*1. शुद्ध जनक छंद*
मानव "ओम" कमाल है।
उस डाली पर बैठ के।
काट रहा वो डाल है।।
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*2- पूर्व जनक छंद - पहले दो पद तुकांत*
वृक्षों से जीवन मिले।
प्राण फूल फल भी खिले।
"ओम" प्रकृति आधार है।।
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*3- उत्तर जनक छंद - अंत के दो पद तुकांत*
जल-स्त्रोत सब मृत हुए।
देख रहे चुपचाप हैं।
उत्तरदायी आप हैं।
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*4. घन जनक छंद*
पौधा - रोपण कीजिये।
वसुधा-पोषण कीजिये।
अब मत शोषण कीजिये।।
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*5- सरल जनक छंद - तीनों पद अतुकांत।*
हरी - भरी वसुधा रहे।
इसमें ही सुख-सार है।
ओ मानव यह जान ले।
*©मुकेश शर्मा "ओम"*
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