड से ना जाकर कॉलोनी के अंदर से चलता हूँ। बोली ठीक है मुझे आप छोड़ दे घर तक। वहाँ से चला और घर के पास तक आया बोली यही छोड़ दो मैंने कहा चलो घर तक ही कर देते है। छोटी बच्ची भी है धूप भी ज़्यादा हो गयी है। घर तक गया। उनको वहां तक छोड़ा हम जाने ही वाले थे। दादी ने आवाज़ लगाई बेटा पानी पी लो फिर चले जाना। पानी पिया खाना खाने को कहा मैंने कहा नहीं अभी खा कर आया था। मैं चलता हूँ वो पेसे देने लगी मैंने कहा कैसे पैसे,बोली मुझे यहां तक लाने के हमने कहा दादी में आप पैसे रखो। मुझे नहीं चाहिए है। यदि कुछ काम हो तो बताना मेरे लायक कभी भी।
इसके बाद मैंने उस बच्ची के कुछ पैसे देकर पैर छुए।फिर वहां से वापिस अपने घर आ गया। यही कहना है करते रहो सभी की सेवा,ईस्वर देंगा सबको मेवा।
नीतेंद्र सिंह परमार "भारत"
छतरपुर मध्यप्रदेश
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