*ग़ज़ल*
2122 1212 22
जान देने से गर डरे कोई।
प्यार की राह मत चले कोई।
बनना काजल हमें गँवारा है
अपनी आँखों में गर मले कोई।
हो रहेंगे उसी के हम बन के
प्यार से हाथ तो धरे कोई।
काश आ कर उदास जीवन में
मेरे दुख दर्द को हरे कोई।
हमसफ़र ख़ुद को कह रहा है तो
जा रहा क्यों परे परे कोई।
ख्वाहिशें सब की हों अगर पूरी
क्यों किसी से भला जले कोई।
है दुखी हर कोई ज़माने में
किसकी ख़ातिर दुआ करे कोई।
नफ़रतें भी कुबूल हैं *हीरा*
प्यार के नाम मत छले कोई।
हीरालाल
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