Friday, May 4, 2018

गज़ल





बहर:-- 1222 1222 122


निशा जाते सवेरा हो गया हैं।
हृदय में अब सवेरा हो गया हैं।।

भले भटके यहा रहकर सफर में।
यहा मेरा बसेरा हो गया हैं।।

कहा जागा कहा सोया यहा पर।
दुआ हैं प्यार तेरा हो गया हैं।।

करूं फरियाद में रब से अभी में।
गमो का आज घेरा हो गया हैं।।
 
सुनो अब आज में *भारत* लिखूंगा।
बहुत काला घनेरा हो गया हैं।।


- नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
  छतरपुर  ( मध्यप्रदेश )
   सम्पर्क :- 8109643725


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