◆राधेश्यामी छंद(मत्त सवैया)◆
विधान-
32 मात्राएँ प्रति चरण,16,16 यति,
चरणान्त गुरु।दो-दो चरण समतुकांत।
किसने शिव सायक भंग किया,
जड़ जनक अभी दे बता मुझे।
जो मुझसे तनिक छुपायेगा,
रिस मेरी है सब पता तुझे।।
हो वेग सभासद सावधान,
मैं जो कहता हूँ सुनो सभी।
आये वो शिव द्रोही सम्मुख ,
मारा जायेगा यहीं अभी।।
सुन जनक राज्य की सीमा तक,
पलटा दूँगा मैं धरनी को।
मैं नहीं किसी की बात सुनूँ,
तुम भोगोगे निज करनी को।।
अब रोक सकेगा मुझे कौन,
इच्छा से आता जाता हूँ।
क्षत्रिय कुल नाशी अति क्रोधी,
मैं परशुराम कहलाता हूँ।।
नृप लगे काँपने सब थर-थर,
करजोर यथावत खड़े रहे।
आये लगि दंड प्रणाम करत,
मिथिलेश विनय कर बैन कहे।।
हे भगवन दया दृष्टि होवे,
शुभ अवसर कृपा अपार करो।
मम धन्य भाग्य पदरज पाई,
आकर आसन स्वीकार करो।।
~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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