Sunday, January 20, 2019

विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत द्वारा दोहा प्रतियोगिता







*_विश्वजनचेतना ट्रस्ट,भारत, पं.सं.-३०११_*
आप सभी को सूचित करते हुए अति हर्ष हो रहा है कि दिनांक *_२०/०१/२०१९_* को *जय-जय हिन्दी* मंच पर एक छंद प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है।
आप सभी से निवेदन है कि समय पर उपस्थित रहें।
*_विधान- दोहा_*
*समय- सायं ०८:०० बजे - ९:०० बजे*
जो साहित्यकार सम्मिलित होना चाहते हैं वो सभी अपना नाम जोड़ते रहें।
१. *आ० ओम प्रकाश फुलारा    "प्रफुल्ल" जी*
२. *आ० नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत " जी*
३. *आ० दिलीप कुमार पाठक 'सरस' जी*
४. *आ०रवि रश्मि 'अनुभूति' जी ( प्रयास हेतु )*
५. *आ० साधना कृष्ण जी (सीखना चाहती )*
६. *आ० रेनू सिंह जादौन जी*
७. *आ० तुलाराम अनुरागी 'व्योम' जी*
८. *आ०आशीष पाण्डेय ज़िद्दी जी*
९. *आ० शीतल प्रसाद जी*
१०. *आ०हरीश बिष्ट जी*
११. *आ०नवीन कुमार तिवारी जी*
१२. *आ०इन्दू शर्मा शचि जी*
१३. *आ૦ जयकांत पाठक जी*
१४. *आ०आकाश 'क़ातिल जी*
१५. *आ०अपर्णा सिंह जी*
१६. *आ०गगन उपाध्याय "नैना" जी*
  *जय-जय*  
*विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत, पंजी० सं० ३०११*
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*दोहा प्रतियोगिता हेतु आवश्यक नियम*
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१. दोहा प्रतियोगिता दस चरण में सम्पन्न होगी।
२. प्रत्येक चरण से पूर्व सर्जन हेतु विषय प्रदान किया जायेगा।
३. प्रत्येक चरण के लिए ५ मिनट का समय दिया जायेगा तथा प्रत्येक चरण के समाप्त होने के पश्चात्‌ दो मिनट का समय समीक्षा हेतु लिया जायेगा। अतः प्रत्येक विषय ७ मिनट के अंतराल पर मंच पर रखा जायेगा।
४. छंद में प्रदत्त विषयक शब्द का होना आवश्यक है।
५. विजेताओं की घोषणा भाव और शिल्प के आधार पर की जायेगी।
६. प्रतियोगिता के बीच में रचना या अन्य कोई गतिविधि मान्य नहीं होगी। यदि कोई शंका प्रस्तुत होती है तो उसका समाधान प्रतियोगिता के बाद ही हो सकेगा।
धन्यवाद।
कार्यक्रम अध्यक्ष- जितेन्द्र चौहान 'दिव्य'
प्रतियोगिता प्रभारी- नमन जैन 'अद्वितीय'
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प्रथम चरण- *धैर्य*
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नहीं धैर्य खोना कभी,संकट में श्रीमान।
अस्त सूर्य भी होत है,लाता नवल विहान।।
*--- आशीष पांडे जिद्दी जी*
धैर्य रहे जब साथ में, जीतें सारी जंग।
नाम आपका हो अमर,चले जमाना संग।।
*---- रेनू सिंह*
जहां दिव्य की दिव्यता,वहां बसें भगवान।
धैर्य धरे करते सृजन,वह जितेंद्र चौहान।
*कौशल किशोर पाण्डेय " आस "जी*
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 *द्वितीय चरण- वीर* 
वीर धीर हो तुम सभी
              माँ का रखना ध्यान।
विनती सबसे है यही
             घटे न माँ का मान।।
*___ नैना जी*
वीर नहीं कायर सुनो,जो जाए रण छोड़।
वही विजेता जो सदा,उत्तर दे मुहतोड़।।
*___ जिद्दी जी*
माता तेरी शान में,लाल खड़े हैं वीर।
दुश्मन को छोड़ें नहीं,साथ रखें वो धीर।।
*-- रेनू सिंह जी*
धीर वीर साहस भरे,नमन दिव्य हैं संग।
जय जय पर है गूंजती, अब छंदों की जंग।।
*---- आस जी*
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 *तृतीय चरण- निशा*
निशा दिशा देती हमें, तम में कर उजियार।
हँस मिलकर सब साथ हों, आपस में हो प्यार।।
*-- दिलीप कुमार पाठक सरस जी*
नित्य निशा ले साथ में,आती हैं अँधियार।
भोर भगाती तम सदा,करती है उजियार।।
*--- जिद्दी जी*
आई जब काली निशा,मन मेरा भयभीत।
नैना जिसको ढूँढ़ते,खोया मेरा मीत।।
*-- रेनू सिंह जी*
निशा नही आये सजन
              तड़पी सारी रात।
सखि रे तुझसे क्या कहुँ
             अपने मन की बात।।
*--- नैना जी*
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 *चतुर्थ चरण- गगन*
गगन भाँति ऊँचा रहे
            मेरे प्रिय का ताज।
प्रभु मेरी विनती यही
           रखना मेरी लाज।।
*-- नैना जी*
नैना अपलक देखते,नित्य गगन की ओर।
मेघ दिखाई दें नहीं,मिट्टी हुई कठोर।।
*--- जिद्दी जी*
नील गगन को देखती,प्रभु को रही पुकार।
विनती मेरी तुम सुनो,दर्शन दो यक बार।।
*--- रेनू सिंह जी*
नैना गगन निहारे है
           प्रिय की करती टेर।
हे प्रियवर कब आओगे
           जीऊँ खाकर बेर।।
*--- नैना जी*
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 *पंचम चरण- गुरु*
गुरु किरपा जब से हुई,मिला मूर्ख को ज्ञान।
पढ़ा आखरों को सभी,लिया मर्म को जान।।
*---रेनू सिंह जी*
नित्य करो गुरु वंदना,गुरु हैं देव समान।
सदा मार्ग उज्ज्वल करें,दूर करें अज्ञान।।
*--- जिद्दी जी*
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 *षष्ठम चरण- गरल*
मंथन से निकला गरल, शंकर हुए सहाय।
सकल हलाहल पी गए,नीलकंठ कहलाय।।
*-- जिद्दी जी*
गरल कंठ हैं शिव प्रभो,हरते सबके कष्ट।
क्रोध बढ़े जब आपका,करें सृष्टि को नष्ट।।
*---रेनू सिंह जी*
प्रेम पंथ नहि गरल सम
              सरल सहज है जान।
अमृत सम मीठा लगे
         पीकर प्यारे मान।।
*---नैना जी*
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 *सप्तम चरण- पिता*
नहीं पिता सम देवता,पूजे यह संसार।
माता का भी प्यार दें,जीवन के आधार।।
*--- जिद्दी जी*
लाल तुझे ही देखकर
             होते रोज निहाल।
मात-पिता तेरे खुशी
            पूछे तेरा हाल।।
*--- नैना जी*
धीरज को धारण करो,रखो हृदय विश्वास।
जगतपिता से मांगिए, पूर्ण करें हर आस।।
*---आस जी*
टलती हैं सारी बला,रहें पिता जब साथ।
धैर्य टूटता है कभी,शीश रखें वो हाथ।।
*----रेनू सिंह जी*
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 *अष्टम चरण- चरण*
तन मन अगन लगाइ के,
              पिया गये परदेश।
नैना चरण निहारती,
                कब लौटेंगे देश।।
*--- नैना जी*
चरण पकड़ विनती करूँ,
          प्रियतम तेरी आज।
सौतन गृह मत जाइये
          रखिये मेरी लाज।।
*---नैना जी*
चरण शरण तेरी प्रभो,राखो मेरी लाज।
किरपा हमको जब मिले,बनते बिगड़े काज।।
*--- रेनू सिंह जी*
प्रभु चरणों की भक्ति में, जो दे जीवन काट।
कष्ट कोई होता नहीं, पाता सारे ठाट।।
*---आस जी*
चरणपादुका राम की,सिंहासन धर दीन्ह।
अनुज भरत बैठे नहीं,जब तक शासन कीन्ह।।
*-- जिद्दी जी*
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 *नवम चरण- कृष्ण*
शीश नवाऊं चरण में,रखना मेरी लाज।
कुंज बिहारी कृष्ण से,बनते सारे काज।।
*--आस जी*
अधरों पर मुरली सजे
          तिलक सजे है भाल।
जसुदा निरखत कृष्ण को
             नैना दिखे विशाल।।
*--नैना जी*
कृष्ण सखा को देखकर,प्रफुलित हुआ तुणीर।
ढूँढे से मिलता नहीं,अर्जुन जैसा वीर।।
*--- रेनू सिंह जी*
कृष्ण नाम अमृत घुले, जाकी गजब मिठास।
ज्यों ज्यों ये रसना चले, बढ़ती जाये प्यास।
*--इन्दु शर्मा शचि जी*
कृष्णरंग में राधिका,रँगी सकल ब्रज नारि।
गोकुल के नँदलाल पे,जाएँ सब बलिहारि।।
*--जिद्दी जी*
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 *दशम चरण- शरद*
शरद कुम्भ ले आ गया,काँपे सकल शरीर।
जाने कैसे हैं बसे,भक्त गंग के तीर।।
*--जिद्दी जी*
नैना प्रिय डम्बर भयी,
        डम्बर हुयी है राह।
यौवन सारा ढल गया
          शरद गहे अब बाँह।।
*-- नैना जी*
सोम बरसता खीर में,जन जन का विश्वास।।
शरद पूर्णिमा शशि चमक, नर में भरे उजास।।
शरद सुहानी रितु लगे छाए बसंती रंग।
लाल गुलाबी से सने मन में भरी उमंग।।
*--तुलाराम अनुरागी जी*
संग्रहीतकर्ता:-
नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
छतरपुर  ( मध्यप्रदेश )
सम्पर्क सूत्र:-8109643725

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