घनाक्षरी छंद का नामकरण 'घन' शब्द पर है जिसके हिन्दी में चार अर्थ होते हैं
1- मेघ/बादल,
2- सघन/गहन,
3-बड़ा हथौड़ा,
4-किसी संख्या का उसी में 3 बार गुणा भी होता है।
इस छंद में चारों अर्थ प्रासंगिक हैं घनाक्षरी में शब्द प्रवाह इस तरह होता है मेघ गर्जन की तरह निरंतरता की प्रतीति हो। घनाक्षरी में शब्दों की बुनावट सघन होती है जैसे एक को ठेलकर दूसरा शब्द आने की जल्दी में हो घनाक्षरी पाठक या श्रोता के मन पर प्रहर सा कर पूर्व के मनोभावों को हटाकर अपना प्रभाव स्थापित कर अपने अनुकूल बना लेनेवाला छंद है।
मनहरण घनाक्षरी में 8 वर्णों की 3 बार आवृत्ति है।8,8,8,7 की बंदिश कई बार शब्द संयोजन को कठिन बना देती है। किसी भाव विशेष को अभिव्यक्त करने में कठिनाई होने पर कवि 16,15 की बंदिश अपनाये तो अपना सकता है।चरण चार या चार के अनुपात में रखे जाते हैं।
1. मनहरण घनाक्षरी (31वर्ण) -8, 8, 8, 7 या 16,15 या 17,14 पर यति अंत में लघु,गुरु वर्ण होता है।
2. रूप घनाक्षरी (32 वर्ण) -8, 8, 8, 8 अंत में गुरु-लघु होता है।
3. जलहरण घनाक्षरी (32 वर्ण) -8, 8, 8, 8 अंत में लघु-लघु होता है।
4. जनहरण घनाक्षरी (31 वर्ण) - पहले 30 वर्ण लघु और अंत में गुरु होता है।
5. डमरू घनाक्षरी (32 वर्ण) - सभी 32 वर्ण बिना मात्रा के लघु वर्ण होते है।
6. विजया घनाक्षरी (32 वर्ण) -8, 8, 8, 8 अंत में लघु-गुरु होता है।
7. कृपाण घनाक्षरी (32 वर्ण) -8, 8, 8, 8 अंत में गुरु-लघु होता है।
8. हरिहरण घनाक्षरी (32 वर्ण) -8, 8, 8, 8 अंत में लघु-लघु होता है। अंत के ये दोनों लघु वर्ण, प्रत्येक चरण में नियत रहते हैं।
9. सूर घनाक्षरी (30 वर्ण) -8, 8, 8, 6 अंत में गुरु या लघु कुछ भी ही सकता है।
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