Monday, June 10, 2019

शम्भू लाल जालान "निराला" जी ( ग़ज़ल )

शम्भू लाल जालान *निराला*

              *ग़ज़ल*

ख़यालों में बीते जो खोता रहेगा
तो अश्क़ों से दामन भिगोता रहेगा।

तू काटेगा वो ही फ़सल ज़िन्दगी में
यहां  बीज  जैसा  तू बोता रहेगा।

लड़ेगा नहीं ग़र तू लहरों से ऊंची
यूं ही अपनी कश्ती डुबोता रहेगा।

जो हंसता है महफ़िल में लोगों के आगे
अकेले में वो भी तो रोता रहेगा।

करेगा  अगर  बेवफ़ा  पर भरोसा
तो लाशें वफ़ाओं की ढ़ोता रहेगा।

रहेगी सियासत ज़माने में जब तक
तमाशा  तो  हर  रोज़ होता रहेगा।

रहेगा *निराला* वो पीछे जहां में
जो हर पल यहां सिर्फ़ सोता रहेगा।

निराला 

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