Thursday, January 31, 2019

ग़ज़ल :- आ० हीरालाल जी

2122 1122 22

इश्क   का  रोग़   लगाना  क्यों  है।
चैन  ख़ुद  अपना  गँवाना  क्यों  है।

उस पे ज़ाहिर है हाले दिल सबका
कुछ भी उस रब से छुपाना क्यों है।

अपनी महनत  की  रहे खा जग में
सर  किसी  दर  पे झुकाना क्यों है।

अपना  ही  ग़म  है बहुत दुनिया में
ग़म  ज़माने   का  उठाना   क्यों  है।

बेवफ़ा  हो   गये   हैं  जब   सपने
उनको  पलकों  पे सजाना क्यों हैं।

खूब   वाकिफ़   जहां  से  हैं *हीरा*
झूठी   उम्मीद   लगाना   क्यों   है।

                  हीरालाल

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