*ग़ज़ल*
2122 1212 22
दर्दो-ग़म की यही दवा की है।
रब से रहमत की इल्तिजा की है।
दोस्त हो या रक़ीब, जीवन में
हमने सबके लिए दुआ की है।
एक ख़ुद को ही छोड़ कर हमने
सारी दुनिया से ही वफ़ा की है।
चाँद तारों को छोड़िये साहब
खूबसूरत ज़मीं बला की है।
तय है नाकाम ज़ीस्त का होना
मौत मर्ज़ी अगर ख़ुदा की है।
जान पाये न राज़ ये *हीरा*
ज़िन्दगी जी के क्या ख़ता की है।
हीरालाल
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