Thursday, January 17, 2019

घनाक्षरी छंद

मनहरण~घनाक्षरी

तंग है बिछौना और ,पैर चादर निकाल|
खाली बैठ मत कुछ, काम धाम कर ले||

सुरसा-सी बढ़ रही, मँहगाई आज मीत|
काम धाम कर ले कि ,ऊँचा दाम कर ले|

आन वान शान गान, देश प्रेम है महान|
ऊँचा दाम कर ले कि,जग नाम कर ले||

तन पञ्च तत्त्व में से, उड़ जायेगा पखेरू|
जग नाम कर ले कि, राम राम कर ले||

©दिलीप कुमार पाठक "सरस"

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मनहरण घनाक्षरी

एक गरीब की आवाज

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साथियों के साथ खेलूँ चाह मन में थी मेरे,
किन्तु दुष्ट गरीबी की चाल नही पूछिए।
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परिवार का उठाये बोझ जी रहा हूँ मैं भी,
गरीब के घरौंदे का हाल नही पूछिए॥
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कारखाने में जवान हुआ कोई बालक है,
बचपन  बीते हुए  साल  नही  पूछिए।
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बालश्रम कानून भी कोठे की तवायफ है,
बिका है कि इतना सवाल मत पूछिए॥
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नमन जैन अद्वितीय

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विधा-मनहरण घनाक्षरी

पढ़ो छंद प्यार भरा,नेह व दुलार भरा।
शब्द-शब्द भाव भरी,जहाँ बात करते।।

हरते हैं ताप सब,दिल का गुबार सब।
जहाँ एक दूसरे पे,हम आप मरते।।

तन मन को भिगोते,झरते फुहार-सम।
प्रेम पगे भाव हम,मिल साथ भरते।।

हँसते हँसाते खूब,दूब जैसे हरषाते।
आप होते साथ तब, हम नहीं डरते।।

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

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जय हनुमान

असुर पिशाच आदि ,नाम सुन काँपते हैं।
नाम लेता जो भी, बाधा आती नहीं मग में।।

रामराम रटते हैं,राम राम जपते हैं।
राम राम राम राम,राम रग रग में।।

करें दुष्ट का दलन ,रहें प्रेम में मगन।
प्रेम से पुकारेंगे तो,हैं हमारे संग में।।

गुणवान दयावान,ज्ञानवान बलवान।
हनुमान के समान,नहीं कोई जग में।।

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

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विधा-घनाक्षरी

विषय-हमारे जवान

सीमा के प्रहरी आज, सीना ताने डटे सब |
देश बेटे सभी अब, सीना तान तनिए||

हो अनीति समझौता, छल-बल भ्रष्टाचारी |
शत्रु सदा शत्रु होता, शत्रु सदा हनिए||

स्वच्छ जल के समान, हैं हमारे ये जवान|
आन वान शान हेतु, पर्वतों से छनिए||

भारत सपूत बीर, आओ शत्रु-सीना चीर|
दुष्ट के दलन हेतु, नरसिंह बनिए||

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

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विधा-मनहरण-घनाक्षरी
विषय-सावन

तन-मन कौ जलाय,अंग-अंग झुलसाय,
बिन तेरे कहाँ जाय,जिया अकुलात है||

सावनी फुहार झरै,झरै झकझोरै मोहिं|
झूला पींग पींगने कौ,हेरि-हेरि जात है||

कारे-कारे मेघा नभ, उमड़-घुमड़ आये|
रैन भई है अँधेरी, मन सकुचात है||

सावन न जाये बीत,आजा पाऊँ तेरी प्रीत|
बोल परदेशी-मीत,काहे नहीं आत है||

दिलीप कुमार पाठक

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मनहरण-घनाक्षरी

करने शृंगार बैठी, आज मेरी प्राण प्यारी|
बिंदिया सुभाल लाल, होंठ लाली लाल है||

लाल लाल परिधान,लाल चूड़ियाँ हैं|
गंधवाली हिना हाथों,रची लाल लाल है||

हाथ में गुलाब लाल, लिए चकाचौंध लाल|
लालिमा निहार मन,हुआ लाल लाल है||

गाल लाल होंठ लाल,अंग-अंग लाल लाल|
लाल लाल परिदृश्य, देख लाल लाल है ||

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

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विषय-आँचल
विधा~मनहरण घनाक्षरी

मौन होत लोग सभी, नाम सुन एकाएक|
सिसकी में पीर भरी, बनी सवालात हूँ||

आँचल है तार तार ,किया दाग़दार अति|
क्षति प्रति यौवन की, बिछी-सी बिसात हूँ||

किसी ने है भोगा छोड़ा, और को गयी परोसी|
कभी देवी कभी दासी, नारी की मैं जात हूँ||

आँचल है खींचा गया, द्रोपदी बनायी गयी|
कोई न लजात आज, देश की मैं मात हूँ||

मात~हार,माता

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

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मनहरण घनाक्षरी
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उर में तरंग धार,कर में तिरंग लिए,
छूने को उत्तुंग यहाँ, हर नौजवान है।

रिपुओं का वक्ष चीर,तब चैन पाता वीर,
लिखता है तकदीर, देश ये महान है।।

शोणितों का ज्वार-भाट,खोल देता है कपाट,
सिंहनी के दूध का जी,दिखता उफान है।।

वर्तमान औ अतीत, शौर्य का है ये प्रतीक,
मुर्दे में भी जान आये, ऐसा बलिदान है।।

~जितेन्द्र चौहान "दिव्य"

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मनहरण घनाक्षरी

एकता की सूत्रधार,जोड़ती है तार तार,
तुलसी कबीरा सूर, यही रसखान है।

गगन में चंद्र सूर्य,चमकते सितारे ज्यों,
नित्य छोड़ती धरा पै,निज पहचान है।।

सोच अब यही हाय,पूत ही कपूत हुए,
माँ को मान देने में ही,सोचै अपमान है।

है निवेदन दिव्य का,भारती ललाट पर,
बने हिंदी राष्ट्रभाषा,तभी निज शान है।।

~जितेन्द्र चौहान "दिव्य"

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प्रेम
मनहरण घनाक्षरी।

मीरा है  प्रेम साधिका,
   है  प्रेम रूप  राधिका।
        प्रेमा स्वरूप  गोपियाँ,
            सबको        बताइये।
                 
ये  प्रेम  है   आराधना,
    है  प्रेम  कवि  कल्पना,
        ये   प्रेम कृष्ण  रूप है,
              सबको        बताइये।

ये प्रेम  मातृ   रूप है,
    ये   प्रेम    तो अनूप है
        प्रेम बिन     कुछ नही,
              सबको         बताइये।

प्रेम  तो    अहसास है,
    ये सत्य  का प्रकाश है,
        ये प्रेम    है  परमात्मा,
            सबको         बताइये।

इन्दू शर्मा शचि
तिनसुकिया असम

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मनहरण घनाक्षरी

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मन्दिर वाले द्वार को,
दीपक की कतार को,
पापी मन क्या जानेंगे,
घण्टी की गुंजार को।

सात जन्मों के प्यार को,
अनकहे करार को,
ये कुंवारे क्या जानेंगे,
घर परिवार को।

प्रेम में मनुहार को,
झंकृत मन तार को,
मनचले क्या जानेंगे,
प्रेम मझधार को।

झुर्रियों के श्रृंगार को,
अँसुवन की धार को,
युवा प्रेमी क्या जानेंगे,
बुजुर्गों के प्यार को।

         

शीतल प्रसाद

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मनहरण घनाक्षरी

सपनो की डोर को संजोते रहे जिंदगी में,
आर्मी की शान में इक त्यौहार हो जाने दो।
जितने भी गौरी जयचन्द हो बन्द जेलों में,
उनका तत्काल दहा संस्कार हो जाने दो।
केसर की क्यारी में जिनने वर्षाई गोलियां,
उन पे टैंक,बंबो की बौछार हो जाने दो।
भारती माँ कब तक सहती रहेगी पीर,
एक युध्द सीमा के आर पार हो जाने दो।

जयकांत पाठक
छतरपुर मध्यप्रदेश
मो.नं.8103859170

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मनहरण घनाक्षरी

भारती के अश्रु बहे, सैनिकों की लाश पर,
भ्रष्ट राजनीति को भी शर्म आनी चाहिए।
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शीश कटाते जो रहे वीरों के सीमाओं पर,
उन नेताओं के बेटों की कुर्बानी चाहिए
.
पाक चीन अमेरिका भले कोई ताकत हो
अब सैनिक की लाज भी बचानी चाहिए
.
डरते नही किसी से, भले बलिदान हुए,
उनकी भी शौर्यगाथा गाई जानी चाहिए।
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नमन जैन अद्वितीय

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मनहरण घनाक्षरी

उस नेता को भुला के नेता सभी कहते है,
कैसे याद करूँ उसे, हमें भी तो सोना था।

भारती करें विलाप, शहीदों की लाश पर,
मंत्रियों की लाश बिछे, उसपे क्या रोना था।।

सोई जनता के स्वाभिमान को जगाता गया,
देशभक्त एक एक सुभाष सा होना था।

युद्ध अपराधी जिसे कहा राजनीति ने भी,
उनको तो भारत का राष्ट्र पिता होना था।।

नमन जैन अद्वितीय

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आ. सोम दादाश्री को समर्पित त्वरित प्रयास ~

नेह व दुलार पाया, मीठा मीठा प्यार पाया|
सरस लड़ैता जिन्हें, मेरे प्रिय तात हैं||

ज्ञानागार का प्रचार, शिष्टाचार का प्रसार|
लगें मुझे गलहार, जगत विख्यात हैं||

मातु पितु पूजती सी, छंद गूँज गूँजती है|
शब्दभाव सोमरस,खिले जलजात हैं||

हिय मोहि हेरते से, शीश हाथ फेरते से|
बार बार टेरते से, मेरे सोम भ्रात हैं||

दिलीप कुमार पाठक "सरस"


संग्रहीतकर्ता:-
Neetendra singh parmar
From chhatarpur M.P.
contact:- 8109643725

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