Thursday, June 6, 2019

जनक छंद

*1. शुद्ध जनक छंद*

तारा नयन कमाल है|
सुन्दर सूरत देखकर|
बिगड़ा  मेरा हाल है|

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*2- पूर्व   जनक  छंद - पहले दो पद तुकांत*

मनभावन सा साथ है|
संग  मीत का  हाथ है|
जीवन सुखमय प्रेम से|

*3- उत्तर जनक  छंद - अंत के दो पद तुकांत*

विरहा मन का कह रहा|
मधुर  प्रीत  ही  सार है|
जग  झंझट  बेकार  है|

*4. घन जनक छंद*

प्रेम दान भी  दीजिए|
स्नेह सभी से कीजिए|
सेवा भाव भर लीजिए|

*5- सरल जनक  छंद - तीनों पद अतुकांत।*

प्रेम  हृदय  का भोज है|
सब जन में सहकार हो|
यही  सत्य सब जान लें|

     *© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'*

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