Tuesday, May 1, 2018

मजदूर हैं मजबूर



।।मजदूर हैं मजबूर।।

लिखूँ परिश्रम उस प्राणी का,करें सदा शुभ काम हैं।
पहने नही वदन पर कपङे,मजबूरी का नाम हैं।।

एक गरीब का लङका देखो,धूप में निशदिन जलता हैं।
कांटो वाली पगडंडी से,सत्य मार्ग पर चलता है।।
मीठे बोल सभी सें बोले,बोले सुबहो शाम हैं।।
पहने नही वदन पर कपङे,मजबूरी का नाम हैं।।1।।


किस्मत का कुछ दोष नही हैं,आज हमें क्या दिखलाती।
पेट नही हैं अन्न का दाना,हमको चलना सिखलाती।।
महंगाई ने मारा सबको,पाकेट में न दाम हैं।।
पहने नही वदन पर कपङे,मजबूरी का नाम हैं।।2।।


काम काज जो कर लेता हूँ,पेट उसी से पलता हैं।
हूं मजदूर बहुत मजबूरी, आज यही पन खलता हैं।।
बैठ सका न चैन से एक दिन,चलता आठोयाम हैं।।
पहने नही वदन पर कपङे,मजबूरी का नाम हैं।।3।।


मिट्टी से पैदा जिन्दगानी,मिट्टी में ही मिलना हैं।
हो जाऊं मशहूर यहा पर,फूल गुलाब सा खिलना हैं।।
भारत लेख लिखेगा प्यारा,सच्चाई का जाम हैं।।
पहने नही वदन पर कपङे,मजबूरी का नाम हैं।।4।।

- नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
   छतरपुर  ( मध्यप्रदेश )
   सम्पर्क :- 8109643725

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