बलात्कारी भी हो सकता है मानव बम
मानव बम की खोज, किए मानव के दुश्मन।
हत्या करते रोज, लूटकर मानवता धन।।
निर्दोषों को मार, स्वयं भी हैं मर जाते।
मानवता का अन्त, खुदा के नाम लिखाते।।
बलात्कार दुष्कर्म, उसी साज़िश का हिस्सा।
घटना को लो जोड़, नहीं साधारण किस्सा।।
सोची समझी चाल, चलें अब ये नरभक्षी।
उनको है यह ज्ञात, कोर्ट उनका है रक्षी।।
रपट और कानून, सबल का साथ निभाये।
पीड़ित हो लाचार, मौत को गले लगाये।।
खोकर अपने अंग, असंग अपंग अभागे।
अट्टहास - चित्कार, छोड़ कैसे कब भागे।।
गया जमाना बीत, भूल न्यायालय थाना।
पकड़ सड़क के बीच, पहन केसरिया बाना।।
मारो घूसा लात, करो यमराज हवाले।
जस करनी तस दंड, उसी पल पापी पा ले।।
कोई आए संग, तरफदारी जब करने।
उसको भी दो मौत, ताकि लग जाए डरने।।
बिना तीर तलवार, राम केशव भी हारे।
सदा लात का भूत, लात खाकर सुविचारे।।
तनिक न हो अफ़सोस, धर्म सम्मत यह मानो।
बच्चों के रक्षार्थ, उचित पथ इसको जानो।।
तर्पण यही विशेष, इसी से पाप मिटेगा।
बात अवध की मान, स्वयं ही न्याय मिलेगा।।
डॉ. अवधेश कुमार अवध
8787573644
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