Wednesday, January 30, 2019

आ० हीरालाल जी

ग़ज़ल

1212 1122 1212 22

किसी के प्यार के सपने सजा रहा हूँ मैं।
कठिन है राह, मगर  आज़मा रहा  हूँ  मैं।

सफर  कटेगा   वहाँ   कैसे  ये  ख़ुदा  जाने
हरेक  मोड़  जहाँ  मात  खा  रहा  हूँ  मैं।

ख़ुशी से  कह दो कभी और वो यहाँ आये
अभी तो दर्द से रिश्ता नि�भा  रहा  हूँ  मैं।

ख़तायें  भूल  मेरी  पास  फिर  चले आओ
दुखों में जीस्त ये तुम बिन बिता रहा हूँ मैं।

बचाना  लाज  मेरी  तू  ख़ुदा  ज़माने  में
तेरे यकीन पे  फिर  घर  बना  रहा  हूँ  मैं।

दिया  है  साथ  मेरा कब भला मुकद्दर ने
फिजूल आस का दीपक जला रहा हूँ मैं।

               हीरालाल

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