विषय:- *रास्ता*
पता नहीं यह रास्ता कहा तक जाता होगा। परन्तु यह रास्ता मेरी मंजिल तक तो जरूर जायेगा। ऐसा मुझे आभास हो रहा है। चले खेर कोई बात नहीं और आगे चलते है। अब क्या थोड़ा आगे गया फिर वहा से दो मार्ग दिखाई दिया। मन में सोचना लगा। कौन सा रास्ता मंजिल तक जायेगा। एक रास्ता हमने उसमें से चुन लिया। आगे बढ़ने लगा तभी कुछ दूर पर एक मंदिर दिखाई दिया। हम उसी ओर जाने। घने जंगल के बीच से जो रास्ता जा रहा था। मंदिर दूर दिखाई दे रहा था। मैं चलता गया। और वहाँ पहुँचा ही था। कि मुझे पंडित जी दिखाई दिये। पंडित जी से कहा कि मुझे ईश्वर से मिलने का सीधा रास्ता बताये। पंडित जी बड़े ही असमंजस में पड़ गये।
पंडित जी ने कहा- आप यहाँ तक कैसे आये हो? क्या आपको रास्ता मालूम था? मैंने कहा नहीं मालूम था। पंडित जी बोले किसी ने आपसे कहा था। कि जाओ ईश्वर से मिलने का रास्ता ढूंढ कर लाओ? नहीं पंडित जी। तो उसी प्रकार कोई कितने रास्ते बताये।परंतु नेक रास्ता तो व्यक्ति स्वयं से ही खोज पाता है। उसे उसे ही तय करना होता है। किसी मुझे किस मार्ग पर अग्रसर होना है। परिणाम को ध्यान में रखते हुये।
*___नीतेन्द्र भारत*
No comments:
Post a Comment