Tuesday, August 20, 2019

आ० संजय उमंग जी

कवि संजय खरे: 🥀लोकगीत🥀  

     (बुदेली, धुन :ढिमरयाई)
घरवारी को गाँव, प्रान से  प्यारो है
दिल की बात बताँव, जहाँ से न्यारो है ।।

दाखन जैसे उतै के महुआ।
कोयल जैसे बोलें कौआ।
मिठास करेला में पाँव - - -
घरवारी को गाँव - - - -

खूबई होवे खातिरदारी।
आगे पीछे सारे सारी।
सबको जीजा कहाँव - -
घरवारी को गाँव - - - -

चढ़ी करैया छनें मगौरा।
मूँगफली और खब रओ होरा।
चुस्की चाय लगाँव - - - -घरवारी को गाँव - - - -

सास ससुर भी ध्यान राखवें।
साराजें मीठें बतियावें।
मैं न उतै से आँव - - - घरवारी को गाँव - - - -

बात उमंग जा मानो सच्ची।
घर की रोटी होवे अच्छी।
घर से रखो जुडाँव - - - -
घरवारी को गाँव - - - प्रान से प्यारो है

    💐संजय"उमंग "💐

🥀गीत (करुण रस)🥀
बहे नैनो नीर, बढ़ रही पीर, रघुवीर कहे भैया बोलो।
टूटत है धीर, मन है अधीर, हे वीर लखन अखियाँ खोलो।।

रावण कुमार, गयो करके वार, शक्ति प्रहार बेसुध लक्ष्मण।
टारी न टार, गई पीठ पार, बरछी अचूक जब छोड़ी रण। - - - - -
बहे नैनो नीर - - - -

जग दीना नाथ, दिखवे अनाथ, भई दीन दशा सुध बुत भूले।
लगी हृदय टीस, रखें गोदी शीश, विपरीत काम भऐ प्रतिकूले - - - -
बहे नैनो नीर - - - -

विपदा मे शेष, पीड़ा अशेष, रविकुल रवि डुबो न दे रविकर।
बीते है रैन, नही उर में चैन, चिंता में भालू अरु बानर। - - - -
बहे नैनो नीर - - - - -

बस एक आस, हो कष्ट नाश, संजीवनी समय पै जाये।
करुणानिधान, कहे तजो प्रान, हनुमान भी अब तक न आये।।
बहे नैनो नीर - - -

        🌹संजय "उमंग"🌹
[09/03, 10:56 p.m.] कवि संजय खरे: 🌹चौकड़िया🌹
     """"नैना""""
उनके जुड़वा नैन कटीले ।
लगवे भौत नशीले।।

देख कै बड़वे मन मदहोशी,
     मदिरा प्याले रशीले।।
उनके जुड़वा नैन - - -

उनकी शान न वर्णी जाये,
   झील से नीले नीले।
उनके जुड़वा नैन - -

नैनन मस्ती से भए घायल,
   कइयक छैल छवीले।
उनके जुड़वा नैन - -

करलो नैना चार उमंग तुम,
    डूब कै जीवन जीले।
उनके जुड़वा नैन - - -

       🌹संजय "उमंग"🌹
[09/03, 10:56 p.m.] कवि संजय खरे: 😃 बुदेली गीत 😃
सैया चलो दिखा दो मेला।
छायी सावनी वेला। अरररर
सैया लगो - - -

उतई बिराजे भोले हमारे।
गूँज रहे उनके जयकारे।
सुनी उते कावड़िया आये ।
दर्शन खों जो जीं ललचाये ।
बजे है ढोलक झेला - - - अररररर
सैया - - -

जब मैं लेहो चुरियाँ लिपस्टिक।
उते न कर धरियो तुम किचकिच ।
झूलवी चकरी खूब हिंडोला।
पीहो फुल्की अरु कोकाकोला।
जेहो चाट के ठेला - - - आरररर।
सैया - - -

संगे बैठें खैं रसगुल्ला।
बाद में लेहो छिल्ली बिल्ला।
साढ़ी पहन पहन के हारी।
शूट लिवा दइयो भरतारी - -
खर्चा हुए पैलम पेला - - -
सैया - - - -

       🌺संजय "उमंग"🌺
[09/03, 10:56 p.m.] कवि संजय खरे: सभी मित्रों को दीपोत्सव, भाई दूज की हार्दिक हार्दिक बधाईयाँ, अनंत शुभकामनाएं
💐कार्तिक गीत💐
आ जइयो हर हाल , हो भैया मौरे आ जइयो - - -
ओ भैया - - - -

अबकी दिवाली आओ वीरू, तिलको लगाओ भाल - - - -
ओ भैया - - -

चावल चन्दन हल्दी रोरी, सजा रखो है थाल - - - - - -
हो भैया मौरे - - -

पिछली दिवाली न आये तुम ,मन में रहो है मलाल - - - - - -
ओ भैया - - -

तुम सीमा के सच्चे पहरी, भारत माँ के लाल - - - - -
ओ भैया - - -

मैया बाबू राह निहारें, आ कें कर दो निहाल - -
ओ भैया - - - -

मोरी उमरिया लगवें तुमखो, जिइयो हजारों साल - - - - -
ओ भैया - - -

   🥀संजय "उमंग"🥀
[09/03, 10:56 p.m.] कवि संजय खरे: बुदेली गीत
सैया कविता में पगलाँय, वे तो दिन भर कलम चलावें।
मौसे उखड़े उखड़े राँय , ढंग से तनकउ न बतियावें- - -

कुछ पूछो कछू बतावें, ठलवाई में झल्लावें।
बस खोये खोये रावे, पगला से होत दिखावें।
मोहे समझ कछु नइ आँय-----
सैया कविता में - - -

हम रात में सो न पावें, कविता वे खूब झिलावें।
तारीफ स्वयं की करके, वे फूले नही समावें।
राते दो दो बजे जगाँय - सैया कविता में - - -

सपनन में वे बरार्वें, वाह वाह कह के उठ जावें।
हम तनिक मजाक उड़ावे, सो आखें दोउ चढ़ावें।
कवि दिल उमंग काव्य नित गाँय- - -
सैया कविता में - - - -

        संजय "उमंग"
[09/03, 10:56 p.m.] कवि संजय खरे: लोकगीत
पिया जू मिले पियक्कढ़ रे ।
भए हम पूरे फक्कढ रे ।

बासन गहने बैंच दयें सब, सट्टा में गई गाड़ी ।
मोड़ा मोड़ी उन्ना चिथ गय, पैरत फटी मैं साड़ी ।।
बिको घर खाड़ी खप्पढ़ रे - - - -
पिया जूमिले पियक्कढ़ - -

जाय कलारी पै भोरई से , कुल्ला ओई से करवें ।
झूमत झामत आये मटकत , नरदा में गिर परवें।।
निकारो बाँधके लक्कढ़ रे - - - - -
पिया जू मिले पियक्कढ़ - - - -

ऐरा गेरा नत्थू खेरा, सबरे घर में आवें ।
चिल्म तम्बाकू गाली हल्ला,मुण्डा खूब चलावें ।
खेलत अक्कढ बक्कढ़ रे - - - - -
पिया जू मिले - - - - -

नशा नाश की जड़ है भैया, बात सबई जा मानो ।
कुगत भई है मौरे घर , दुखिया को दुख जानो ।।
मिले न रोटी गक्कढ़ रे - - -
पिया जू मिले पियक्कढ़ - - - -
   💐संजय "उमंग"💐
[09/03, 10:56 p.m.] कवि संजय खरे: 🌹कुण्डलिया 🌹
नेता अपने आप को, ज्यादा व्यस्त बताँय।
चमचा पूरे रंग में, संगें रँगे दिखाँय।।
संगें रँगे दिखाँय, पुड़ी पैकिट बटआवे।
गाड़ीं चार लगाँय, तेल दम सें भरवावें।।
शुरू चुनावी दौर, श्वेत पट पहन प्रणेता।
पाँच साल के बाद, गाँव फिर आये नेता।।

🌹💐संजय "उमंग" 💐🌹
[09/03, 10:56 p.m.] कवि संजय खरे: 😀  कुण्डलिया😀
गोरी छज्जा पे चढ़ी,
      अलग रचाऐ स्वाँग।
सेल्फी लेतन वे गिरी,
           टूट गई इक टाँग।।
टूट गई इक टाँग,
     पङी चीखे चिल्लावे।
मौच खा गयो हाथ,
       लगी रोवे झल्लावे।।
मोबाइल पे दोष,
        "उमंग" लगावे होरी।
सेल्फी को ले नाम,
   सो खिसिया जाय गोरी।।

        🌹संजय "उमंग"🌹
[09/03, 10:56 p.m.] कवि संजय खरे: आजादी के महानायक पंडित चन्द्रशेखर आजाद जी सम्मान में समर्पित ये पंक्तियाँ
          🌹गीत🌹
सिंहो सी चाल, करता कमाल, आजाद बड़ो वो मतवारो।
रखी माँ की शान, चले सीना तान, गोरन खो वा ने पकड़ मारो।।

था गर्म खून, मन में जुनून, आजाद हिन्द चाहे प्यारो।
वो तेज भाव, मूँछन पे ताव, आजाद बड़ो वो मतवारो - - - - -

जब भई जंग, गोरन के संग, भिड़ गव दबंग हिम्मतवारो।
वो आँखें लाल, लगे महाकाल, आजाद बड़ो वो मतवारो - - - - -

करता प्रहार, बड़ो जोरदार, मानी हार बाँको न्यारो।
था शूरवीर, पर मन अधीर, आजाद बड़ो वो मतवारो - - - - - - -

भिड़ो इलाहाबाद, माँ जिंदाबाद, कहे पड़ो अकेलो जब प्यारो।
टूटी न आश, लड़ो अंतिम सांस, आजाद बड़ो वो मतवारो - - - -

आजाद था मैं, आजाद रहा, आजाद मँरू, ये कथन बारो।
जगा दी उम्मीद, पर भव शहीद, आजाद बड़ो वो मतवारो - - - - - -

        💐संजय "उमंग"💐
[09/03, 10:56 p.m.] कवि संजय खरे: 🌹 बुंदेली राई 🌹
अरी जसुदा जरा तुम सम्हारो ।
बिगर गव लल्ला तुम्हारो - - - - - -

लँए छोरा दस  दँऐं दौंदरा ।
धूम धड़ाका गलीं चौंतरा ।
पूरो गौकुल बाँ सें हारो - - -
बिगर गव लल्ला - - - -

मटकी फोरत माँगे दहिया ।
काल मरोरी मोरि बँहिया ।
काँ तक करों मैं किनारो - -
बिगर गव लल्ला - - -

घर घर घुसवे चौरन जैसो ।
काम करें सब एसो बैसो ।
मक्खन पें डाकों है डारो - -
बिगर गव लल्ला - - - -

जमुना तट पें न नह पावें ।
चढ़ौ कदम्बा चीर छुपावें
छलिया छले मतवारो - - - -
बिगर गव लल्ला - - - -

सुन बाँसुरिया रह न पाँऊ ।
काज छोड़ सबदोड़ी जाँऊ ।
वेणु सें राधा पुकारो - - -
बिगर गव लल्ला - - - -

       🌷संजय "उमंग"🌷
[09/03, 10:56 p.m.] कवि संजय खरे: 🌹चौकड़िया 🌹
जब से लहराकें गँई आँचल।
तबई से जियरा घायल - - - - -

चंदा मुइयाँ बस गई मन में ।
मृदु बैनन को कायल - - - -

डुबा गँई नैनन मस्ती में।
चैन चुरा गव काजल - - -

चुटिया लहरे पतरी कटि पै।
देख भयो मैं पागल - - -

बैचेनी बढ़ जात उमंग दिल।
जब जब छनकै पायल - - -

🌹संजय "उमंग" 🌹

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